प्रहलाद वर्मा
अयोध्या
यहां के सुप्रसिद्ध पौराणिक गुप्तार घाट में गुमनामी बाबा (भगवन् जी) की समाधि उनकी 36 वीं पुण्य तिथि के अवसर पर बनाई गई है। समाधि का निर्माण यहां के स्थानीय निवासी एवं गुमनामी बाबा के भक्त शक्ति सिंह ने कराया है। यहां के लोगों का विश्वास है कि गुमनामी बाबा उर्फ भगवान् जी ही नेता जी सुभाष चन्द्र बोस थे, जो अयोध्या के सिविल लाइन्स स्थिति बस स्टेशन के निकट राम भवन में छिपकर वर्षों से गुमनामी जीवन बिता रहे थे।
गुमनामी बाबा का रहन- सहन काफी रहस्यमय था। उनका चेहरा किसी ने नहीं देखा था। यहां तक कि उनके निकटस्थ सेवक और श्रद्धालु और भक्तो से भी बाबा पर्दे की ओट से बातचीत होती थी। यहां तक कि उनकी सेवा में अर्से से रही वृद्ध महिला से भी पर्दे की ओट में आवश्यक जरूरतें बाबा जी बता दिया करते थे। बाबा से हर किसी का मिलना किसी भी तरह संभव नहीं था। बाबा का जीवन इतना गोपनीय था कि वर्षों से रह रहे बाबा जी के बारे में किसी को भनक तक नहीं थी।
गुमनामी बाबा को समाधि पर जो पट्टिका लगाई गई है उस पर बाबा की जन्म तिथि 23 जनवरी 1897 अंकित है लेकिन मृत्यु तिथि के आगे तीन प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिये गये है। गौरतलब है कि नेता जी जन्म तिथि पट्टिका पर अंकित तिथि से मेल खाती है। नेता जी की तिथि विवादित है। कुछ लोगों का मानना है कि नेता जी की मौत 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में हो गई थी लेकिन इस पर अधिकांश जनमानस विश्वास नहीं करता। लोगों का मानना है कि 18 अगस्त 1945 को जो विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था उसमें नेताजी सवार ही नहीं थे।
यहां गुमनामी बाबा का निधन 16 सितम्बर 1985 को हुआ था। उनके शव को गुप्तार घाट स्थित कंपनी गार्डन में बाबा के निकटस्थ रहे शिष्य सुप्रसिद्ध सर्जन डाक्टर आरपी मिश्र और कुछ गिने-चुने लोगों लोगों ने अंतिम संस्कार किया था। खास बात यह थी बाबा का शव अंतिम संस्कार के लिए कफन से निकाला गया तब बाबा का चेहरा किसी रसायन से इस तरह विकृत कर दिया गया था कि वह किसी भी तरह पहचान में नहीं आ सकता था। चूंकि बाबा गुमनाम थे और किसी को उनके नेता जी सुभाष चन्द्र बोस होने का अनुमान नहीं था, इसीलिए उनके निधन की खबर न तो किसी स्थानीय अखबार में छपी न ही प्रादेशिक और राष्ट्रीय अखबारों में ही। लेकिन कुछ आपस मे गुमनामी बाबा के निधन और उनके नेता जी सुभाष चन्द्र बोस होने की गुपचुप चर्चा करते रहे। यह चर्चा धीरे-धीरे यहां के एक स्थानीय अखबार के कुछ संवाददाताओं के कान में पड़ी लेकिन उनकी भी हिम्मत खबर लिखने की नहीं हुई वे डर रहे थे कि खबर पर अखबार के संपादक अशोक टंडन जी विश्वास नहीं करेंगे। लेकिन आपस में चर्चा करते रहे। आखिरकार संवाददाताओं ने हिम्मत जुटाकर गुमनामी बाबा के मरने और उनके नेता जी सुभाष चन्द्र बोस होने की चर्चा कर ही दी। यह सुनकर टंडन जी चौंके। पहले तो उन्होंने संवाददाताओं को डांटा कि यह चर्चा उनसे पहले क्यों नहीं की गई। बाद में उन्होंने कुछ वरिष्ठ संवाददाताओं को मिलाकर एक टीम का गठन कर दिया। टीम को सिर्फ बाबा के बारे में रिपोर्टिंग और बाबा कौन थे, का पता लगाने का जिम्मा दिया। यह सब करते बाबा के निधन का समय करीब दो महीने बीत चुका था।
गुमनामी बाबा के निधन के करीब दो महीने बाद निधन की खबर उस स्थानीय अखबार में छपी। गुमनामी बाबा को सीधे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से जोड़ा गया था। खबर छपते ही यहां की राजनीति में भूचाल सा आ गया। यहां से दूसरा स्थानीय पुराना समाचार पत्र गुमनामी बाबा के नेता जी सुभाष चन्द्र बोस नहीं होने को सिद्ध करने में लगा रहा। खबर छपने के बाद प्रशासन भी हरकत में आया। उधर राम मनोहर लोहिया अब विश्वविद्यालय फैजाबाद से संबद्ध कामता प्रसाद सुंदर लाल साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय अयोध्या का समूह, अधिवक्ताओं का बड़ा समूह, कुछ राजनीतिक दल एवं अन्य बुद्धिजीवी वर्ग के समूह ने प्रशासन से गुमनामी बाबा की हकीकत बताने के लिए आन्दोलन शुरू कर दिया। इस पर प्रशासन ने गुमनामी बाबा के कमरे और उनसे संबंधित वस्तुओं की तलशी ली। तलाशी में गुमनामी बाबा के वस्तुओं में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से संबंधित वस्तुएं, विभिन्न अखबारों में समय-समय पर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस से संबंधित छपी खबरों की कटिंग, आजाद हिन्द फौज से संबंधित सामग्री आदि वस्तुएं मिली थी। सभी बरामद वस्तुओं को सील कर उन्हे फैजाबाद के जिला कोषागार के डबल लाक में सुरक्षित रख दिया गया था।
दूसरी ओर दोनों स्थानीय अखबारों में गुमनामी बाबा के नेता जी सुभाष चन्द्र बोस होने और न होने की पक्ष-विपक्ष में खबरें, लेख, संपादकीय, संपादक के नाम पत्र आदि छपते रहे। कुछ कोलकाता में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के परिजनों से संपर्क कर आए। इस नेता जी के परिवार के लोगों ने फैजाबाद (अब अयोध्या) आए और गुमनामी बाबा के कमरे से बरामद वस्तुओं को देखने के बाद उनका कहना था कि वस्तुएं नेता जी की ही हैं।
यहां गुप्तार घाट स्थित समाधि स्थल पर आने वाले नवांगतुक समाधि स्थल का बोर्ड देख कर चौक पड़ता है और नेता जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने से नहीं चूकता।