… अब तो जन्म दिन के होर्डिंग भी लगवाने पड़ते हैं
इन दिनों नेताओं के जन्म दिन पर होर्डिंग लगाने का प्रचलन तेज हो गया है। जैसे होर्डिंग ही बतायेंगे कि कौन नेता कितना बड़ा और कितने चाहने वाले। दरबारी लाल को पता चला कि जिस नेता का जन्म दिन होता है वह अपने चाहने वालों से कह कर होर्डिंग लगवाते हैं। दरबारी लाल को पता चला कि एक नेताजी का जन्म दिन है। अब होर्डिंग कौन लगाये। कहने पर कुछ लोगों ने होर्डिंग लगा दिये। लेकिन बाद में अपने समर्थकों के नाम से खुद ही होर्डिंग भी लगवा दिये। जन्म दिन को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है कि यदि होर्डिंग लगाने पर ही बड़े नेता बनते हो तो पैसे वाले सबसे ज्यादा होर्डिंग लगा लें। लेकिन नेता कौन बड़ा है यह तो जनता तय करती है…
आने का आभार या नहीं दिखाई देने पर तंज…
देश की सबसे बड़ी पार्टी के सदस्यता अभियान का शुभारंभ कार्यक्रम लखनऊ में चल रहा था और महानगर के तमाम कार्यकर्ता वर्चुअल तरीके से आरडीसी में समारोह का हिस्सा बने थे। समारोह के समापन पर फूल वाली पार्टी के महानगर अध्यक्ष सबका आभार व्यक्त कर रहे थे एक दूसरे से मिल रहे थे तभी एक प्रकोष्ठ के महानगर अध्यक्ष का हाथ जोड़कर शरारत भरी मुस्कान के साथ आभार व्यक्त करते हुए महानगर अध्यक्ष बोले आपका बहुत-बहुत आभार जो आप आज समय निकालकर आए, धन्यवाद। इस पर प्रकोष्ठ के नए महानगर अध्यक्ष के चेहरे का रंग उड़ा और उसने भी शमिंर्दा होते हुए हाथ जोड़कर आभार व्यक्त किया। दरअसल एक प्रकोष्ठ के नए महानगर अध्यक्ष जो पद पाने की लालसा में पूरा पूरा दिन महानगर कार्यालय तथा महानगर अध्यक्ष के मौजूदगी में कार्यालय पर समय बिताते थे अब लंबे समय से कार्यालय पर दिखाई कम देते हैं। जिसको अलग अंदाज में महानगर अध्यक्ष ने आभार व्यक्त करते हुए तंज कसा था। क्योंकि पद तो मिल गया अब जरूरी नहीं कि कार्यालय जाएं या परिक्रमा करें।
दाम से ना सही तो अब दंड से चलेगा काम…
कूड़ा डंपिंग शहर के लिए ही नहीं बल्कि अब गांव के लिए भी सिर दर्द बन गया है। अभी तक तो किसानों की जमीन लेकर नगर निगम बेहद मुश्किलों के साथ कूड़े का निस्तारण कर रहा था। इसके लिए स्वच्छता से जुड़े अधिकारी मोटे दाम भी खर्च कर रहे थे लेकिन लगता है अब दाम से काम चलने वाला नहीं है, क्योंकि कूड़े की बदबू से लोग आजिज आ चुके हैं। लेकिन सवाल यह है कि जिस कूड़े से घिन्न की जा रही है, उसे निकालने वाले भी कोई गैर नहीं है। अब स्वच्छता की जिम्मेदारी उठाने वाले अधिकारी कहां तक विरोध झेले, इसलिए उन्होंने दाम की जगह अब दंड का रास्ता अपना लिया है।