प्राधिकरण का उद्यान विभाग भूमि कब्जामुक्त कराने में नहीं दिखा रहा दिलचस्पी
आलोक यात्री
गाजियाबाद। नोएडा के ट्विन टॉवर के धराशाई होने के बाद सुपरटैक बिल्डर्स के कई और कारनामे भी सामने आ रहे हैं। महानगर की एक पॉश कालोनी में भी इस बिल्डर द्वारा कई अवैध अपार्टमेंट्स बना कर बेच दिए गए। यही नहीं ग्रीन बेल्ट के लिए चिन्हित हजारों वर्ग मीटर भूमि पर भी अवैध कब्जा जमा रखा है।
तथ्य बताते हैं कि वैशाली सेक्टर 9 में सुपरटेक बिल्डर्स ने जीडीए (गाजियाबाद विकास प्राधिकरण) के अधिकारियों व अभियंताओं के साथ सांठगांठ कर निर्माण स्थल पर अवैध रूप से 110 अतिरिक्त फ्लैट्स का निर्माण किया था। नोएडा के ट्विन टावर के ध्वस्तीकरण के अदालती आदेश से काफी पहले वैशाली के इन अवैध भवनों का मामला भी सामने आया था। इन अवैध फ्लैट्स के विरुद्ध कार्रवाई तो एक तरफ जीडीए अपनी अरबों रुपए की भूमि भी सुपरटेक के कब्जे से वापस नहीं ले पा रहा है। रविवार को नोएडा में सुपरटैक के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई होने के बाद उम्मीद जगी है कि अरबों की इस भूमि के प्रति प्राधिकरण और प्रशासन अब कोई ठोस निर्णय ले सकता है।
गौरतलब है कि सुपरटैक द्वारा नाजायज बनाए गए 110 फ्लैट्स का मामला उस समय उजागर हुआ था जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन फ्लैट्स और इनके आवंटन को अवैध घोषित कर दिया था। जीडीए चाहता तो हाईकोर्ट के 2015 के फैसले के आधार पर बिल्डर के खिलाफ ठोस कार्रवाई कर सकता था। लेकिन सात वर्ष गुजर जाने के बाद भी सुपरटैक बिल्डर्स जीडीए की अरबों रुपए की भूमि कब्जाए बैठा है। दस्तावेजी सबूतों के अनुसार सुपरटैक एस्टेट द्वारा प्रह्लादगढ़ी की भूमि पर जो नक्शा जीडीए से स्वीकृत कराया गया था उसके अनुसार वहां कुल 247 फ्लैट्स का ही निर्माण होना था। लेकिन बिल्डर द्वारा तत्कालीन अफसरों से सांठगांठ कर मौके पर 357 फ्लैट का न सिर्फ निर्माण करा दिया गया बल्कि महंगी दरों पर बेच भी दिए गए।
सुपरटैक का मामला महज 110 अवैध फ्लैट्स का ही नहीं है। सुपरटैक ने प्राधिकरण को कंपनसेटरी एफएआर के रूप में जो भूमि ग्रीन बेल्ट हेतु दी थी, उस पर भी बिल्डर का अवैध कब्जा अब तक बरकरार है।
उल्लेखनीय है कि प्रह्लादगढ़ी गांव के खसरा संख्या 299, 300 और 302 जिसका कुल क्षेत्रफल 16265 वर्ग मीटर है, में से 6145 वर्ग मीटर भूमि प्राधिकरण को कंपनसेटरी एफएआर के रूप में देना तय हुआ था। इस भूमि का हस्तांतरण बिल्डर द्वारा प्राधिकरण को गिफ्ट डीड के रूप में किया गया था। जिस पर रजिस्ट्री शुल्क के रूप खर्च होने वाली धनराशि 14 लाख 75 हजार रुपए का भुगतान भी बिल्डर पक्ष द्वारा ही किया गया था।
बताया जाता है कि गिफ्ट डीड पर खर्च होने वाली करीब पौने 15 लाख रुपए की राशि भी बिल्डर ने योजना में फ्लैट खरीदने वाले आवंटियों से ही वसूली थी। इस भूमि पर प्राधिकरण के उद्यान विभाग को ग्रीन बेल्ट विकसित करनी थी। लेकिन आज करीब 10 साल बाद भी प्राधिकरण का उद्यान विभाग इस भूमि पर कब्जे की कोई कार्यवाही नहीं कर पाया है और अरबों रुपए की इस भूमि पर आज भी सुपरटैक का ही कब्जा बरकरार है। देखना यह है कि प्राधिकरण के मुखिया जो जिलाधिकारी का दायित्व भी संभाले हुए हैं, वह सुपरटैक के कब्जे से भूमि मुक्त कराने में कितने सफल हो पाते हैं।