मंथन: भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों की घोषणा होने के साथ ही पंजाबी समाज को प्रतिनिधित्व देने को लेकर पार्टी में सवाल खड़े होने लगे हैं।
सभी जातियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के साथ ही कमेटी में पंजाबी समाज को दर किनार किये जाने पर पंजाबी समाज में नाराजगी नजर आ रही है। प्रदेश पदाधिकारियों में अनुसूचित जाति के आठ, पिछड़ों में से 12, ब्राह्मणों में सात, वैश्य छह, ठाकुर छह, दो भूमिहार शामिल है। लेकिन पंजाबी समाज का प्रतिनिधित्व नगण्य है।
कहने को कोषाध्यक्ष पद दिया गया है। लेकिन कोषाध्यक्ष की भूमिका सीमित रहती है। यदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश को देखा जाये तो इस क्षेत्र के तकरीबन हर शहर एवं यहां तक की हर मोहल्ले में पंजाबी समाज के लोग रहते हैं।
बावजूद इसके पार्टी का पूरा ध्यान ब्राह्मण, वैश्य, जाट, अनुसूचित जाति, ठाकुर पर है। पंजाबी समाज की अनदेखी का मुद्दा पहले भी समय समय पर उठता रहा है। पश्चिमी के प्रमुख जिलों जिनमें गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर में पंजाबी मतदाता लाखों की संख्या में है।
पंजाबी समाज इन सभी शहरों में चुनाव परिणाम बदलने की स्थिति में है। बावजूद इसके सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाली भाजपा में पंजाबी समाज हाशिये पर नजर आ रहा है। भाजपा के ही पुराने कार्यकर्ता इस मामले में अभी दबे स्वर में नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। समाज के एक बुजुर्ग कार्यकर्ता कहते हैं कि गाजियाबाद शहर में देखा जाये तो वैश्य समाज से विधायक, राज्यसभा सदस्य एवं विधान परिषद प्रत्याशी है।
बावजूद इसके प्रदेश पदाधिकारियों की सूची में भी वैश्य वर्ग को ही तरजीह दी गई है। इसको लेकर सवाल भी उठाये जा रहे हैं। यदि जन प्रतिनिधियों में देखा जाये तो इसमें भी पंजाबी समाज को किनारे किया जाता रहा है। अब यह भाजपा नेतृत्व को देखना है कि इस समाज को वह कैसे संतुष्ट कर पाता है। पंजाबी समाज को हाशिये पर रखने पर आने वाले समय में भाजपा को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
मंथन—————————————————————————————–Manthan