Dainik Athah

मंथन – क्या नेताओं की सभाओं में भीड़ से तय होता है चुनाव परिणाम!

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की जनसभाओं में बेतहाशा भीड़ उमड़ी। बसपा प्रमुख मायावती की जनसभाओं में भी कोई कम भीड़ नहीं उमड़ी। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन औवेसी की सभाओं में जिस प्रकार भीड़ उमड़ती थी उसे देखकर यह लगता था कि इन दलों को भारी बहुमत मिलेगा। इसके साथ ही कांग्रेस महासचिव एवं यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा की बात न करें तो उनके एवं कांग्रेस के साथ नाइंसाफी होगी। प्रियंका वाड्रा के रोड शो में भी बेतहाशा भीड़ उमड़ती थी। इसे देखकर यह लगता था कि प्रियंका लड़की हूं, लड़ सकती हूं नारे के साथ कांग्रेस को सम्मान जनक स्थिति में ले जायेगी। लेकिन यदि परिणामों को देखें तो स्थिति इसके उलट है। अखिलेश यादव की सभाओं एवं रोड शो में उमड़ी भीड़ तो वोट में बदलती नजर आई। सपा की सीटों में भी भारी वृद्धि हुई। लेकिन बसपा के 403 में से 290, कांग्रेस के 397 में से 387 प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। इतना ही नहीं कांग्रेस की 144 महिला प्रत्याशियों में से 137 भी अपनी जमानत गंवा बैठी। यह बताने के लिए काफी है कि अधिकांश दल अपनी जनसभाओं एवं रोड शो में उमड़ी भीड़ को वोट में नहीं बदल सकी। इसमें औवेसी को ही लें तो उनको देखने और सुनने वालों की संख्या अधिक होती है। इसी प्रकार प्रियंका वाड्रा को देखने की इच्छा पाले लोग उनके कार्यक्रमों में अधिक जाते हैं। जिस प्रकार अखिलेश यादव की सभाओं में भीड़ उमड़ी थी वह यदि वोट में तब्दील होती तो फिर सपा सरकार बनाने की स्थिति में होती। बसपा को तो मात्र एक सीट से ही संतोष करना पड़ा। हां इतना अवश्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाओं में जो भीड़ आती थी उसमें भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले अधिक थे।

Manthan….. Manthan….. Manthan…..

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