कहीं दलबदलुओं से उकताने तो नहीं लगी जनता, या संगठन की कमजोरी से हारे चुनाव
अथाह ब्यूरो लखनऊ। घोसी में हुए विधानसभा उप चुनाव में एक बार फिर समाजवादी पार्टी प्रत्याशी को जीत हासिल हुई। 2022 में भी इस सीट पर सपा जीती थी, लेकिन 22 हजार वोटों से। लेकिन इस बार जीत का आंकड़ा 42 हजार को पार कर 43 हजार के मुहाने तक पहुंच गया। सपा ने जहां अपना किला बचाया है, तो भाजपा को मंथन करना होगा कि वह क्यों हारे। क्या आयाराम गयाराम की प्रवृत्ति ने उसे नुकसान पहुंचाया अथवा दारा सिंह चौहान को वापस पार्टी में शामिल कर भाजपा ने गलती कर दी। बता दें कि दारा सिंह चौहान मऊ जिले की राजनीति में बड़ा नाम है। वे दो बार राज्यसभा जा चुके हैं तो एक बार लोकसभा जा चुके हैं। योगी 1.0 सरकार में दारा सिंह चौहान वन एवं पर्यावरण मंत्री थे। लेकिन वे हवा का रूख नहीं भांप सके और मंत्री पद छोड़कर सपा में शामिल हो गये। सपा ने उन्हें घोसी से टिकट दिया और वे फिर से 22 हजार वोटों से जीतकर विधानसभा पहुंच गये। लेकिन दारा सिंह सपा की सरकार न बनने से परेशान थे। उन्होंने फिर पलटी मारी और भाजपा में शामिल हो गये। पार्टी बदलने के कारण उन्हें विधानसभा से इस्तीफा दिया तथा इस बार के उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बनकर फिर जनता के बीच वोट मांगने पहुंच गये। दारा सिंह को भाजपा ने भी लगे हाथ ऐसे लिया जैसे कोई हीरा उसके हाथ लग गया। लेकिन घोसी की जनता ने बार बार दल बदलने वाले दारा सिंह को पटखनी दे दी। वह भी 42 हजार से ज्यादा वोटों से। इस चुनाव के संबंध में राजनीति विशेषज्ञ यह मानकर चल रहे थे कि चुनाव आसान नहीं है, लेकिन चाहे वोटों से जीते भाजपा जीत जायेगी। इस मामले में राजनीतिक पंडित भी सही आंकलन नहीं कर सके। भाजपा सूत्रों के अनुसार दारा सिंह चौहान की भाजपा में वापसी को पार्टी के ही स्थानीय नेता और कार्यकर्ता पचा नहीं पा रहे थे। उनका कहना था कि जो कल तक पानी पी पीकर भाजपा को कोस रहे थे अब उनकी जिंदाबाद कैसे करें। इसके साथ ही पार्टी समर्थक और कार्यकर्ता चाहते हैं कि आयाराम गया राम की प्रवृत्ति पर रोक लगे। इसके साथ ही पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं को सम्मान दिया जाये। अब भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी है। उसे अब इस हार से सबक लेते हुए मंथन करना होगा कि चूक कहां हुई। खतौली सीट तो रालोद ने भाजपा से छीनी थी, लेकिन यह सीट सपा से छीनने की तैयारी थी। लेकिन जिस दारा सिंह चौहान के बूते भाजपा यहां मैदान में उतरी वह दारा सिंह खुद ही चूक गये। इसके साथ ही संगठन को फिर से नये सिरे से कसने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। राजनीति के जानकारों का यह भी मानना है कि संगठन की खामी भी इसके लिए कहीं कहीं जिम्मेदार है। हालांकि भाजपा के समर्थक इस हार पर यह टिप्पणी करते हैं कि हम तो मऊ को मुख्तार के आतंक से बचाना चाहते थे।