Dainik Athah

” भारत की आत्मा चिरंजीवी हो”

अरविंद भाई ओझा

 स्वतन्त्र लेखक

विद्या भारती प्रान्त कार्यकारिणी के सदस्य

आज हम आजादी की 74 वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं। निसन्देह 15 अगस्त 1947 का दिन भारत के लिए महत्वपूर्ण दिन था क्योंकि भारत शताब्दियों के सतत संघर्ष के बाद अपनी भूमि पर अपने स्वराज्य के स्वप्न को साकार होते देख रहा था। भारत के जन जन ने देखा लाल किले पर यूनियन जैक के स्थान पर तिरंगा ध्वज फहराया गया परन्तु इसके की माह बाद तक भी गवर्नर हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) और राज्यों के गवर्नर हाउसों पर यूनियम जैक ही फहराता रहा न कि हमारा तिरंगा ध्वज। सारा देश खुशियां मन रहा था और कह रहा था हम स्वतन्त्रता की लड़ाई जीत गए हम आजाद हो गए लेकिन सबके अन्तःकरण में एक बात छुपी थी जिसे आजादी की खुशी में उपेक्षित कर दिया गया 2 जून 2947 के वह काला दिवस जब पराधीन भारत में ब्रिटिश सत्ता के सर्वोच्च प्रतिनिधि ने भारत विभाजन की घोषणा कर दी और इस घोषणा के द्वारा द्वि राष्ट्रवाद के आधार भारत माता को खंडित कर स्वतन्त्र मुस्लिम राज्य (पाकिस्तान) की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर दिया गया । हमारे देश के नेताओं ने सत्ता के लोभ में इस विभाजन को स्वीकार कर एक कृत्रिम राष्ट्र निर्माण किया गया जो अव्यवहारिक था।

इस विभाजन के साथ ही पहली बार भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रीयता की अवधारणा को उपेक्षित कर राजनीतिक विचारों का चोला पहनाकर भारत राष्ट्र के स्थान पर एक भारत राज्य के रूप में स्थापित किया गया । इस बंटवारे पर हम खुशी मन रहे थे परन्तु इस बंटवारे की स्वीकृति से भारत राष्ट्र का विभाजन भी हुआ और अपनों का नरसंहार भी हुआ। अगर अंग्रेजों की इस योजना के प्रति दृढ़ नीति अपनाई गई होती तो हमें मिलता अखण्ड भारत, पूर्ण स्वराज्य और न्यूनतम रक्तपात। किंतु कोंग्रेस का बूढ़ा नेतृत्व इस चुनौती का सामना न कर सका और राष्ट्र के विभाजन को गले लगा लिया ।

इस विभगजन को स्वीकार करने से अपना ही देश विदेश और अपने ही लोग पराये (विदेशी) हो गए। इस शांति  बंटवारे में इतना बड़ा नरसंहार हुआ जिसमें पुत्र के सामने ही माता और बहन का शील भंग किया गया। परिवार आपस में बिछड़ गये और वो यह भी नहीं जानते थे कि हममें से कौन जिंदा हैं और कौन मर गया। देश मरण एकतरफ इस प्रकार की घटनाएं घाट थीं दूसरी ओर दिल्ली में आजादी की खुशियां मनाई जा रही थी।

   विभाजन से पूर्व की घटनाएं बताती हैं कि 1857 में भारत की आजादी की स्वतंत्रता का प्रयास हिन्दू-मुस्लिम के द्वारा साथ साथ किया गया । 1857 में हिंदुओं ने दिल्ली के बूढ़े मुस्लिम शासक को राजा घोषित किया क्योंकि राजधानी पर कब्जा कर अंग्रेजों से मुक्ति की घोषणा हो जाएगी। क्योंकि शिवजी महाराणा प्रताप लक्ष्मीबाई तात्याटोपे सहित कई हिन्दू शासकों को मुस्लिमों ने अपना शासक मान लिया था। मुस्लिम मानता था हम यहीं पैदा हुए हैं और हमें यहीं हिंदुओं के साथ रहना है अब शासक कोई हिन्दू हो या मुसलमान क्या फर्क पड़ता है बस उनकी आस्था का केंद्र भारत के बाहर था और वहां जाना हो तो हो न हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि कट्टर मुस्लिम व्यवस्था लागू करने वाले मुस्लिम शासक तक हज नहीं गए थे या नहीं जा सके थे। यही कारण था कि मो0 इकबाल कहता है कि “कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियीं रहा है दौरे जहाँ हमारा”

