मेरठ के दबथुआ में आयोजित अखिलेश- जयंत की रैली एक प्रकार से केंद्र व प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चेतावनी है। रैली कहने को तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रैली थी। लेकिन इस रैली में भीड़ जुटी मेरठ एवं इसके आसपास के जिलों से। सपा- रालोद की यह पहली संयुक्त रैली थी, जिसका लंबे समय से इंतजार था। मंगलवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सपा पर हमला करते हुए लाल टोपी वालों को यूपी के रेड अलर्ट बताते हुए इसे जनता के लिए खतरे की घंटी बताया था। लेकिन लाल टोपी की गठबंधन रैली में जुटी हुई भीड़ को देखते हुए यह रेड अलर्ट पश्चिम में भाजपा के लिए माना जा सकता है। इस रैली के बाद निश्चित ही भाजपा की चिंता पश्चिम को लेकर बढ़ेगी। भाजपा के डबल इंजन की सरकार के नारे के जवाब में रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने भी डबल इंजन सरकार सपा- रालोद का नारा बुलंद किया। हालांकि रालोद समर्थकों को उम्मीद थी कि रैली में अखिलेश यादव जहां रालोद की सीटों की घोषणा करेंगे कि रालोद को कितनी सीटें मिलनी जा रही है इसके साथ ही सबसे बड़ी उम्मीद थी कि जयंत चौधरी को उप मुख्यमंत्री का पद देने की घोषणा हो सकती है। लेकिन इन घोषणाओं के न होने से रालोद समर्थकों को निराशा ही हाथ लगी। अखिलेश को जानने वाले कहते हैं कि वे आसानी से कोई चीज देने वाले नहीं है। यदि लंबी नाक वाले अखिलेश इतने आसान नेता होते तो अब तक चाचा शिवपाल सिंह के साथ भी उनका तालमेल बैठ गया होता। अब भाजपा को जहां पश्चिम में अधिक मेहनत करनी होगी, वहीं रालोद व सपा को यह देखना होगा कि रैली में जुटी भीड़ वोट में भी तब्दील हो। भाजपा का निशाना रालोद के जाट वोट बैंक पर रहेगा। वहीं, सपा के वोट बैंक पर औवेसी की नजर रहेगी। अब यह समय बतायेगा कि चुनाव तक दोनों दलों का वोट बैंक बना रहेगा अथवा बिखराव आयेगा।