- भाजपा में नये जिला- महानगर अध्यक्ष बदलने के बाद तेजी से बदलेंगे समीकरण
- जन प्रतिनिधियों की रही है अपनी अपनी चाहत
- अध्यक्ष जन प्रतिनिधियों को कितना कर पायेंगे संतुष्ट
अथाह ब्यूरो
लखनऊ/ गाजियाबाद। भारतीय जनता पार्टी में 98 में से 70 संगठनात्मक जिलों में से अधिकांश नये जिलाध्यक्ष नियुक्त हुए हैं। स्थिति यह है कि नये बने अधिकांश अध्यक्षों से निवतृमान अध्यक्षों में सांप नेवले वाले संबंध रहे हैं, दिखावा चाहे कुछ भी हो। इसके साथ ही नये अध्यक्षों के सामने जन प्रतिनिधियों एवं कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बैठाना भी एक चुनौती से कम नहीं होगा।
अब तक जो कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी निवृतमान अध्यक्षों का पानी भरते थे उन्होंने एकाएक पाला बदल लिया और नये अध्यक्षों के दरवाजों पर मजबूती से दस्तक देनी शुरू कर दी है। इस स्थिति में नये अध्यक्ष भी इनमें से बेहतर कार्यकर्ताओं का चुनाव करेंगे। नये अध्यक्षों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जन प्रतिनिधियों से तालमेल बैठाने की होगी। या ऐसे भी कह सकते हैं कि जन प्रतिनिधियों के सामने नये अध्यक्ष से तालमेल बैठाना चुनाती होगा। इसका मुख्य कारण यह है कि गाजियाबाद समेत कई जिलों के अध्यक्ष जहां संगठन के कामकाज में तप कर अध्यक्ष पद तक पहुंंचे हैं, तो उनकी संघ में भी मजबूत पकड़ मानी जाती है।
दूसरी तरफ जन प्रतिनिधि अपने अपने समर्थकों को अध्यक्ष बनवाने के लिए लामबंदी कर रहे थे। लेकिन यदि उन्होंने नव नियुक्त अध्यक्ष का नाम अपने पैनल में नहीं दिया तो उनके सामने संकट होगा कि वे नये अध्यक्षों को कैसे साधें। इस स्थिति में शुरूआती दिनों के बाद कहीं न कहीं आपसी टकराव की नौबत तो आ ही सकती है। यह स्थिति प्रदेश के अधिकांश जिलों में नजर आयेगी, हालांकि गाजियाबाद के तो दोनों ही अध्यक्ष पुराने कार्यकर्ता है जिस कारण वे टकराव की किसी भी स्थिति से बचना चाहेंगे, हां कार्यकर्ताओं को संगठन में कैसे समाहित करना होगा यह अवश्य उनके लिए कठिन काम होगा।
आने वाले समय में 2027 के विधानसभा चुनाव के साथ ही जिला पंचायत, ब्लाक प्रमुख, नगर पालिका समेत अनेक चुनाव होंगे ऐसे में यदि टीम मजबूत नहीं हुई अथवा जन प्रतिनिधियों एवं संगठन अध्यक्षों के बीच तालमेल न बैठा तो पार्टी के लिए भी मुश्किलें कम होने के स्थान पर बढ़ ही जायेगी।
भाजपा के एक जानकार बताते हैं कि जो अध्यक्ष संगठन में तप कर यहां तक पहुंचे हैं उनके लिए यह कोई समस्या नहीं होगी, बावजूद इसके कहीं न कहीं तो संगठन में दिक्कतें तो बढ़ेगी ही।