निकाय चुनाव के बाद होगा विचार, वैसे भी कम संख्या में हटने थे जिला- महानगर अध्यक्ष
अशोक ओझा
लखनऊ। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव को हरी झंडी देने के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में खुशी है। लेकिन सबसे अधिक पार्टी के जिला व महानगर अध्यक्षों में है। इस निर्णय के बाद उन्हें एक प्रकार से दो से तीन महीनों के लिए संजीवनी मिल गई।
बता दें कि शनिवार को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने प्रदेश भाजपा की नयी टीम घोषित की थी। इस टीम के साथ ही प्रदेश के सभी क्षेत्रीय अध्यक्षों को बदल दिया गया। हालांकि क्षेत्रीय अध्यक्षों को प्रदेश टीम में जगह दी गई है। लेकिन प्रदेश टीम घोषित होने के बाद अगली तलवार प्रदेश के जिला व महानगर अध्यक्षों पर लटक गई थी। यह उम्मीद जताई जा रही थी यदि सर्वोच्च न्यायालय से निकाय चुनाव को हरी झंडी नहीं मिली तो इन पदों पर भी बदलाव हो सकता है। लेकिन इस निर्णय ने पूरे प्रदेश के जिला व महानगर अध्यक्षों को संजीवनी दे दी।
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार जिस प्रकार प्रदेश टीम में बड़ा बदलाव नहीं हुआ था उसी प्रकार जिला व महानगर अध्यक्षों में बड़े बदलाव की उम्मीद कम ही थी। लेकिन जिन अध्यक्षों की शिकायतें लगातार आ रही थी उनका बदला जाना भी तय माना जा रहा था। लेकिन अब सभी अध्यक्ष निकाय चुनाव की तैयारियों में लग जायेंगे। इतना ही नहीं प्रदेश भी इनसे छेड़छाड़ करने के मूड में नहीं है। इसका कारण यह है कि चुनाव के समय यह बदलाव पार्टी के हित में नहीं रहेगा।
सूत्रों की मानें तो आगे भी जो अध्यक्ष बदले जायेंगे उनके प्रदर्शन को बदलने का आधार बनाया जायेगा। इसके साथ ही यह देखा जायेगा कि जन प्रतिनिधियों से उनका तालमेल कितना है। इसके साथ ही पार्टी की तरफ जो कार्यक्रम दिये जा रहे हैं उन कार्यक्रमों में उनका प्रदर्शन कैसा है। लेकिन आने वाले समय में जब भी बदलाव होगा उस समय निकाय चुनाव का प्रदर्शन भी आधार होगा। जिन जिलों में पार्टी का निकाय चुनाव का प्रदर्शन बेहतर नहीं होगा वहां के अध्यक्षों को किसी भी प्रकार की छूट अथवा बख्शने को पार्टी नेतृत्व तैयार नहीं है। हालांकि कुछ अध्यक्ष निकाय चुनाव में टिकट मांग रहे हैं ऐसे में वे जिले स्वत: ही खाली हो जायेंगे। अब निकाय चुनाव क्षेत्रीय अध्यक्षों के साथ ही जिला व महानगर अध्यक्षों की परीक्षा होंगे।
निकाय चुनाव में शिकायत आने पर होंगे आऊट
पार्टी सूत्रों के अनुसार निकाय चुनाव में अध्यक्षों की कार्य प्रणाली पर नेतृत्व की पैनी नजर रहेगी। यदि कोई शिकायत मिलती है और वह सही साबित होती है तो ऐसे में उस अध्यक्ष का आऊट होना भी तय माना जा रहा है।