अथाह ब्यूरो
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि अब भाजपा में दो और ‘अध्यक्षीय इंजनों’ के बीच ‘डबल इंजन टकराहट 2.0’ का नया वर्जन आ गया है। लखनऊ अध्यक्ष 2.0 ने दिल्ली अध्यक्ष 2.0 के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उनकी पारिवारिक वंशवादी योग्यता को अप्रत्यक्ष रूप से टारगेट किया है। ये तो होना ही था क्योंकि 7 बार के, उम्र में भी बड़े सांसद जी को 5 बार के विधायक जी के सामने निम्नतर पद देकर अपमानित किया गया है, ये वक्तव्य उसी तिरस्कार का शाब्दिक प्रतिकार है।
उन्होंने कहा कि हमें पता है कि भाजपा नए प्रदेश अध्यक्ष को दिल्ली का पद क्यों नहीं मिला और कभी मिलेगा भी नहीं। उनकी खीझ का कारण उचित है लेकिन जब तक वो स्वयं इस भेदकारी भाजपाई सोच से बाहर नहीं आएंगे न अपना भला कर पाएंगे, न अपने समाज का। अब उनको ठानना होगा कि जब कुर्सी पर बैठ सकते हैं तो स्टूल पर क्यों बैठा जाए। उनका भी भविष्य उन्हीं के जैसा होगा, जिनका इस्तेमाल सत्ता तक पहुँचने के लिए भाजपा ने पहले किया था और जो आज तक प्रतीक्षारत हैं, माफ कीजिए ाथेस, अब तो वो भी नहीं रहे। वर्चस्ववादी भाजपाई छत पर चढ़ाकर सीढ़ी हटा लेने या कुएँ में उतारकर रस्सी खींचलेनेवाले लोग हैं क्योंकि सब जानते हैं कि भाजपा जब अपनों की सगी नहीं है तो जिन्हें राजनीतिक मजबूरीवश अपना मानती है, उनकी कितनी सगी होगी। ये किसीको आसमानी सपने दिखाकर, किसी दूसरे को हैलिकॉप्टर से उतारकर पद छीनने वाले ही नहीं, नेम प्लेट तक हटवा देनेवाले लोग हैं।
अखिलेश यादव ने कहा कि आज भाजपा ने उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री, दो उप मुख्यमंत्री और अध्यक्ष के रूप में कई समाज के लोगों को तो बैठाया है लेकिन उन्हें कोई भी महत्वपूर्ण पद नहीं दिया जिन्होंने उन्हें तब से चंदा देना शुरू किया जब भाजपा का जन्म भी नहीं हुआ था। आज जीएसटी का मारा ये वणिक समाज भी अति उपेक्षित, हताश, अपमानित महसूस कर रहा है और भाजपा को सबक सिखाने के लिए तैयार बैठा है क्योंकि मंदी का मारा उनका काम-कारोबार भी अब ऐसा नहीं बचा कि उनके बच्चे उनके काम में आकर अपना भविष्य बना पाएंगे और न ही कहीं अच्छी और सम्मानजनक नौकरी उन्हें मिल पा रही है क्योंकि नौकरी भाजपा के एजेंडे में है ही नहीं।
यादव ने कहा कि एक दल के रूप में भाजपा खत्म हो चुकी है। तथाकथित दल के नाम पर बस कुछ लोग हैं, जो स्वार्थ की सियासत में एक-दूसरे से बँधने पर मजबूर हैं, वैसे एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते है और घुमा-फिराकर आपस में ही छींटाकशी और टाँग खिंचाई करते रहते हैं। भाजपा कुछ खुदगर्जों का खानदान है, बाकी सबके हिस्से आता अपमान है।
