- लोकसभा चुनाव के बाद फिर गरमा सकता है हाईकोर्ट बैंच का मुद्दा
- पश्चिम के जन प्रतिनिधियों एवं अधिवक्ताओं को करने होंगे प्रयास
- हाईकोर्ट के वकील बनते हैं पउप्र की बैंच स्थापना में बाधा
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बैंच स्थापना की मांग लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर उठ सकती है। यदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जन प्रतिनिधि और अधिवक्ता एकजुट होकर प्रयास करें तो निश्चित ही बैंच का सपना पूरा हो सकता है।
बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बैंच की स्थापना की मांग को लेकर दशकों से आंदोलन चल रहा है। अब भी हर शनिवार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के न्यायालयों में अधिवक्तागण कार्य बहिष्कार कर हाईकोर्ट बैंच की मांग को लेकर एकजुटता दिखाते हैं। इस मांग के पूरा होने में यदि सबसे बड़ा कोई रोड़ा है तो वह प्रयागराज के अधिवक्ता है। इन अधिवक्ताओं को यह लगता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बैंच बन जाने पर उनका काम कम हो जायेगा। यहीं कारण है कि वे हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के जन प्रतिनिधियों को दबाव में ले लेते हैं।
बता दें कि यह मुद्दा समय समय पर लोकसभा में गूंजता रहा है। वर्तमान लोकसभा में भी पश्चिम के सांसद जरनल वीके सिंह, राजेंद्र अग्रवाल, डा. सत्यपाल सिंह एवं संजीव बालियान ने उठाया था, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला रहा। जरनल वीके सिंह बताते हैं उन्होंने खुद इस मुद्दे को लेकर तत्कालीन कानून एवं न्याय मंत्री सदानंद गौड़ा एवं रवि शंकर प्रसाद से मुलाकात की थी। लेकिन प्रयागराज के अधिवक्ताओं के दबाव के चलते सफल नहीं हो सके। इसी प्रकार पूर्व में गाजियाबाद से सांसद रहे केसी त्यागी भी लोकसभा एवं राज्यसभा के साथ अन्य मौकों पर इस मांग को उठा चुके हैं।
यदि सूत्रों पर भरोसा किया जाये तो नयी लोकसभा के गठन एवं सरकार बनने के बाद यह मुद्दा एक बार फिर से जोर पकड़ेगा। जानकारों के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बैंच की मांग को लेकर एक बार सैद्धांतिक सहमति बन भी गई थी, लेकिन बैंच मेरठ, गाजियाबाद, आगरा या कहां बनें इसको लेकर अधिवक्ता ही एक मत नहीं हो सके। जबकि जानकारों का मानना है कि गौतमबुद्धनगर हाईकोर्ट बैंच के लिए सबसे सही स्थान है। वहां से पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए बेहतर संसाधन है। इसके साथ ही वहां पर स्थान भी पर्याप्त है। लेकिन अधिवक्ताओं को इससे बचना होगा कि बैंच कहां बनें।
इस मुद्दे पर भाजपा समेत सभी दलों के जन प्रतिनिधियों को एक साथ आना होगा। इसके साथ ही इस पर भी विचार करना होगा कि किस प्रकार प्रयागराज के अधिवक्ताओं को इस मामले में पीछे धकेला जाये। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय तक भी उन्हें जाना पड़ सकता है।