मंथन: जिले में भाजपा ने ब्लाक प्रमुख की चारों सीटों को जीतकर पार्टी नेतृत्व को बड़ा संदेश देने में सफलता प्राप्त कर ली। वहीं, यह भी अब छुपा नहीं है कि जिलाध्यक्ष- महानगर अध्यक्ष के साथ विधायकों की जुगलबंदी काम कर गई। लेकिन भाजपा के जनरल को लेकर चारों तरफ चर्चाओं का बाजार गर्म है। वह लोनी से लेकर मुरादनगर तक कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि भाजपा के जनरल को ही अपनी पार्टी के प्रत्याशी बुरे लगने लगे। जबकि उन्हें भाजपा ने ही मैदान में उतारा था। लोनी के भाजपा के विरोध में खड़े प्रत्याशी के संबंध में यह मान लेते हैं कि वे भी पार्टी के ही कार्यकर्ता थे। लेकिन मुरादनगर में तो उसकी पैरवी की जा रही थी जिसे भाजपा ने शरण नहीं दी। वह भी जबकि भाजपा के जनरल समेत अनेक पूर्व सांसद- एमएलसी तक उनकी पैरवी में जुटे थे। क्या मुरादनगर में पार्टी के ही विधायक को नीचा दिखाने की रणनीति पर काम हो रहा था। इसमें बड़ा तथ्य यह भी है कि विधायक अकेले नहीं थे। भाजपा का संगठन जिसमें खासकर महानगर उनके साथ था। यहां पर जिस प्रकार अधिकारियों पर भाजपा विरोधी प्रत्याशी को सहयोग करने का दबाव बनाया गया वह तो पूरी तरह से भाजपा जैसी अनुशासन वाली पार्टी में तो नहीं होता। भाजपा के ही कार्यकर्ता कहते हैं कि पार्टी ने उन्हें दोनों बार जीतने पर पूरा सम्मान दिया। लेकिन उनकी भूमिका को आम कार्यकर्ता उचित नहीं मानता। भाजपा के पदाधिकारियों में भी इस स्थिति को लेकर नाराजगी है। जिस दिन उन प्रत्याशी ने पार्टी में शामिल होने के लिए छह घंटे इंतजार किया था उस दिन भी पार्टी के दर्जनभर पदाधिकारी भी पार्टी कार्यालय में मौजूद थे। जानकार बताते हैं कि यदि उन्हें शामिल किया जाता तो पार्टी में बगावत भी हो सकती थी। लेकिन पार्टी में रहकर उसका विजय रथ रोकने का प्रयास क्यों हो रहा था इसे कोई समझ नहीं पा रहा है।