Dainik Athah

राग दरबारी

… कहीं ऐसा न हो छठे की लग जाये लॉटरी

इन दिनों जहां देखो वहां पर जिले के पांचों विधायकों की बात होती है कि इनमें से कौन मंत्री बनेगा लेकिन कहीं चर्चा चल रही थी कि छठे को क्यों भूल रहे हो भाई। यदि भाग्य को देखो तो एमएलसी साहब का भाग्य क्या अन्य से कमजोर है। यदि ऐसा नहीं तो भाई साहब एमएलसी कैसे बनते। बात पते की थी। इससे पहले मंत्रिमंडल विस्तार में भी सौम्य, सरल एवं मृदुभाषी एवं शिक्षाविद एमएलसी साहब का नाम पूरजोर तरीके से चला था। कहीं ऐसा न हो कि एक का पत्ता काटने के लिए उनकी ही बिरादरी के एमएलसी साहब की लॉटरी लग जाये। इस चर्चा को सुनते ही एमएलसी साहब के चाहने वालों की बांछे खिल गई। लेकिन दरबारी लाल ने देखा कि एमएलसी साहब का नाम आते ही उनकी ही बिरादरी के कुछ लोगों के पेट में दर्द हो जाता है। अब देखते हैं 25 को क्या होता है।

… तो अखबार के खबरीलाल अब पार्टी पदाधिकारी के बन गए हैं खबरची

पहले अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस के पास सबसे बड़ा हथियार था मुखबिर तंत्र, लेकिन अब पुलिस की व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। लेकिन यह व्यवस्था अब राजनीति के अखाड़े में सबसे ज्यादा हावी है। यहां एक बात और बतानी है किस राजनीतिक अखाड़े में मुखबिर का नाम दिया गया है खबरची। ऐसे ही एक खबरची से शहर मंडल के कार्यकर्ता सबसे ज्यादा परेशान है। इसकी सुगबुगाहट दरबारी लाल को लगी तो दरबारी लाल ने कुछ नेताओं को कुरेदा। तब पता चला कि पहले शहर मंडल के प्रभारी के तौर पर फूल वाली पार्टी में कमान संभाल रहे पदाधिकारी चटपटी खबर छापने वाले अखबार के लिए मुखबिरी करते थे लेकिन वहां कुछ गड़बड़ होने के बाद यह महाशय खबरी बन गए महानगर के एक बड़े पदाधिकारी के। अब आलम यह है कि कोई छींक भी मारता है तो उसकी खबर भी महानगर के बड़े पदाधिकारी को पता चल जाती है, ऐसे में इन खबरीलाल से शहर मंडल के पदाधिकारी परेशान है और उन्होंने तय किया है कि अब खबरीलाल से दूरी बनाकर ही रखनी पड़ेगी, तभी वह सुकून में रह पाएंगे।

….दरबारी लाल


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