- यूपी कैबिनेट में 22 प्रस्ताव पास
- सरकार ने दी मंजूरी, राज्यपाल को भेजा जायेगा प्रस्ताव
अथाह ब्यूरो
लखनऊ। पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के मद्देनजर नगर पालिका परिषद और नगर निगम अधिनियम में संशोधन को कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है। इसे अब राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। इसके बाद नये सिरे से निकाय चुनाव का आरक्षण जारी किया जायेगा।
नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों समेत सभी वर्गों के लिए सीटों का आरक्षण तय करने के लिए सरकार अध्यादेशा लाएगी। प्रस्तावित अध्यादेश के मसौदे को कैबिनेट ने बुधवार को मंजूरी दे दी है। बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में सामान्य नगरीय निकाय निर्वाचन-2023 उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम-1916 एवं उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 में संशोधन करने से संबंधित अध्यादेश के मसौदे को मंजूरी देते हुए उसे राज्यपाल को भेजने की सिफारिश की गई है। वहां से मंजूरी मिलने के बाद आरक्षण की नई व्यवस्था लागू हो जाएगी और निकाय प्रमुखों के प्रस्तावित आरक्षण जारी कर दिए जाएंगे।
यह जानकारी देते हुए नगर विकास मंत्री एके शर्मा ने बताया कि सरकार ने तय किया है कि निकाय चुनाव में पिछड़ा समेत सभी वर्गों को नियमानुसार आरक्षण दिया जाए। इसी कड़ी में सरकार ने पांच दिसंबर को आरक्षण की अधिसूचना जारी की गई थी, लेकिन कुछ लोगों की आपत्तियों की वजह से मामला हाईकोर्ट चला गया था। हाईकोर्ट के आदेश पर उत्तर प्रदेश राज्य स्थानीय निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 31 मार्च तक रिपोर्ट सौपने का निर्देश दिया था। आयोग ने इसके पहले 9 मार्च को ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट को मान्य कर दिया है।
उन्होंने बताया कि पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के मद्देनजर नगर पालिका परिषद और नगर निगम अधिनियम में संशोधन करने की जरूरत थी। इसके लिए कैबिनेट से अनुमति मांगी गई थी जो मिल गई है। इसे अब राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन में अधिसूचना जारी करने से संबंधित प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए थे। इसलिए प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
एके शर्मा ने कहा कि अध्यादेश को राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद नगर निगमों में महापौर और नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतों में अध्यक्ष की सीटों का आरक्षण किया जाएगा। सीटों के आरक्षण प्रक्रिया पूरी करने के बाद इसकी अनंतिम अधिसूचना जारी की जाएगी। उन्होंने कहा निर्वाचन आयोग अपना काम करेगा और सरकार अपना काम तेजी से कर रही है।
कैबिनेट की मंजूरी के बाद अधिनियम में संशोधन संबंधी अध्यादेश के मसौदे को राज्यपाल की मंजूरी के लिए देर रात ही राजभवन भेज दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि चुनावी जरूरतों को देखते हुए राज्यपाल बृहस्पतिवार को इस अध्यादेश को मंजूरी दे सकती हैं। इसके बाद सरकारी प्रेस में छपने के बाद नगर पालिका परिषद और नगर निगम अधिनियम में संशोधन संबंधी अधिसूचना जारी की जाएगी। इसके तुरंत बाद नगर निगम महापौर, पालिका परिषद अध्यक्ष और नगर पंचायतों में अध्यक्ष की सीटों के आरक्षण की सूची जारी की जा सकती है।
इसके साथ ही अमरोहा की ”दि किसान सहकारी चीनी मिल्स गजरौला” की पेराई क्षमता 2500 टीसीडी है। इसे 4900 टीसीडी करते हुए इसे सल्फरलेस रिफाइंड शुगर मिल के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके अलावा उप्र राज्य चीनी निगम लि. की मोहिउद्दीनपुर चीनी मिल में बी-हैवी शीरे पर आधारित 60 केएलपीडी क्षमता की आसवनी की स्थापना को भी कैबिनेट ने हरी झंडी दे दी।
35 लाख युवाओं को मिलेंगे टैबलेट और स्मार्टफोन, 2022-23 के लिए होगा वितरण
विवेकानंद युवा सशक्तिकरण योजना के तहत प्रदेश के 35 लाख युवाओं को टैबलेट और स्मार्टफोन वितरित किए जाएंगे। योगी कैबिनेट की बुधवार को आयोजित बैठक में टैबलेट और स्मार्टफोन वितरण के लिए अंतिम निविदा अभिलेख को मंजूरी दी गई। वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि योजना के तहत पांच वर्ष में दो करोड़ युवाओं को टैबलेट और स्मार्टफोन देने का लक्ष्य रखा गया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए 10 लाख युवाओं को टैबलेट और 25 लाख युवाओं को स्मार्टफोन वितरित किए जाएंगे। निविदा अभिलेख को मंजूरी दी गई है, जल्द निविदा कराकर पात्र युवाओं को इनका वितरण किया जाएगा।
गन्ना विकास के लिए जिला योजना के तहत गन्ने के बीज एवं भूमि उपचार एवं पेड़ी प्रबंधन के लिए अलग अलग दो योजनाओं में अनुदान की व्यवस्था थी। यह अनुदान इसके लिए प्रयुक्त होने वाले रसायन पर दिया जाता है। पेड़ी प्रबंधन में रसायन लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 150 रुपये प्रति हेक्टेयर, बीज शोधन एवं भूमि उपचार के लिए लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 500 रुपये दिया जाता था। अब दोनों ही योजनाओं को मिलाते हुए अनुदान की लागत अधिकतम 900 रुपये प्रति हेक्टेयर कर दी गई है। दरअसल यह व्यवस्था वर्ष 2012 से चली आ रही थी और किसान बार बार इसमें बढ़ोतरी की मांग कर रहे थे।