24 घंटों में लखीमपुर खीरी शांत होने से विपक्ष की राजनीति पर भी पड़ा पानी!
रविवार के दिन उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जो कुछ हुआ वह निश्चित ही दुखद था। दुखद इस मायने में कि वहां आपसी विवाद में किसानों के साथ ही भाजपा कार्यकर्ताओं की जान गई। इसके साथ ही एक पत्रकार को भी अपनी जान गंवानी पड़ी।
इस मामले ने यूपी के साथ ही हरियाणा, पंजाब तक आंदोलन को हवा दे दी। जैसी कि उम्मीद थी चुनाव नजदीक देख भाजपा विरोधी दल सपा, बसपा, कांग्रेस, आप, आसपा, बसपा समेत सभी दल रोटियां सैंकने के लिए सड़क पर उतर आये। लेकिन मात्र 24 घंटों में जिस प्रकार पूरा मामला भाकियू राष्ट्रीय प्रवक्ता की मौजूदगी में हुए समझौते के बाद शांत हुआ वह सभी की कल्पना से बाहर था।
यह माना जा रहा था कि जल्द ही यह मामला शांत होने वाला नहीं है। इसके साथ ही चुनाव को लेकर नफा- नुकसान के आंकलन भी शुरू हो गये थे। इस अकल्पनीय समझौते ने विरोधी दलों की राजनीति को भोथरा करने का काम किया। समझौते के बाद पूरा मामला शांत हो गया। अब बस विपक्षी दल इसे भुनायेंगे।
लेकिन इस बात पर मंथन करने की आवश्यकता किसान नेताओं को भी है कि विरोध क्या इस प्रकार का होना चाहिये जिसमें एक पत्रकार समेत कई लोगों की जान चली जाये। यदि विरोध प्रदर्शन हिंसक होता है तो निश्चित ही किसान आंदोलन को यह ठेस पहुंचाने का काम करेगा। इसके साथ ही आम लोगों एवं आम किसानों के ऊपर हिंसक प्रदर्शन का विपरीत असर पड़ेगा। इतिहास उठाकर देख लिया जाये जो आंदोलन भी हिंसा की भेंट चढ़ा वह स्वत: समाप्त हो गया। इसके ऊपर किसान नेताओं को सोचना होगा।