Dainik Athah

एक अधिकारी ने स्वयं ही कर दिया पद सृजित, आवेदन भी मांगे

जीडीए में हो रही है महाराजा की ताजपोशी की तैयारी

आलोक यात्री
गाजियाबाद।
घर में नहीं दाने और अम्मा चली भुनाने, यह उक्ती इन दिनों जीडीए (गाजियाबाद विकास प्राधिकरण) के कामकाज पर पूर्ण रुप से चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। जीडीए के उपाध्यक्ष का दायित्व संभाल रहे आर. के. सिंह प्राधिकरण की आर्थिक सेहत के सुधार के प्रति काफी सतर्क हैं। उनकी इस सतर्कता को उनके ही अधीनस्थ पलीता लगाने का काम कर रहे हैं। जीडीए का दायित्व संभालते ही सिंह ने जहां हर तरह की फिजूलखर्ची पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगाते हुए अधिकारियों के लिए पेन पेंसिल जैसी जरूरतों की पूर्ति के लिए भी विशेष निर्देश जारी कर रखे हैं। इसके विपरीत उनके अधीनस्थ प्राधिकरण में ही भारी भरकम वेतन पर एक नए महाराजा की ताजपोशी की तैयारी कर रहे।

एक तरफ जीडीए में कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़े हैं। वहीं उद्यान विभाग भारी भरकम वेतन पर एक महाराजा की तैनाती को आतुर है। उद्यान प्रभारी की ओर से हाल ही में समाचार पत्रों में इस आशय का विज्ञापन जारी किया गया है। जिसमें उल्लिखित है कि प्राधिकरण के उद्यान विभाग में एक सलाहकार की नियुक्ति की जानी है। गौरतलब है कि लूट खसोट और पैसों की बंदरबांट के लिए जीडीए का उद्यान विभाग लंबे अरसे से बदनाम रहा है। उद्यान विभाग के अधिकारियों के बीच कमीशन के पैसों के बंटवारे के कई विवादों का यह संवाददाता स्वयं साक्षी रहा है।

यहां यह सवाल उठना लाजमी है कि जब प्राधिकरण के उपाध्यक्ष एक- एक पाई नाप-तोल कर खर्च करने की नसीहत दे रहे हैं और उस नसीहत पर खुद भी अमल करते दिखाई दे रहे हैं, तो ऐसे में उद्यान विभाग को एक महाराजा की ताजपोशी की कैसे सूझ गई? दूसरा सवाल यह है कि अखबारों में विज्ञापन देने के लिए प्राधिकरण में विभिन्न अनुभागों में जब अलग से प्रभारी प्राधिकृत हैं (और उद्यान विभाग के अधिकृत प्राधिकारी एक अधिशासी अभियंता हैं) तो उद्यान अधिकारी ने समाचार पत्र में विज्ञापन सीधे ही कैसे दे दिया? और इसके भुगतान की अनुमति किससे ली गई? तीसरा सवाल जो सबसे अहम है वह यह कि रातों-रात उद्यान सलाहकार का पद सृजित कैसे हो गया? उद्यान अधिकारी ने अपने स्तर पर पद स्वीकृत कैसे कर लिया? या पर्दे के पीछे कोई और ही खेल चल रहा है और उद्यान अधिकारी मात्र कठपुतली की ही भूमिका निभा रहे हैं। खैर इस खेल की पड़ताल फिर सही लेकिन इस सवाल की पड़ताल जरूरी है कि उद्यान सलाहकार का पद कब और कैसे सृजित हुआ? इस पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन मंगाने की स्वीकृति किससे ली गई? इस सवाल पर उद्यान अधिकारी फिलहाल मौन साधे हैं।

गौरतलब है कि प्राधिकरण में कोई भी नया पद सृजित होता है तो प्राधिकरण बोर्ड से इसकी अनुमति ली जाती है। बीते कई वर्षों से प्राधिकरण में विधि अधिकारी का पद रिक्त चल रहा है। विधि विभाग से संबंधित अधिकांश फाइलों का निस्तारण लंबे समय से नहीं हो पा रहा है। प्राधिकरण को विधिक कार्य के निस्तारण के लिए बाहरी लोगों की सेवाएं लेनी पड़ रही हैं। जिस पर प्रति माह भारी-भरकम राशि खर्च हो रही है। जरूरत को समझते हुए जीडीए बोर्ड द्वारा विधिक विशेषज्ञ की तैनाती की सलाह स्वीकार कर ली गई थी। बताया जाता है कि विधि सहायक के पद को सृजित कर उसकी स्वीकृति की बाबत प्राधिकरण और शासन के बीच लिखा पढ़ी चल रही है। लेकिन वहीं दूसरी ओर उद्यान विभाग ने बिना औपचारिकताएं पूरी करे ही अपने ही विभाग में एक नए महाराजा के स्वागत के लिए बैंड बाजा बजाना शुरू कर दिया है।

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