Dainik Athah

164 करोड़ के दुरुपयोग पर आडिट आपत्ति का अब तक नहीं आया नतीजा

  • जीडीए के पूर्व चीफ इंजीनियर पर अरबों रुपए के भुगतान पर नहीं हुई कार्रवाई
  • मधुबन बापूधाम योजना के विद्युतिकरण में हुआ था अरबों रुपए का गोलमाल

अथाह संवाददाता
गाजियाबाद।
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) अधिकारियों व अभियंताओं के उच्चस्तरीय घोटालों का बड़ा केंद्र रहा है। अरबों रुपए के कई घोटाले उजागर होने के बावजूद घोटालेबाजों को सजा होना तो दूर की बात है, भ्रष्टाचारियों पर आज तक आरोप निर्धारित नहीं हो पाए। ऐसा ही एक प्रकरण मधुबन बापूधाम योजना के विद्युतीकरण कार्य से जुड़ा है। अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद जीडीए योजना में विद्युत आपूर्ति की समुचित व्यवस्था भी नहीं कर पाया है। योजना का एक बड़ा हिस्सा आज भी विद्युत आपूर्ति की बाट जोह रहा है। जिसके लिए जीडीए के पूर्व अभियंता अनिल गर्ग को जिम्मेदार माना जाता है। जिनके विरुद्ध जांच वर्षों से लंबित चली आ रही है। जीडीए के मुख्य अभियंता और वित्त नियंत्रक के अनभिज्ञता जताने के बाद इस प्रकरण में अब निगाहें जीडीए उपाध्यक्ष अतुल वत्स पर ही टिकी हैं।
गौरतलब है कि करीब 15 साल पहले 1600 एकड़ भूमि पर जीडीए ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना मधुबन बापूधाम को धरातल पर उतरने का काम शुरू किया था। यह योजना अपने प्रारंभिक चरण में ही चरमराने लगी थी। इसकी वजह यह थी कि योजना के लिए अधिग्रहित भूमि के मुआवजे को लेकर जीडीए और किसान एक राय नहीं थे। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि शासन के दबाव में जीडीए के तत्कालीन अधिकारियों ने आंशिक रूप से अधिग्रहित भूमि पर ही विकास का ढांचा खड़ा करना शुरू कर दिया था। इसका नतीजा यह निकला कि योजना में मूलभूत सुविधाओं के लिए आनन-फानन में ही भारी भरकम राशि के टेंडर निकाले जाने लगे। करोड़ों, अरबों रुपए के टेंडर लेने के लिए ठेकेदारों में मारामारी मच गई थी। बताया जाता है कि सत्ता तक पहुंच रखने वाले कुछ रसूखदार ठेकेदार ही इस योजना में ठेके लेने में सबसे आगे रहे थे।
यह वह दौर था जब सत्ता के करीबी इन ठेकेदारों के जलवों की शोहरत और हनक गाजियाबाद और नोएडा से लेकर लखनऊ तक सुनाई देती थी। सत्ता से निकटता की मलाई सिर्फ ठेकेदार, अधिकारियों व अभियंताओं में ही नहीं बंटती थी, बल्कि सत्ता पक्ष से जुड़े कईं चंपू भी भ्रष्टाचार की इस वैतरणी में गोते लगा रहे थे। योजना में सूबे के तमाम माननीयों का भी ख्याल रखते हुए उनके लिए अलग से भूखंड आरक्षित किए गए थे। जिसमें सूबे के किसी भी क्षेत्र का माननीय स्वेच्छा से भूखंड प्राप्त कर सकता था। इनमें से कितने माननीय समय पर किस्त अदा करते रहे हैं, यह अलग से पड़ताल का विषय है?।
उस दौर में जीडीए के अभियंत्रण खंड की पौ बारह रहती थी। सड़क, बिजली, पानी, सीवर और उद्यान निर्माण के नाम पर प्राधिकरण और सरकार दोनों हाथों से पैसा बहा रहे थे। सूबे में बुनकर और हथकरघा के सिमटते दायरे और जीडीए के वित्तीय रूप से कमजोर होने के बावजूद योजना में बुनकर मार्ट जैसा सफेद हाथी खड़ा किया गया। जिसके उपयोग को लेकर जीडीए अधिकारी आज भी उहापोह में हैं।
इसी सब के चलते मधुबन बापूधाम योजना में विद्युतीकरण के काम का भी टेंडर छोड़ा गया था। विवादों से करीब का नाता रखने वाले प्राधिकरण के तत्कालीन मुख्य अभियंता अनिल गर्ग पर आरोप है कि उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाते हुए विद्युतीकरण का ठेका हासिल करने वाले ठेकेदार को महज चंद रुपए के क्षतिपूर्ति अनुबंध पत्र के आधार पर एक 1अरब, 64 करोड़, 41 लाख रुपए से भी अधिक का भुगतान करवाया था। इस भुगतान पर आॅडिट विभाग ने आपत्ति दर्ज की थी। अनिल गर्ग सेवा निवृत्त होकर प्राधिकरण से फुर्सत पा गए लेकिन उन पर आरोप निर्धारण का यह मामला बरसों से जांच फाइलों में दौड़ रहा है।

जीडीए के इस महाघोटाले की बाबत कोई भी अफसर मुंह खोलने को तैयार नहीं है। कार्यकारी मुख्य अभियंता मानवेन्द्र सिंह और वित्त नियंत्रक अशोक वाजपेई दोनों ही अधिकारी इस प्रकरण पर अनभिज्ञता जताते हैं। यहां गौरतलब एक तथ्य यह भी है कि सेवा निवृत्त अनिल गर्ग के खिलाफ तो जांच बरसों से चल रही है, लेकिन जिस ठेकेदार को काम पूरा किए बिना ही 164 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान किया गया, उसके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई यह भी कोई बताने को तैयार नहीं है। जीडीए मौजूदा उपाध्यक्ष अतुल वत्स की कर्तव्यनिष्ठा से उम्मीद नजर आती है कि इस प्रकरण में भी जल्द ही दूध का दूध और पानी का पानी सामने आएगा।

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