“तेरे लबों पे खिले हैं जो फूल नकली हैं, तो इनका क्या करूं मुझमें ये तितलियां जो हैं” : सिंघल
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर आईआईटी रुड़की एल्यूमिनी एसोसिएशन (नोएडा चैप्टर) एवं “कथा रंग” द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में देश और दुनिया के कई रचनाकारों ने आयोजन को यादगार बना दिया। कार्यक्रम अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने कहा कि यह आयोजन सीधी रेखाओं और टेढ़ी रेखाओं के बीच एक नए पुल जैसा है। उन्होंने सीधी रेखाएं खींचने वाले इंजीनियर की रचनाओं की भरपूर सराहना की।
उन्होंने कहा कि तकनीक की उन्नति से निर्मित हथियारों और वायरस ने मानवता के खिलाफ जंग छेड़ रखी है। इस धरती को सिर्फ प्रेम से ही बचाया जा सकता है।
गौतमबुद्ध विश्व विद्यालय सभागार में ऑफ लाइन और ऑन लाइन दोनों प्रारूपों में प्रस्तुत आयोजन को संबोधित करते हुए श्री गुलशन ने कहा “दिल है उसी के पास, हैं सांसे उसी के पास, देखा उसने तो रह गईं आंखें उसी के पास। बुझने से जिस चिराग ने इंकार कर दिया, चक्कर लगा रही हैं हवाएं उसी के पास।” एक और ग़ज़ल के शेरों में उन्होंने कहा “गिरफ़्तार तुम हुए जिसमें वह जाल था ही नहीं, वह हुस्न का था नजर का कमाल था ही नहीं। करीब जाकर समंदर के प्यासे लौट आए, हमारी प्यास का उसको ख्याल था ही नहीं।”
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और मशहूर शायर सुरेंद्र सिंघल ने कहा “हमेशा सोचती रहती हैं फायदे-नुकसान, ये कैसा इश्क सा करती हैं लड़कियां जो हैं। तेरे लबों पे खिले हैं जो फूल नकली हैं, तो इनका क्या करूं मुझमें ये तितलियां जो हैं।”
अपने गीत की पंक्तियों “उंगलियों के पोर खुरदुरे हुए, फूल काढ़ते हुए रूमाल पर। कितनी बार हाथ में सुई चुभी, एक फूल तब खिला रुमाल पर। रेशमी छुअन से भी डरा हुआ घाव हर क़दम पे यूं हरा हुआ, सिसकियों ने होंठ सी लिए मगर, दिल में था गुबार-सा भरा हुआ, तुम नहीं मिले तो देर तक चला आंसुओं का सिलसिला रुमाल पर। कितनी बार हाथ में सुई चुभी, एक फूल तब खिला रुमाल पर” जमकर वाहवाही बटोरी।
कार्यक्रम का सफल संचालन करने वाली दीपाली जैन ‘ज़िया’ ने फ़रमाया “सोच रही हूं क्यों अपने से लगते हो, साइड फेस से उसके जैसे दिखते हो, बालों को रंगने की उम्र में आ पहुंची, सच बतलाना, अब भी मुझपे मरते हो?” “हाईवे पर साइकिल” जैसी मार्मिक कविता के माध्यम से प्रख्यात व्यंग्यकार सुभाष चंदर ने श्रोताओं को झकझोर कर रख दिया।
उन्होंने कहा “ऐसे ही हाईवे पर डरती, कांपती उतरती है साइकिल, और रोज रोती है, और रोज ही रात को फैसला लेकर सोती है साइकिल, कि बस… बहुत हुआ, कल से छुट्टी, कल से वह हाईवे पर नहीं जाएगी, पर यह कल नहीं आता, साइकिल अगले दिन फिर हाईवे पर आ जाती है, डरने, सहमने और कांपने। उसे जाना पड़ता है, क्योंकि वह जानती है कि अगर वह हाईवे पर नहीं जाएगी तो मुन्ना के स्कूल की फीस नहीं जाएगी, बीबी की पैबंद लगी धोती नहीं बदली जाएगी, बाबूजी की दवा नहीं आएगी, सच कहूं साइकिल को पैर नहीं जरूरतें चलाती हैं।”
प्रख्यात शायर मासूम ग़ाज़ियाबादी ने अपने शेरों से महफिल लूट ली। उन्होंने फरमाया “ग़ज़ल में बेकसों का दर्द अक्सर बांध लेता हूं, ख़ुशी ग़म जो भी हो जाए मयस्सर बांध लेता हूं। मैं अपनी आदतों के बाज़ को क़ाबू में रखता हूं, वो उड़ना चाहता भी है तो मैं पर बांध लेता हूं। शराफ़त भूक के बदले में जब घुंगरू पहनती है, छलकता तो है आंखों का समंदर बांध लेता हूं।”
अगली ग़ज़ल में उन्होंने कहा “वो खुश हैं जिनकी चाहने वालों में कट गई, मैं खुश हूं मेरी उम्र क़सालों में कट गई। मेले से हम बगैर खिलौने क्यूं आ गए, इक मां की रात चंद सवालों में कट गई।
कार्यक्रम में आलोक यात्री, डॉ. राहुल जैन तथा सपना अहसास ने भी काव्यपाठ किया। कथा रंग के अध्यक्ष शिवराज सिंह ने अतिथियों को सम्मानित किया। इस अवसर पर आनंद प्रकाश, नारायण सिंह राव, विनोद कुमार सिंह, कुशल पाल सिंह, सुशील कुमार, राजेश कुमार सहित बड़ी संख्या में श्रोता और अतिथि उपस्थित थे।