पर खिलाफत आंदोलन ने पहलीबार भारतीय  मुस्लिमों को आभास करवाया की उनका शासक (खलीफा) कोई और है जो भारत में नहीं भारत के बाहर है।उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज तक भारत का मुसलमान अपने आस्था के केंद्र के साथ साथ अपना शासक भी भारत के बाहर ही खोजने लगा है। सभी आंदोलन भी साथ साथ लड़े परन्तु निर्णायक दौर में मुसलमानों के नाम पर मुस्लिम लीग के लोगों ने आजादी के सँघर्ष की कीमत मांग ली जिसे मुस्लिम समाज की मांग मान कर प्रस्तुत किया गया जबकि ये सही नहीं था। मुस्लिम लीग भारत के सभी मुस्लिमों का नेतृत्व करती है इसी अवधारणा ने जिन्ना और इकबाल को कॉंग्रेस छिड़ने को मजबूर किया क्योंकि कॉंग्रेस चाहती थी गोलमेज सम्मेलन में मुस्लिम लीग मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करे जबकि जिन्ना स्वयं के लिए कह रहे थे ऐसे ही कुछ कारणों से जिन्ना और इकबाल जैसे लोग कॉंग्रेस से अलग हो गए। मुस्लिम कॉंग्रेस के साथ जुड़ा रहे इसके लिए मुस्लिम तुष्टिकरण नीति अपनाई गई ।   

जिस राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम को गा कर क्रांतिकारी फांसी के फंदे पर चढ़ गए उस राष्ट्रगीत, राष्ट्र पुरुष , राष्ट्र ध्वज (भगवा रंग) राष्ट्र भाषा तक के आग्रह को कांग्रेस के द्वारा छोड़ दिया गया जिसके परिणामस्वरूप भारत माता के विभाजन को स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकारमुस्लिम लीग ने बिना जेल जाए केवल धमकी के बल पर एक राज्य प्राप्त कर लिया। उस बंटवारे के कारण हजारों हिन्दू-मुस्लिम युवाओं जिन्होंने जंगलों में भूखे-प्यासे रहकर   सँघर्ष किया तथा आजादी के लिए अपनी जान दे दी ऐसे शहीदों का बलिदान व्यर्थ चला गया । कॉंग्रेस लाहौर में खाई पूर्ण स्वराज्य की शपथ को भूल गई गांधी जी ने तो यहां तक कह दिया “मेरे जीवन का स्वप्न मिट्टी में मिल गया” इस प्रजार 15 अगस्त 1947 को हमें खण्डित आजादी मिली।

    जितना भारत का विभाजन सत्य है उतना ही भारत का एकीकरण भी सत्य है। विश्व के अनेकों राष्ट्रों का कृत्रिम विभाजन किया गया और आज वो फिर एकीकृत हैं। आवश्यकता है स्वप्न सजोने की जब यहूदी हजारों वर्ष तक ऊनी मातृभूमि से अलग रह कर भी उसे वापस प्राप्त कर सकता है तो हम क्यों नहीं प्राप्त  कर सकते । जब आपस में लड़ने वाले यूरोपीय राष्ट्रों के आर्थिक महासंघ बन सकता है तो हमारा क्यों नहीं बन सकता । भारत के एकीकरण को स्वप्न मानने की भूल न करें क्योंकि हम उस सौभाग्यशाली पीढ़ी के व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी आंखों से सोवियत संघ जैसी महाशक्ति को विभक्त होते हुए और बर्लिन की दीवार को तोड़कर जर्मन को एकीकृत होते और हाल ही में शताब्दियों की प्रतीक्षा के बाद श्रीराम मंदिर के पुनर्निर्माण को प्रारम्भ होते देखा है। 

    भारत का एकीकरण सम्भव है और इस संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । पाकिस्तान का निर्माण भारत विरोधी राज्य के रूप में हुआ है इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान सहित भारत के पड़ोसी राज्यों (राष्ट्रों) में भारत विरोध की मूल भावना को उभारने के प्रयास होते रहते हैं। 

