किसान आंदोलन : खाने के दांत अलग दिखाने के अलग !
देश की राजधानी की सीमाओं के साथ ही हरियाणा एवं पंजाब में चल रहे संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के खाने के दांत एवं दिखाने के दांत अलग अलग है । जिस प्रकार की घटनाएं एवं बयानबाजी आंदोलन के नेता कर रहे हैं उसे देखते हुए तो ऐसा ही लग रहा है ।
जो संयुक्त मोर्चा कुंडली बार्डर पर एक दलित की निहंगों द्वारा हत्या के बाद बयान दे रहा था कि निहंगों का आंदोलन से कोई मतलब नहीं है , वहीं किसान मोर्चा अब लगता है कि निहंगों के दबाव में आ गया है ।
मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव का एक माह के लिए निलंबन यह बताने के लिए काफी है । यादव का निलंबन निहंगों के दबाव में किया गया है । जबकि बहाना बनाया गया है कि लखीमपुर खीरी में मारे गये भाजपा कार्यकर्ता के घर शोक व्यक्त करने गये थे ।
यदि योगेंद्र यादव किसी मृतक के परिवार के आंसू पौंछने गये तो क्या यह गुनाह हो गया क्या जिसे मारते हो उसके परिजनों के आंसू पौंछना भी गुनाह है । अभी गुरुवार की ही बात करें तो भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने यूपी गेट से टैंट हटाने शुरू किये थे ।
उनका कहना था कि रास्ता हम नहीं पुलिस रोक रही है । लेकिन यह मात्र दिखावा भर था । आखिर इन हरकतों से आंदोलनकारी किसान नेता क्या संदेश देना चाहते हैं । यह समझ से परे की बात है । अब तो लग रहा है कि आंदोलन को खबरों में बनाये रखने के लिए बार बार शगूफे छोड़े जाते हैं जिससे आंदोलन को प्रचार मिल सके ।
अब यह भी सच है कि आंदोलन के नाम पर जो लोग सीमाओं पर बैठे हैं वे असली किसान नहीं है । असली किसान को खेत में काम करने से ही फुसर्त नहीं है । संयुक्त मोर्चा को अब आंदोलन की समीक्षा करनी चाहिये ।