प्रदेश की 68 फीसद पावर आॅफ अटार्नी गाजियाबाद- गौतमबुद्धनगर जिलों में
वर्षों से चल रहा था मिलीभगत से खेल
पावर आॅफ अटार्नी में अधिकांश दूसरे प्रदेशों अथवा दूसरे जिलों की
पावर आॅफ अटार्नी के जरिये जमीनें बेचने, मुआवजा लेने समेत अन्य अधिकार भी दिये गये
अशोक ओझा
गाजियाबाद। गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर जिलों में पावर आॅफ अटार्नी के माध्यम से जमीनों का बड़ा खेल चल रहा था। इसमें स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन विभाग के सब रजिस्ट्रारों के साथ ही गाजियाबाद, नोएडा, दादरी और जेवर तहसीलों के वकीलों- बैनामा लेखकों की बड़ी भूमिका रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि 2022 में प्रदेश की कुल पावर आॅफ अटार्नी में से 68 फीसद इन दोनों जिलों में हुई है। जबकि चालू वर्ष में दोनों जिलों का हिस्सा करीब 78 फीसद पाया गया है। अब इस मामले में एसआईटी जांच की सिफारिश करने के बाद शासन ने एसआईटी गठित कर दी है। जांच होने से अनेक लोग बेनकाब होंगे।
प्रदेश के स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन विभाग को शिकायत मिलने के बाद महा निरीक्षक निबंधन उत्तर प्रदेश कंचन वर्मा ने जनवरी से नवंबर 2022 तक के पावर आॅफ अटार्नी की जांच करवाने के लिए टीम का गठन किया। प्रदेश में 92520 पावर आॅफ अटार्नी पंजीकृत हुई जिसमें से गाजियाबाद एवं गौतमबुद्धनगर जिलों में 53013 पावर आॅफ अटार्नी पंजीकृत हुई। जो कुल का 57 फीसद से ज्यादा है। महानिरीक्षक निबंधन कंचन वर्मा के आदेश पर गठित टीम ने इन दोनों जिलों के साथ ही दिल्ली एवं हरियाणा जाकर जांच की गई। जांच में जो तथ्य सामने आये उसके अनुसार गाजियाबाद सदर के पांच सब रजिस्ट्रार कार्यालयों में इस अवधि में 37539 अटार्नी पंजीकृत हुई इनमें से 29425 प्रदेश के बाहर स्थित संपत्तियों की थी। जो कुल का 78 फीसद से अधिक है। प्रदेश के कुल अटार्नी का 57 फीसद से अधिक अकेले गाजियाबाद सदर में हुई। यह अपने आप में किसी अवैधानिक परंपरा का स्पष्ट प्रमाण है।
महानिरीक्षक निबंधन ने अपने आदेश में कहा कि गाजियाबाद सदर प्रथम में इस दौरान रविंद्र मेहता तैनात थे। उन्होंने परिधि से बाहर जाकर अटार्नी की। भारतीय स्टांप अधिनियम के तहत अटार्नी में किसी को अपनी तरफ से कार्य करने के लिए अधिकृत किया जाता है। जबकि इन अटार्नी में स्वतंत्र रूप से संपत्ति की बिक्री करने, मुआवजा लेने समेत अन्य अधिकार दिये गये। इसके साथ ही जिस प्रकार संपत्ति का एक ही तिथि में भिन्न भिन्न लोगों को अटार्नी की गई इससे यह साबित होता है कि इसमें बिल्डरों की भूमिका रही है।
पांच फरवरी को महानिरीक्षक निबंधन ने इस पूरे प्रकरण की जांच एसआईटी से करवाने की सिफारिश करते हुए कहा कि बगैर लेन देन के इतनी बड़ी संख्या में अटार्नी नहीं हो सकती। इसमें दस्तावेज लेखकों के साथ ही विभागीय अधिकारियों एवं मध्यस्थों की भूमिका की जांच करवाना भी आवश्यक है। उनके अनुरोध के बाद ही शासन स्तर से एसआईटी का गठन किया गया है।