राष्ट्रवाद किसी भी वाद साम्यवाद, माओवाद से लेकर पूंजीवाद सभी का सवाया या ड्योढ़ा ही होता है। इसलिए समय समय पर भारत राष्ट्र के विभाजित अंगों को अपनी मूल संस्कृति को पहचानने की आवश्यकता है जब उसे पहचानेंगे तो प्रह्लाद का मुल्तान, लव का लाहौर, चाणक्य की तक्षशिला, सिंधु, कटासराज, हिंगलाज, ननकाना साहिब चटगाँव, ढाकेश्वरी, नयूरेलिया, कोलंबो (कालीअम्बा), जनकपुर, पशुपतिनाथ दिखाई देंगे तब यह स्वीकार किया जाएगा कि ब्रिटिश के द्वारा किया गया भारत का विभाजन अप्राकृतिक अस्थायी विभाजन तर्कसंगत नहीं है और ये सब भारत के एकीकरण में सहायक होंगे । आवश्यकता है संकल्प शक्ति की क्योंकि किसी भी देश की सीमाएं इस देश की आत्मा और आंतरिक शक्ति पर निर्भर करती है इसलिए भारत की इस आंतरिक शक्ति को जगाने व बढ़ाने की आवश्यकता है। 

    जब बंगलादेश बांग्ला को अपनी राष्ट्रभाषा मान सकता है तथा पाकिस्तान बैसाखी को राष्ट्रीय दिवस घोषित कर सकता है और पाणिनि की 2000 वीं शताब्दी मनाता है मोहनजोदड़ो व हड़प्पा को मान्यता देता है , मोहम्मद बिन कासिम से सिंध की रक्षा करने वाले राजा दाहिर को राष्ट्र पुरुष मान सकता है प्रधानमंत्री भुट्टो अपने कक्ष में बुद्ध की प्रतिमा रखते हैं औऱ जियाउलहक पाकिस्तान एयरलाइंस की एयर हॉस्टेश साड़ी पहनने को पाकिस्तान की संस्कृति बता सकते हैं और ये सभी स्मृतियाँ भारत में भी समान रूप से विद्यमान है। इसलिए इन समान विषयों के आधार पर आगे बढ़ने की आवश्यकता है।    

 15 अगस्त को महर्षि अरविन्द का जन्म दिवस भी है 15 अगस्त 1947 को अपने जन्म दिवस पर महर्षि अरविन्द ने कहा था ” आज भारत ने राजकीय स्वाधीनता प्राप्त की है परन्तु भारत को अभी सांस्कृतिक और धार्मिक स्वाधीनता प्राप्त करनी बाकी है जिस प्रकार भी हो  जैसे भी हो विभाजन को समाप्त करना चाहिए क्योंकि भारत की भावी महानता इसी के गर्भ में छिपी है

” इसी प्रकार लोकनायक जयप्रकाश नारायण कहा करते थे ” भारत और पड़ोसी देशों के लोग एक ही राष्ट्र के वासी हैं भले ही हमारी राजनैतिक इकाई भिन्न भिन्न हो, हमारी राष्ट्रीयता सदा एक ही है और वह है भारतीयता इस प्रकार सभी महापुरुषों के चिंतन से स्पष्ट है कि भारत का एकीकरण क्यों आवश्यक है परंतु यह कैसे होगा यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।    

 श्रीमाँ (महर्षि अरविन्द की शिष्या) पुडुचेरी आश्रम में अखण्ड भारत के मानचित्र के के सामने बैठकर प्रार्थना करतीं थी । देश के पहले प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू जब अरविंदो आश्रम में गए तो श्रीमाँ से अखण्ड भारत जे मानचित्र में बदलाव करने को कहा तो श्रीमाँ ने कहा ” में फ्रांस से जिस भारत से प्रेरणा लेकर यहां आयी थी वो यही भारत है इसलिए सदैव अखण्ड भारत का मानचित्र अपने स्मरण में रखो जिससे हमारे अंदर यह भाव विद्यमान रहे कि भारत का विभाजन असत्य है उसको मिटाना ही चाहिए और यह मिटेगा । इसलिए  आवश्यकता है भारत की आत्मा को पहचानने की और वो है (अखण्ड भारत) जब तक अनुकूल अवस्था नहीं आ जाती तब तक हमें एक ही मन्त्र जपना चाहिए  *” भारत की आत्मा चिरंजीवी हो”*    

हम उन लोगों का स्मरण करें जो भारत माता की स्वतंत्रता का संकल्प लेकर देश की आजादी के लिए लड़े और अपने प्राण अर्पण किए और साथ ही उनका बलिदान भी स्मरण करें  जो 14 अगस्त की काल रात्रि में समा गए। 

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