कानपुर क्षेत्र में आतंक का पर्याय बना एवं सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों का हत्यारा विकास दुबे गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे भी जिंदा नहीं बच सका। लेकिन उसे कुछ दिन जीना चाहिए था। आठ पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतारने के बाद हत्यारा विकास अपनी जान बचाने के लिए एक से दूसरे स्थान पर घूम घूमकर जान बचाने का प्रयास कर रहा था। आखिरकार वीरवार की सुबह वह सांठगांंठ से कहो अथवा पुलिस की चुस्ती से गिरफ्तार हो गया। जिस प्रकार उसने चिल्लाकर कहा कि वह विकास दुबे कानपुर वाला है इसका अर्थ स्पष्ट है कि वह किसी भी तरह से अपनी जान बचाना चाहता था। लेकिन महाकाल ने भी उसे जिंदगी जीने का आशीर्वाद नहीं दिया और कानपुर पहुंचने से पहले ही वह मुठभेड़ में मारा गया। अपराधी का अंत पुलिस की गोली से ही होना चाहिए। विकास जैसे दुर्दांत अपराधी के साथ भी यही हुआ। लेकिन उसे कुछ दिन और जीना चाहिए था। यदि वह कुछ दिन और जिंदा रह जाता तो शायद पुलिस के कुछ चेहरों के साथ ही खद्दर धारियों के चेहरों से नकाब हट जाने का खतरा था। जो यह लोग चाहते नहीं थे। वह जिंदा रहता तो खबरिया चैनलों को भी आये दिन कुछ न कुछ मसाला अपनी टीआरपी के लिए मिल ही जाता। खैर एक आतंक का अंत हो गया। इसके साथ ही जो राज बाहर आने चाहिए थे वह भी उसके साथ ही चिता में भस्म हो गये।