- ‘ सावरकर एडवोकेट ऑफ हिन्दुत्व’ का विमोचन
अथाह ब्यूरो नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक मुकुल कानितकर ने कहा कि अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल के नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बनाई पार्टी आज़ाद हिन्द फौज की वजह से मिली थी। कांग्रेसी और वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया है। कांग्रेस का इतिहास प्रजातंत्र को चोट पहुॅंचाने वाला रहा है। तभी कांग्रेस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस और वीर सावरकर को खलनायक बताया। दोनों की उपेक्षा की। जबकि सच्चाई यह है कि दोनों को भारत भूमि से अपार लगाव और अटूट प्रेम था। अब सही इतिहास लिखने का समय आ गया है। दुनियाभर में भारत का डंका बज रहा है। कानितकर गुरुवार को यहाँ विश्व पुस्तक मेला में प्रसिद्ध इतिहासकार डाॅ अमित राय जैन लिखित पुस्तक ‘ सावरकर एडवोकेट ऑफ हिन्दुत्व’ का विमोचन करने के बाद उपस्थित जनसमूह को संबोधित कर रहे थे। इस किताब का प्रकाशन किताबवाले ने किया है।उन्होंने वीर सावरकर को जन्मजात क्रांतिकारी और अपराजेय योद्धा बताते हुए कहा कि उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। स्वभाषा, स्वदेशी और स्वराज सावरकर का मुख्य ध्येय था। इसके लिए वह जीवन पर्यन्त सक्रिय रहे। वह सिंधु से हिन्द महासागर तक की भूमि को पितृभू कहते थे। उनकी सोच थी कि हिन्दुस्थान में रहने वाला चाहे वह किसी जाति-धर्म का क्यों न हो हिन्दू ही है। सावरकर भारत को पुण्य भूमि भी कहते थे। उनका मानना था कि दुनियाभर के लोग मोक्ष और मुक्ति के लिए भारत ही आते हैं।
श्री कानितकर ने कहा कि सावरकर का व्यक्तित्व विराट था। उन्हें महज एक किताब में नहीं समेटा जा सकता है। बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि सावरकर अच्छे भाषा ज्ञानी थे। उन्होंने हिंदी को कई नये शब्द दिए हैं। खेद की बात है कि ट्रेड मिल पर दौड़ने वाले कुछ अधकचरे ज्ञान के लोग आज सावरकर पर सवाल उठाते हैं और देश खामोश रहता है। आनेवाले 25 वर्ष देश के लिए निर्णायक होनेवाले हैं। युग करवट ले रहा है। अबूधाबी में हिन्दू मन्दिर बन रहा है और भारत के प्रधानमंत्री उसका उद्घाटन कर रहे हैं। भारत विश्व गुरु बनने की राह पर अग्रसर है।समारोह को संबोधित करते हुए नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष मिलिंद मराठे ने कहा कि सावरकर के समय में हिन्दुत्व के रास्ते में जातीयता बड़ी बाधा थी। इसलिए वह जाति विहीन हिन्दुत्व के हिमायती थे। मराठे ने बताया कि सावरकर ने लालबहादुर शास्त्री को समझौते के लिए ताशकंद जाने से मना किया था। फिर भी न जाने किसके दबाव से शास्त्री जी वहाँ गए! नतीजा सामने है। इससे पूर्व पुस्तक के लेखक डाॅ अमित राय जैन ने अपनी किताब के बारे में बताया। साथ ही यह भी बताया कि इस पुस्तक को लिखने की जरूरत क्यों पड़ी। मंच संचालन राकेश मंजुल ने किया। धन्यवाद ज्ञापन किताबवाले प्रकाशन के प्रबंध निदेशक प्रशांत जैन ने किया। इस अवसर पर सरगुजा विश्वविद्यालय, अम्बिकापुर के कुलपति प्रोफेसर अशोक सिंह, पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय शेखावाटी (सीकर) के कुलपति डाॅ अनिल कुमार राय अंकित, महाराजा भतृहरि विश्वविद्यालय, अलवर के कुलपति प्रो शीलसिंधु पाण्डेय, देवनगिरि विश्वविद्यालय, कर्नाटक के कुलपति बी डी कुम्बर समेत कई गण्यमान्य लोग उपस्थित रहे।