अथाह ब्यूरो
नई दिल्ली। स्वस्थ जीवन के तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन पांच से सात नवंबर तक गांधी दर्शन राजघाट में हो रहा है। इस कार्यक्रम का उद्घाटन पांच नवंबर को उत्तरप्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही करेंगे। इसके मुख्य आयोजक अवसर ट्रस्ट और स्पांसरकर्ता गांधी दर्शन और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र है। इस प्रशिक्षण शिविर में देश भर से एक हजार से अधिक प्रतिभागियों के भाग लेने की संभावना है। प्रशिक्षण शिविर में मोटे अनाज के फायदे और इसके बनाने और खाने की विधि भी विस्तार बताई जाएगी। प्रशिक्षण शिविर में देश भर के दो दर्जन मिलेट्स उत्पादकों का स्टाल भी लगाया जा रहा है। डा. खादर यह बताएंगे कि कैसे आहार को ही अपनी औषधि बना सकते हैं।
समारोह के आखिरी दिन सात नवंबर को हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे। इस शिविर में मिलेट्स मैन के नाम से मशहूर पद्मश्री डा. खादर वली प्रशिक्षण देंगे और बताएँगे कि किस प्रकार हम मोटे अनाज से किसी भी गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज कर सकते हैं। वे खाद्य और पोषण विशेषज्ञ हैं, जो मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, हृदय रोग आदि जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए मिलेट्स के सेवन की कारगर विधि बताते हैं। आंध्रप्रदेश के डा. खादर वली इन दिनों मैसूर में रह रहे हैं और कृषि विज्ञान पर शोध के साथ देश के किसानों को मोटे अनाज उगाने के लिए तो प्रेरित कर रहे हैं, साथ ही लोगों को भी गेहूं चावल की जगह मोटे अनाज का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
एक स्वतंत्र वैज्ञानिक 66 वर्षीय डा. वली ने खाद्य और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत सारी परियोजनाओं पर काम किया है। वे 20 सालों से मोटे अनाज की पैरवी के साथ ही गेहूं, चावल और चीनी के नुकसान से भी लोगों को अवगत करा रहे हैं। उनका मानना है कि लोगों के जीवन शैली में विकार ऐसे ही भोजन से आ रहे हैं। डॉ वली ने अपने चुने पांच मोटे अनाजों का मिश्रण को ह्लश्रीधान्यह्व नाम दिया इसके लिए उन्होंने खडू कृषि पद्धति को प्रोत्साहित किया। इनके जरिए उन्होंने हजारों लोगों का इलाज भी किया। कई बीमारियों को ठीक करने में मददगार इन मोटे अनाजों का उत्पादन आने वाले में क्रांतिकारी रूप से बढ़ेगा जिसका फायदा भारत उठा सकता है। वह मिलेट्स खाने के फायदों की वकालत कर रहे हैं। वह मिट्टी की उर्वरता को बचाने और सही प्रकार की कृषि पद्धतियों का प्रयोग जल संचय और पर्यावरण समृद्धि पर भी सार्थक कार्य कर रहे हैं।