Dainik Athah

जीडीए में बरसों से तैनात इंजीनियर्स की फौज पर नहीं है चुनाव आयोग की नजर

खास इलाके में तैनाती को अभियंताओं में मचा रहता है घमासान

नियुक्ति विभाग ने भी पोस्टिंग के बाद से नहीं ली अभियंताओं की खैर खबर


अथाह संवाददाता
गाजियाबाद।
आर्थिक बदहाली के कगार पर खड़ा गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) का भगवान ही मालिक है। एक लंबे अर्से से आर्थिक रूप आर्थिक तंगी झेल रहा यह जहाज कब डूब जाए कहना मुश्किल है। दशकों से कोई आवासीय योजना लांच नई होने के कारण जीडीए की आमदनी के अधिकांश द्वार बंद हो चुके हैं। ले-देकर जीडीए के पास रखरखाव का ही काम बचा है। थोड़ी बहुत जो आमदनी बची है वह बाबुओं और अभियंताओं के वेतन पर खर्च हो जाती है। एक तरफ जीडीए का ढांचा चरमराता जा रहा है दूसरी ओर महानगर में अवैध निर्माण की सुनामी आई हुई है। इस सुनामी से बहुतायत में नागरिकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन अवैध निर्माण बिल्डर, जीडीए अधिकारियों व इंजीनियर्स के सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो रही है। आंकड़े बताते हैं कि जीडीए में ऐसे अभियंताओं की फौज है जो बरसों से सोने का अंडा हजम कर रही है। चुनाव के मद्देनजर जहां प्रदेश भर के सरकारी महकमों में चुनाव आयोग की तबादला एक्सप्रेस दौड़ रही है, जीडीए में वह भी बेपटरी हो गई लगती है। जीडीए में तीन दर्जन से अधिक अभियंता ऐसे हैं जो बरसों से यहां तैनाती का मजा लूट रहे हैं।
चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही सरकारी कर्मचारी व अधिकारियों की तैनाती की अवधि की पड़ताल होनी शुरू हो गई। तीन साल से अधिक समय से तैनात अधिकारियों व कर्मचारियों पर स्थानांतरण की तलवार लटक गई। उसी के चलते निवर्तमान जिलाधिकारी व जीडीए उपाध्यक्ष राकेश कुमार सिंह का स्थानांतरण किया गया। इस दायरे में निवर्तमान एसडीएम सहित कई और आला अधिकारी भी आए। लेकिन कमाल तो यह है कि पिछले दस बारह साल से जीडीए में मौज काट रहे इंजीनियर्स पर न तो नियुक्ति विभाग की नजर नहीं पड़ी और न ही चुनाव आयोग ने ही इसका संज्ञान लिया है। देखना यह है कि बरसों से जीडीए में डेरा डाले इन अभियंताओं का संज्ञान लेने का काम कौन करता है? तत्कालीन जिलाधिकारी व उपाध्यक्ष के स्थानांतरण के साथ ही जीडीए के सभी जोन में अवैध निर्माण का काम पुन: जोर शोर से शुरू हो गया है। ऐसे ही एक अवैध निर्माण ने बीते गुरुवार को जोन-2 (मोदीनगर) में एक श्रमिक की जान ले ली थी। निमार्णाधीन फैक्ट्री की छत गिरने से हुई श्रमिक विशाल की मौत के मामले पर जीडीए अधिकारियों व अभियंताओं द्वारा भरपूर लीपापोती करने के बावजूद यह प्रकरण मौजूदा जिलाधिकारी व जीडीए उपाध्यक्ष के संज्ञान में आ चुका है। जिसके बाद उन्होंने अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं।
गौरतलब है कि जीडीए पर जनपद के विकास की जिम्मेदारी है। लेकिन भ्रष्ट कर्मचारियों एवं इंजीनियर्स की फौज ने जीडीए को विनाश का प्रतीक बना कर रख दिया है। अवैध निर्माण पर अंकुश के बजाए अधिकांश अधिकारी व अभियंता अवैध निर्माण को ही अपना धर्म व पूजा मान बैठे हैं। तैनाती के मामले में जीडीए का प्रवर्तन विभाग सबसे अधिक बदनाम है। वैसे तो हर जोन में प्रवर्तन विभाग में तैनाती के लिए मारामारी है, लेकिन सबसे अधिक मारामारी जोन-1, जोन-2, जोन-6 व जोन-7 के लिए रहती है। कुछ अवर अभियंता (जूनियर इंजीनियर्स) तो साम, दाम, दंड, भेद किसी भी तरह इंदिरापुरम में ही पोस्टिंग कराने के लिए लालायित रहते हैं। बहुत से ऐसे हैं जिनकी इस इलाके में दूसरी, तीसरी पोस्टिंग चल रही है।
कहा और माना यह जाता है कि सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार मुक्त हो गया है। यहां सवाल यह उठता है कि भ्रष्टाचार जब जड़ से ही खत्म हो गया है तो इंदिरापुरम जैसे इलाके में पोस्टिंग के लिए जूनियर इंजीनियर्स में इतनी गला काट स्पर्धा क्यों है? आश्चर्य की बात तो यह है कि शिकायत पर हटाए जाने के बाद इनके पैरोकार उसी इलाके में उनकी बहाली को अपनी मूंछ की लड़ाई मान कर इनकी वहीं बहाली करवाने में सफल रहते है। इनकी काबिलियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इनमें से अधिकांश एक भूखंड पर हुए अवैध निर्माण की कंपाउंडिंग की गणना नहीं कर सकते। इसके लिए कुछ पदस्थ या अवकाश प्राप्त अभियंताओं की ‘अतिरिक्त सेवा’ प्राप्त की जाती है।
प्राधिकरण में दस-बारह साल से डटे अभियंताओं की फौज को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि शासन ने जब अपनी स्थानांतरण नीति एक समान रूप से लागू कर रखी है तो अधिकांश अभियंता जीडीए में 10-12 सालों से अधिक समय से क्यों टिके कैसे हैं? सूची बताती है कि इनमें से लगभग तीन दर्जन अवर अभियंता ऐसे हैं जिनकी तैनाती 2012 से लेकर 2019 के मध्य हुई है। मौजूदा उपाध्यक्ष जो जीडीए के समस्त पटेलों की पड़ताल गंभीर रूप से कर रहे हैं क्या वह इस गंभीर मसले का भी संज्ञान लेंगे?


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