- बाबा की गर्जना के बाद उजागर हुआ करोड़ों की भूमि पर कब्जे का मामला
- ध्वस्तीकरण के आदेश फाइल में ही तोड़ रहे हैं दम
अथाह संवाददाता
ग़ाज़ियाबाद। सूबे के मुख्यमंत्री की शहरी क्षेत्रों में अवैध कब्जों के खिलाफ सिंह गर्जना के बाद ही ग्राम सदरपुर में करोड़ों रुपए की सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे व निर्माण का सनसनीखेज मामला अचानक सामने आया है। सनसनीखेज इसलिए क्योंकि एक सोशल एक्टिविस्ट ने तमाम सबूतों के साथ प्राधिकरण की एक जिम्मेदार अधिकारी पर ही भू माफियाओं को संरक्षण देने का आरोप लगाया है। दस्तावेजी सुबूत बताते हैं कि नगर निगम, प्राधिकरण, एवं मंडल आयुक्त कार्यालय के कुछ अधिकारियों की अनदेखी की वजह से सरकार की लगभग 50 करोड़ रुपए की बेशकीमती भूमि पर अवैध कब्जा हो गया है। मतदान कार्यों में व्यस्त होने के कारण इस प्रकरण पर कोई अधिकारी कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। वहीं मौके पर सरकारी भूमि पर निर्माण कार्य धड़ल्ले से चल रहा है। गौरतलब है कि सोशल एक्टिविस्ट आर. एल. गुप्ता ने बुधवार को जीडीए उपाध्यक्ष को प्रेषित पत्र में तथ्यों सहित अवगत कराया था कि सदरपुर गांव की लगभग 5 बीघा सरकारी भूमि पर कुछ तथाकथित भू माफियाओं ने कब्जा कर अवैध निर्माण प्रारंभ कर दिया है। गुप्ता अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने करोड़ों रुपए की इस बेशकीमती भूमि पर हो रहे तथाकथित कब्जे के खिलाफ मुहिम छेड़ी हो। जीडीए के दस्तावेज और रतन सिंह व हरपाल आदि की पूर्व में की गई शिकायतें भी बताती हैं कि ग्राम सदरपुर की खसरा संख्या 370 (जो किसी भी खेतिहर या अन्य व्यक्ति के नाम दर्ज नहीं है) पर कब्जे की साजिश दशकों से चली आ रही है। जीडीए के दस्तावेज बताते हैं कि अपने कार्यकाल में तत्कालीन सचिव रविंद्र गोडबोले ने 7 बार नगर निगम को इस भूमि पर भू माफियाओं द्वारा कब्जा करने की जानकारी दी थी। कमाल तो यह है कि प्राधिकरण के तत्कालीन सचिव के एक भी पत्र का जवाब देना निगम अधिकारियों ने जरूरी नहीं समझा। जीडीए के तहसीलदार की हाल की जांच आख्या से स्पष्ट है कि ग्राम सदरपुर की खसरा संख्या 317 की 1.050 हेक्टेयर भूमि प्राधिकरण द्वारा अर्जित नहीं है। जीडीए प्रवर्तन विभाग जोन-3 के अवर अभियंता व सहायक अभियंता की प्रवर्तन जोन-3 की प्रभारी को प्रेषित हालिया जांच आख्या में स्पष्ट रुप से लिखा गया है कि निर्माणकर्ता भूमि के स्वामित्व के बाबत कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए। लिहाजा उक्त निर्माण के खिलाफ ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाना उचित होगा। गौरतलब है कि सोमवार को मुख्यमंत्री ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे के विरुद्ध बुलडोजर चलाने के आदेश दिए हैं। सरेआम हो रहे इस अवैध कब्जे व निर्माण के विरुद्ध ध्वस्तीकरण के आदेश देना तो एक तरफ जीडीए के संबंधित अधिकारी शुतुरमुर्ग की तरह आंख बंद किए बैठे हैं। जीडीए का ही लगभग एक साल पुराना दस्तावेज कथित तौर पर इस बात का भी प्रमाण है कि एक जिम्मेदार अधिकारी ने करोड़ों रुपए की इस भूमि को भू माफियाओं को ही थाली में उपहार स्वरूप परोस ही दिया है। शिकायतकर्ता का आरोप है कि जीडीए में कार्यरत सुपरवाईजर सतपाल इसी गांव का निवासी है तथा नियम के विरुद्ध लिपिक के स्थान पर लगभग 10 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत हैं। श्री गुप्ता का कहना है कि जीडीए कर्मचारियों, अभियंताओं, अधिकारियों व कब्जा धारकों का यह एक संगठित गिरोह मालूम पड़ता है। लिहाजा मौके पर निरीक्षण एवं निष्पक्ष जांच कराकर अवैध रूप से लगभग 50 करोड़ की सरकारी भूमि को भूमाफियाओं से मुक्तः कराते हुए उनके विरूद्ध कार्यवाही की जाए।——-