- भाजपा- रालोद के आमने- सामने होने पर भाजपा को ही मिली जीत
- गठबंधन के चलते रालोद को मिल सकी परंपरागत सीट
अशोक ओझा
बागपत/ मोदीनगर। जाट लैंड कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राष्टÑीय लोकदल की परंपरागत सीट बागपत में बगैर भाजपा के रालोद का नल कभी पानी नहीं दे पाया। 2009 में रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह को भी भाजपा के साथ ने इस सीट से संसद भेजा था। अब भी पूरा दारोमदार भाजपा पर निर्भर है।
बता दें कि परिसीमन के बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह ने भाजपा के गठबंधन के सहारे ही बागपत की सीट पर जीत हासिल की थी। उस चुनाव में भाजपा के तत्कालीन राष्टÑीय अध्यक्ष एवं वर्तमान में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी सभाएं करनी पड़ी थी। जबकि परिसीमन से पहले यह सीट पूरी तरह से रालोद की मानी जाती थी। इसके बाद भाजपा- रालोद की राहें जुदा हो गई और 2014 एवं 2019 में रालोद के हाथ से यह सीट छिटक गई। रालोद मुखिया खुद भी इस सीट से हार का स्वाद चख चुके हैं।
दोनों ही चुनावों में मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त डा. सत्यपाल सिंह ने इस सीट से जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार गठबंधन कहो या फिर कुछ और डा. सत्यपाल सिंह जीत की हैट्रिक लगाने से चूक गये। उन्हें टिकट मिला नहीं, लेकिन रालोद मुखिया ने बड़ा दिल दिखाते हुए पूरा जीवन रालोद की सेवा में लगाने वाले डा. राजकुमार सांगवान को टिकट थमा दिया। गठबंधन प्रत्याशी सांगवान ही गठबंधन की बड़ी ताकत भी बन गये।
अब जबकि इंडिया गठबंधन में शामिल सपा ने प्रत्याशी बदलकर साहिबाबाद के पूर्व विधायक अमरपाल शर्मा को टिकट थमाया है तब से लोगों की सोच में कुछ बदलाव आता नजर आ रहा है। उन्होंने नामांकन करने के साथ ही ताकत झौंक दी है, लेकिन सपा और कांग्रेस के संगठनों की कमजोरी के बाद वे किस प्रकार चुनाव अभियान चलायेंगे यह देखना होगा। हालांकि वे अनुभवी है और विधायक भी रह चुके हैं, उनकी पत्नी खोड़ा नगर पालिका की चेयरमैन है। एक बात तय है कि इस सीट पर अब सभी प्रत्याशियों को अपनी ताकत झौंकनी पड़ेगी। रालोद- भाजपा खेमे का पूरा दारोमदार विधायक डा. मंजू शिवाच एवं पूर्व चेयरमैन राम आसरे पर है, वहीं अमरपाल शर्मा ने नगर पालिका के सभासदों के हाथों कमान सौंपी है।