उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सातवें एवं अंतिम चरण का मतदान सोमवार को संपन्न हो चुका है। सातों चरण का मतदान संपन्न होने के साथ ही टीवी चैनलों पर एग्जिट पोल शुरू हो चुके हैं। सभी के अपने- अपने आंकड़े हैं। अपने- अपने सर्वे है। इन सब से इतर आज का यह मंथन लिखा जा रहा है। सरकार किसकी बनेगी इसकी चर्चा हर तरफ हो रही है। सभी के अपने- अपने आंकड़े हैं। कोई नेताओं के भाषणों के आधार पर तो कोई नेताओं की भाव भंगिमा, उनके चलने- फिरने के आधार पर कोई अन्य कारण तलाशते हुए कोई सपा तो कोई भाजपा की सरकार बनाते नजर आ रहे हैं। लेकिन मैं इन सब से अलग भाजपा की सरकार को लेकर बात कर रहा हूं। चुनाव में भाजपा विधायकों को लेकर जनता में खासी नाराजगी नजर आई। लेकिन विधायक इसके लिए योगी जी की कोर टीम जिसमें केवल उनके करीबी अफसर शामिल थे के साथ ही जिलों में तैनात अधिकारियों पर अपनी भड़ास निकालते रहे।
इस सरकार में अफसर जैसे चाहते वैसे प्रदेश को चलाते रहे हैं। अब बात करते हैं वर्तमान चुनाव की। यह चुनाव पूरी तरह योगी आदित्यनाथ के आभा मंडल के इर्द गिर्द घूमता रहा। जो जनता विधायकों से अथवा किन्हीं कारणों से प्रदेश सरकार से खफा नजर आ रही थी उस जनता की नजर में अब भी योगी आदित्य नाथ ही बड़ा ब्रांड थे। जनता की सुनेंं तो भाई साहब इस बार फिर से योगी सरकार नहीं बनी तो हालात 2017 से पहले जैसे हो जायेंगे। ऐसे लोगों की तादाद अच्छी खासी है जिन्हें न प्रत्याशी से कोई मतलब नहीं था। यदि मतलब था तो योगी बाबा से। जनता योगी आदित्यनाथ की बुराई न सुनने को तैयार थी, न करने को। इससे पता चलता है कि योगी एक ब्रांड था तथा पूरा चुनाव योगी के आसपास ही घूमता रहा। इस बार फिर यदि योगी सरकार बनती है, जो भाजपा के चुनाव चिन्ह पर विधायक चुने जायेंगे उनमें से कुछ जिनका अपना जनाधार है को छोड़ दें तो अन्य विधायक योगी के नाम के सहारे ही विधानसभा की देहली पर पहुंचेंगे। अब दस मार्च को पता चलेगा कि होगा क्या। लेकिन एक बार फिर से यहीं कहूंगा कि सरकार बनेगी तो योगी जी के कारण और जायेगी तब भी उनके ही कारण।