Dainik Athah

जीडीए में जेइयों की फौज मार रही है मौज

  • निमार्णाधीन फैक्ट्री के मजदूर की मौत : जिम्मेदार कौन
  • प्राधिकरण स्तर पर किसी भी अफसर ने नहीं ली संवेदनशील मामले की सुध

अथाह संवाददाता
गाजियाबाद।
कहने को तो गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के कंधों पर महानगर सहित आंशिक जनपद के विकास की जिम्मेदारी है। लेकिन अपने कर्मचारियों एवं इंजीनियर की फौज के कारनामों से प्राधिकरण विनाश का सबक बनकर रह गया है। अवैध निर्माण पर अंकुश के बजाए अधिकांश अधिकारी व अभियंता अवैध निर्माण को ही अपना धर्म व पूजा मान बैठे हैं। लिहाजा जीडीए के समस्त आठ जोनों में अवैध निर्माण बेरोकटोक सर उठा रहा है। इसी का नतीजा है कि गुरुवार को एक निमार्णाधीन इमारत के जमींदोज हो जाने से एक निरीह मजदूर की जान चली गई। हादसे के 20 घंटे बाद भी जीडीए के आला अधिकारियों द्वारा इस लोमहर्षक घटना का संज्ञान नहीं लिया गया। यह भी हो सकता है कि मामले के मीडिया में सुर्खी बनने के बाद आधिकारिक स्तर पर किसी जूनियर इंजीनियर या सुपरवाइजर को बलि का बकरा बना कर प्रकरण की इतिश्री कर दी जाए।

प्राधिकरण में अभियंताओं की फौज को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि अधिकांश अभियंता यहां मौज ले रहे हैं। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पूरे सूबे में तकरीबन हर विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों पर स्थानांतरण की तलवार लटक रही है। केंद्रीय चुनाव आयोग की संस्तुति पर शासन ऐसे कर्मचारियों व अधिकारियों को चिन्हित कर स्थानांतरण आदेश जारी कर रहा है जिनके कार्यकाल की अवधि 3 वर्ष पूर्ण हो चुकी हो या 24 जून 2024 तक उनका कार्यकाल तीन साल पूर्ण कर रहा हो। लेकिन जीडीए में अभियंताओं की ऐसी फौज मौजूद है जिनमें से कुछ का कार्यकाल लगभग 12 वर्ष का होने जा रहा है।

हाल ही में जिलाधिकारी और जीडीए उपाध्यक्ष राकेश कुमार सिंह का तबादला शासन स्तर से कर दिया गया। जबकि उनकी तैनाती की अवधि लगभग ढाई साल की ही थी। सवाल यह उठता है कि जब शासन ने अपनी स्थानांतरण नीति एक समान रूप से लागू कर रखी है तो प्राधिकरण में अधिकांश अभियंता 10-12 सालों से अधिक समय से क्यों टिके हैं? सूत्रों का कहना है कि भ्रष्टाचार और अवैध निर्माण को बढ़ावा देने में अभियंताओं की ही खास भूमिका रहती है। अभियंताओं के कंधे पर ही अवैध निर्माण को रोकने की जिम्मेदारी रहती है। लेकिन अधिकांश अभियंता प्रवर्तन विभाग में ही तैनाती को प्राथमिकता देते हैं। जीडीए में तैनात अवर अभियंताओं की सूची बताती है कि इनमें से लगभग तीन दर्जन अवर अभियंता ऐसे हैं जिनकी तैनाती 2012 से लेकर 2019 के मध्य हुई है।

पाठक अंदाजा लगा सकते हैं कि एक दशक से अवैध निर्माण के खिलाफ कमान संभालने वाले अधिकांश अवर अभियंता ‘मठाधीश’ का दर्जा हासिल कर चुके हैं। इनमें कुछ ऐसे ‘महामंडलेश्वर’ भी शामिल हैं जो अवर अभियंता से प्रोन्नत होकर सहायक अभियंता बन चुके हैं। गौरतलब है कि प्रवर्तन विभाग जीडीए की आय का मुख्य स्रोत है। पिछले कुछ सालों से प्राधिकरण का आर्थिक ढांचा इस कदर चरमरा चुका है कि इसके पास स्टाफ की तनख्वाह देने के पैसे के भी लाले रहते हैं। दूसरी ओर मठाधीश अवर अभियंता और महामंडलेश्वर सहायक अभियंता अपनी आर्थिक सेहत सुधारने में जोर-जोर से जुटे हैं।

प्रवर्तन विभाग जोन-2 (मोदीनगर) में बीती रात जो हादसा हुआ उसे जीडीए अधिकारियों की कलंक गाथा ही कहा जा सकता है। सिखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में निमार्णाधीन लेंटर के गिर जाने से एक मजदूर की मौके पर ही मौत हो गई। जबकि दो अन्य गंभीर रूप से घायल हैं। मोदीनगर पुलिस ने इस मामले में एफआईआर तो दर्ज कर ली है लेकिन अभी तक दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का संकेत नहीं मिला है। इस प्रकरण में जीडीए प्रवर्तन विभाग पर भी उंगलियां उठनी लाजिमी हैं। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इतनी बड़ी घटना का संज्ञान प्राधिकरण के किसी भी आला अधिकारी ने नहीं लिया। संबंधित अधिकारियों व अभियंताओं ने तो फोन उठाना भी जरूरी नहीं समझा।

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