Dainik Athah

सपा प्रत्याशी पूनम यादव ने अपने दम पर ही लड़ा चुनाव

  • प्रत्याशी के मैदान में आने के बाद घोषित हुए जिला- महानगर अध्यक्ष
  • सपा की जिला व महानगर कमेटियां तक नहीं बन सकी
  • अपने दम पर इतने वोट पाना किसी के लिए नहीं था आसान

अथाह संवाददाता
गाजियाबाद
। निकाय चुनाव संपन्न हो गये। निकाय चुनाव में प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी पूनम यादव चाहे चौथे नंबर पर रही हो, लेकिन इस चुनाव ने पूनम यादव के साथ ही उनके पति सिकंदर यादव को एक नयी पहचान दी है। जानकारों का मानना है कि यदि गठबंधन ने मजबूती दिखाई होती और सपा की कमेटियां पहले घोषित हो जाती तो परिणाम कुछ और ही होते। बता दें कि गाजियाबाद में प्रत्याशी की घोषणा पहले, जिला व महानगर अध्यक्ष की घोषणा बाद में हुई थी। ऐसे में नये अध्यक्ष भी उतना नहीं कर सके जितना करना चाहिये था।
गाजियाबाद महापौर चुनाव में सपा प्रत्याशी पूनम यादव करीब 58 हजार मत पाकर चौथे स्थान पर रही। जबकि हर कोई यह मानकर चल रहा था कि मुकाबला भाजपा और सपा के बीच है। कांग्रेस में जहां गुटबंदी हावी थी, प्रत्याशी गाजियाबाद के लिए अनजान थी, बसपा का कार्यालय बंद रहता था, बावजूद इसके कांग्रेस और बसपा प्रत्याशी के नंबर दो एवं तीन पर आना आश्चर्य में डाल रहा है। पूनम यादव के पति सिकंदर यादव पूर्व में बसपा में थे, चुनाव से पहले उन्होंने सपा में शामिल होने की घोषणा की। इसके बाद पीएन गर्ग की पत्नी का टिकट काटकर पूनम यादव को टिकट दिया गया।

जिस समय पूनम यादव को टिकट मिला उस समय सपा की जिला व महानगर कमेटियां भी भंग थी। जिला व महानगर अध्यक्ष की घोषणा भी प्रत्याशी घोषित होने के बाद की गई। ऐसे में महानगर अध्यक्ष वीरेंद्र यादव एवं जिलाध्यक्ष फैसल हुसैन अपना कार्यभार भी ग्रहण नहीं कर पाये और चुनाव मैदान में उतरना पड़ा। दूसरी तरफ पूर्व जिला और महानगर अध्यक्ष पर्दे से ही पूरे चुनाव में गायब हो गये। यह ऐसा था कि जैसे उनकी दुनिया ही लुट गई हो। ऐसे में पूनम यादव के पति को महानगर अध्यक्ष एवं कुछ पुराने कार्यकर्ताओं के सहारे अकेले मैदान में उतरना पड़ा। बावजूद इसके जिस प्रकार उन्होंने 58 हजार मत प्राप्त किये वह कोई कम नहीं है। सपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता का कहना है कि जितने वोट मिले वह सिकंदर यादव एवं उनकी टीम की मेहनत है।

गठबंधन कहीं नहीं दिखा चुनाव में
कहने को सपा- रालोद और आसपा का गठबंधन है। लेकिन महापौर चुनाव में यह गठबंधन कहीं नजर नहीं आया। रालोद के नेता भी पूरे चुनाव में कहीं नजर नहीं आये। इसका असर भी चुनाव पर पड़ा। एक अन्य वरिष्ठ नेता कहते हैं कि जिस प्रकार वार्डों में प्रत्याशी खड़े थे वे भी अपना ही चुनाव देख रहे थे। एक पूर्व विधायक भी पर्दे से गायब थे। जाट बहुल गांवों में सपा को अपेक्षा को अनुरूप मत नहीं मिल सके।

जहां ईवीएम से चुनाव वहीं क्यों जीती भाजपा
सपा के वरिष्ठ नेता धर्मवीर डबास कहते हैं कि जहां जहां भी ईवीएम से चुनाव थे वहां वहां ही भाजपा की जीत हुई। जैसे ही मत पत्र के मैदान में उतरे विपक्ष के प्रत्याशी सत्तारूढ़ पार्टी पर भारी पड़े। इससे स्थिति समझी जा सकती है कि कहीं न कहीं गोलमाल तो है।

अखिलेश आते तब भी स्थिति कुछ और होती

जानकारों का मानना है कि यदि सपा प्रमुख अखिलेश यादव चुनाव के दौरान आते और रोड शो करते तब भी परिस्थितियां बदल सकती थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यह बात हर जानकार को कटोच रही है कि आखिर सपा चौथे नंबर पर कैसे पहुंची। जबकि मुस्लिम मतों का बड़ा हिस्सा सपा को मिलना चाहिये था।

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