Dainik Athah

एक ही नेता और उसके परिवार को मिल रहे पदों के साथ ही टिकटों पर घमासान

  • भाजपा जिला संगठन को लेकर शांत नहीं हो रही रार
  • कुछ नेता खुद और उनकी पत्नियां लड़ चुकी है चुनाव, सरकार में पद भी मिले

अथाह संवाददाता
गाजियाबाद
। भारतीय जनता पार्टी गाजियाबाद जिले में मंडल कमेटियों के गठन के बाद जिस प्रकार रार शुरू हुई है वह थमने का नाम नहीं ले रही है। हालात यह है कि सोशल मीडिया पर कमेंट्स की बाढ़ सी आई हुई है। हालात यह है कि जिसके हाथ जो लगा वह उसे ले उड़ा।

मंडलों में जिस प्रकार महिला कार्यकर्ताओं को नजर अंदाज कर नेताओं की पत्नियों को तरजीह दी गई है उसके बाद सोशल मीडिया पर भाजपा कार्यकर्ता जमकर गुबार निकाल रहे हैं। अब इसको लेकर भी आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है कि कुछ नेता ऐसे हैं जो खुद चुनाव लड़ चुके, अपनी पत्नी को भी चुनाव लड़वा चुके। इसके साथ ही कुछ ने सरकार में पद प्राप्त कर लिये हैं, लेकिन कमेटियों में अपनी पत्नियों को रखवा दिया। भाजपा के जिम्मेदार नेता कहते हैं कि यदि महिला कार्यकर्ता पार्टी में नहीं है तो कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में महिलाएं कैसे आ जाती है।
इसके साथ ही नया तथ्य यह है कि मोदीनगर देहात और भोजपुर मंडल अध्यक्षों ने भी मंडल कमेटियों में अपनी पत्नियों को शामिल कर लिया है। इसको लेकर भी जमकर चर्चा हो रही है।

क्या महिला कोटा हो गया पूरा, अनुसूचित जाति को प्रतिनिधित्व पर भी सवाल
इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या 33 फीसद आरक्षण का कोटा पूरा हो गया है। इतना ही नहीं अनुसूचित जाति के प्रतिनिधित्व पर भी कार्यकर्ता दबे मुंह सवाल खड़े कर रहे हैं। इसमें किसी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वाल्मीकि समाज को सबसे कम प्रतिनिधित्व दिया गया है। लेकिन जिम्मेदार खुद बचते नजर आ रहे हैं।

जिलाध्यक्ष को लेकर उठ रहे सवाल
इस मामले को सबसे अधिक जिलाध्यक्ष की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कार्यकर्ता पूछ रहे हैं कि क्या उन्होंने बगैर देखे हस्ताक्षर कर दिये। वहीं जिला प्रवासी भी सवालों के घेरे में है। जिला प्रवासी तो अपनी बात कहते हैं, लेकिन जिलाध्यक्ष फोन पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं। जिला प्रवासी गोविंद चौधरी कहते हैं कि मंडलों की कमेटी घोषित करने के लिए तीन लोगों की कमेटी थी। जिसमें मंडल अध्यक्ष के साथ ही मंडल प्रवासी और मंडल प्रभारी की रिपोर्ट पर ही कमेटियों का गठन किया गया। वहीं वे यह भी कहते हैं कि हो सकता है कि कोई कार्यकर्ता नाराज हो, लेकिन आगे संगठन का विस्तार होना है हो सकता है कि उनके नाम पर विचार संगठन में दायित्व देने पर किया जाये।


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