Dainik Athah

दलितों के साथ ही पिछड़ों को भी हड़प गया कांग्रेस- सपा गठबंधन

  • लोकसभा चुनाव 2024 में क्यों छिटका पिछड़ा मतदाता
  • पिछड़ा वर्ग को एमएलसी से लेकर मंत्री तक का दिया तोहफा, लेकिन नहीं बच सका वोट बैंक
  • दूसरे चरण के बाद बदले सपा के प्रदेश अध्यक्ष के दाव ने भी बदला माहौल

अशोक ओझा
लखनऊ।
2024 के लोकसभा चुनाव में दलित मतदाता जहां भाजपा से छिटका और वह कांगे्रस- सपा गठबंधन की तरफ लौटता नजर आया। लेकिन भाजपा के कथित दलित नेता वातानुकूलित कमरों में ठंडक का मजा लेते रहे। वहीं अब पार्टी के भीतर से यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि पिछले डेढ़ से दो दशक से जब पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ था तो वह क्यों छिटका। लेकिन अब तो अपने बचाव में सभी एक ही बात बोल रहे हैं। वह संविधान और आरक्षण का डर। यह भी हो सकता है, लेकिन पिछड़ा वर्ग के नेताओं पर तो यह चुनाव सवाल खड़ा कर ही गया। ये लोग अपने मतदाओं को भ्रम जाल से निकालने में विफल रहे।

पिछड़ा वर्ग लंबे समय से भाजपा के साथ रहा है। पिछड़े वर्ग में यदि यादवों को छोड़ दिया जाये तो अधिकांश पिछड़ी जातियां भाजपा के पक्ष में गोलबंद रही है। लेकिन इस बार के आंकड़े बता रहे हैं इस बार तो यादवों के साथ ही पिछड़ा वर्ग में आने वाली अन्य जातियां भी भाजपा से छिटकी है। बता दें कि भाजपा ने पिछड़ा वर्ग के अनेक नेताओं को सपा- बसपा से आयात किया था। इनमें गाजियाबाद के नरेंद्र कश्यप को एमएलसी से लेकर प्रदेश सरकार में मंत्री, भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा का अध्यक्ष, वहीं, बसपा से आये लोकेश प्रजापति को केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में उपाध्यक्ष, दादरी के नरेंद्र भाटी को एमएलसी, कैराना के गुर्जर नेता कहे जाने वाले वीरेंद्र सिंह को एमएलसी, बागपत जिले के विधायक केपी मलिक जो बहुत कम मतों के अंतर से जीते को भी मंत्री और मोहित बेनीवाल को पहले क्षेत्रीय अध्यक्ष, फिर प्रदेश उपाध्यक्ष और अब एमएलसी बनाया। लेकिन ये लोग अपने वर्ग के लोगों को भाजपा के साथ कितना जोड़ पाये।
जिन लोगों को भी भाजपा ने पदों के साथ ही माननीय बनने का मौका दिया उसके पीछे पार्टी की सोच थी कि ये लोग अपने समाज को भाजपा के साथ लाकर पार्टी को मजबूत करेंगे, लेकिन ये अपने समाज को पार्टी के साथ कितना जोड़ पाये यह अब किसी से छुपा नहीं रह गया है। इनमें से कई नेता तो ऐसे है जो अपने क्षेत्र में भी पार्टी की इज्जत नहीं बचा सके, अब पार्टी में इनकी इज्जत कैसे होगी यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो पाल, गड़रिया, कुर्मी, कश्यप समाज के मतदाता ही भाजपा से छिटक गये।

अब भाजपा के नेता यह कह रहे हैं कि सपा- कांग्रेस ने संविधान खत्म करने के साथ ही आरक्षण समाप्त करने का झूठ फैलाया जिससे मतदाता भ्रमित हो गया, लेकिन जिन लोगों को पार्टी ने पद और सम्मान दिया था क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं थी कि वे इस भ्रम जाल से अपने मतदाताओं को बाहर निकाल कर भाजपा के साथ जोड़ते। इसके साथ ही एक बात और कही जा रही है कि सपा ने दूसरे चरण के बाद श्याम लाल पाल को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर पिछड़ा वर्ग में बड़ा दाव खेला, लेकिन पहले से ही स्थापित नेताओं की क्या कोई जिम्मेदारी नहीं थी। जबकि ऐन चुनाव के समय धर्म सिंह सैनी जैसों की पार्टी में वापसी हुई थी। बावजूद इसके सैनी मतदाता भाजपा के साथ नहीं आ सके। सूत्रों के अनुसार पार्टी आने वाले समय में पिछड़ा वर्ग के नेताओं के कामों की भी समीक्षा करेगी।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस- सपा ने जातीयता को उभार कर चुनाव लड़ा। इसके साथ ही मतदाताओं को झूठ बोलकर भ्रमित किया कि भाजपा के आने पर संविधान बदलने के साथ ही आरक्षण को समाप्त कर दिया जायेगा। हम मतदाताओं को ठीक से समझाने में सफल नहीं हुए। जबकि न तो संविधान बदल सकता है और न ही आरक्षण समाप्त हो सकता है। पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ रहा और छिटकने जैसी कोई बात नहीं है।
नरेंद्र कश्यप, राज्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार एवं प्रदेश अध्यक्ष भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा


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