- बेगुनाहों के लहू से लिखी जाती है जीडीए की कलंक गाथा
- जोन-7 में अवैध निर्माण की कमान है सत्ता पक्ष के हवाले
अथाह संवाददाता गाजियाबाद। ‘मैं जिसके हाथ में फूल देकर आया था, उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है’। कृष्ण बिहारी नूर का यह शेर गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के प्रवर्तन विभाग की कारगुजारियों पर सटीक बैठता है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण यूं तो डूबता हुआ जहाज है। लेकिन बावजूद इसके यह अभी भी कुछ अधिकारियों, कर्मचारियों, अभियंताओं व सत्ता भोगियों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बना हुआ है। प्राधिकरण का प्रवर्तन विभाग जिसके किसी भी जोन में तैनाती पाने के लिए अभियंताओं में गला काट स्पर्धा रहती है, कुबेर के खजाने से कम नहीं है?। इस खजाने की लूटमार में लिप्त अधिकारी और अभियंता बेगुनाहों की कब्र पर ही अपनी ख्वाहिशों का साम्राज्य खड़ा करते हैं। गुरुवार को मोदीनगर के सिखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में निमार्णाधीन फैक्ट्री के धराशाई होने के हादसे में जान गंवाने वाले विशाल की चिता की आग ठंडी पड़ने से पहले ही इस प्रकरण की लीपापोती का काम शुरू हो गया।
गौरतलब है कि गुरुवार की रात्रि को मोदीनगर के फफराना इलाके में खसरा संख्या 542 में निमार्णाधीन फैक्ट्री का लिंटर गिर गया था। इस हादसे में विशाल, प्रिंस और ललित सहित छह श्रमिक मलबे के नीचे दब गए थे। विशाल की मौके पर ही मौत हो गई थी। हादसे वाला इलाका गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के प्रवर्तन जोन-2 में आता है। प्रारंभिक जांच में स्पष्ट हो गया कि निर्माण कार्य बिना नक्शा स्वीकृत कराए चल रहा था। यह पहला अवसर नहीं है जब बिना स्वीकृति या नक्शे के विपरीत निर्माण होते हुए हादसा हुआ हो। हाल ही में प्रवर्तन जोन-7 और 8 में भी हुए ऐसे ही हादसों में कईं श्रमिक जान गवा चुके हैं। घायलों का तो कोई पुरसा हाल ही नहीं है।
मौजूदा समय में प्रवर्तन जोन-7 हिंडन पर क्षेत्र का दुबई माना जाता है। अवैध निर्माण के लिए बदनाम इस इलाके में तैनाती के लिए अभियंताओं में होड़ लगी रहती है। निवर्तमान उपाध्यक्ष (एवं जिलाधिकारी) राकेश कुमार सिंह और उससे पहले तत्कालीन उपाध्यक्ष कंचन वर्मा ने जोन-7 में अवैध निर्माण के खिलाफ विशेष अभियान छेड़ रखा था। लेकिन तमाम सख्ती के बावजूद जोन-7 के अधिकांश इलाके में अवैध निर्माण की सुनामी आई हुई है। इस संपूर्ण अवैध निर्माण को सत्ता पक्ष का संरक्षण बताया जाता है। लोगों का सरे आम आरोप है कि जोन-7 के जिम्मेदार अभियंता सत्ता पक्ष के उन नुमांइदों के पास गिरवी पड़े हैं जो अवैध निर्माण के सर्वेसर्वा हैं। जोन-7 में जीडीए के सुपरवाइजर से लेकर संबंधित अभियंता की पौ बारह है। लोगों का आरोप है कि सत्ता पक्ष के लोग यहां दो तरह से ही बात करते हैं। बात बन जाए तो ‘चांदी का जूता’ नहीं तो… आशय आप खुद ही समझ जाएं।
जोन-7 में अवैध निर्माण की सुनामी के मद्देनजर तत्कालीन उपाध्यक्ष का यह बयान काबिल ए गौर है। जिसमें उन्होंने कहा था कि जीडीए का लक्ष्य विशेष रूप से जीडीए जोन-7 में अवैध निर्माण से निपटना है। जिसमें राजेंद्र नगर, साहिबाबाद, लाजपत नगर, स्वरूप नगर, श्याम पार्क, नवीन पार्क, राधेश्याम पार्क और शालीमार गार्डन शामिल हैं। उन्होंने इन इलाकों के भवनों पर लोन देने वाले बैंकों को पत्र लिख कर सचेत किया था। पत्र की प्रति आरबीआई को भी भेजी गई थी ताकि आम नागरिक अवैध निर्माणकतार्ओं के शिकंजे में न फंस जाएं।
बीते तीन साल के दौरान प्राधिकरण के दायरे में धराशाई हुई अवैध इमारतों के आंकड़े खौफनाक हैं। प्राधिकरण के भ्रष्ट अभियंताओं की संलिप्तता से हुए इन हादसों में कईं बेगुनाह मौत की नींद सुलाए जा चुके हैं। हादसों में घायल दर्जनों लोगों का जीवन कैसे व्यतीत हो रहा होगा इसकी बस कल्पना ही की जा सकती है। गिरी हुई अवैध इमारतें इस बात का सबूत है कि गुनहगारों के हाथ में ही इंसाफ का तराजू है। जो बेगुनाहों के लहू से भ्रष्टाचार की कलंक गाथा रोज नए रूप में लिख रहे हैं।