लंबे इंतजार के बाद हुई भाजपा जिला- महानगर अध्यक्षों की घोषणा
मुजफ्फरनगर में बालियान के सामने बेबस साबित हुए मंत्री- विधायक
गाजियाबाद में जिस जन प्रतिनिधि की चली उसी ने बनवा लिए अपने अध्यक्ष
अशोक ओझा
लखनऊ। मंडल अध्यक्षों के बाद प्रदेश में 70 जिला- महानगर अध्यक्षों की घोषणा हो गई। इन अध्यक्षों की घोषणा में जन प्रतिनिधियों ने अपने अपने लोगों को जिला अथवा महानगर अध्यक्ष बनवाने में सफलता प्राप्त कर ली। कई जिलों में जहां संघ (आरएसएस) की पसंद के अध्यक्ष बनें, लेकिन जन प्रतिनिधियों ने उसे भी अपने खाते में डाल लिया। इतना ही नहीं जन प्रतिनिधियों में भी गुटबाजी पूरी तरह से हावी रही। इसके परिणाम क्या रहेंगे यह भविष्य के गर्भ में है।
लंबे इंतजार के बाद भाजपा ने रविवार को 98 संगठनात्मक जिलों में से 70 अध्यक्षों की घोषणा कर दी। इस दौरान एक बात स्पष्ट हो गई कि पार्टी अब संगठन नहीं जन प्रतिनिधियों के इशारे पर संगठन पदाधिकारी बना रही है। हालांकि कुछ स्थानों पर संघ की चली तो अनेक स्थानों पर संघ की राय को दरकिनार कर दिया गया। इतना ही नहीं कुछ अध्यक्षों की उम्र पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि वे निर्धारित 60 वर्ष की उम्र सीमा पार कर चुके हैं।
यदि देखा जाये तो मंडल अध्यक्षों के चुनाव में जो जन जनप्रतिनिधि ताकतवर साबित हुए उसने अपने अधिक से अधिक मंडल अध्यक्ष बनवा लिये। मंडल अध्यक्षों के चुनाव के समय जन प्रतिनिधियों की राय को महत्व देने के निर्देश चुनाव अधिकारियों को थे। यहीं कारण है कि जन प्रतिनिधियों ने अपने अधिकांश मंडल अध्यक्ष बनवाये। इसके बाद बारी जिलाध्यक्ष- महानगर अध्यक्ष के चुनाव की थी। इस चुनाव में भी जन प्रतिनिधियों की राय को महत्व दिया गया। इन हालात में यह हुआ कि जो जन प्रतिनिधि जितना ताकतवर था उसने अपने साथ दूसरे जन प्रतिनिधियों को जोड़ कर अथवा संघ का सहयोग लेकर अध्यक्ष बनवा लिये।
देखें तो मुजफ्फरनगर जैसे जिले में लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद जिलाध्यक्ष के चुनाव में पूर्व मंत्री संजीव बालियान ने अन्य विधायकों और मंत्रियों को चित्त कर अपने सुधीर सैनी को एक बार फिर से अध्यक्ष बनवा लिया। सुधीर सैनी पहले दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं, और पार्टी की नीति के विपरीत तीसरी बार अध्यक्ष बन गये। जबकि मंत्री कपिल देव अग्रवाल समेत अन्य विधायक जिलाध्यक्ष किसी और को चाहते थे।
यदि गाजियाबाद में देखा जाये तो सांसद अतुल गर्ग ने अपने साथ दो विधायकों को शामिल कर अध्यक्ष पद पर मयंक गोयल को नामित करवा लिया, हालांकि मयंक गोयल को संघ का आशीर्वाद भी था। मयंक गोयल का परिवार कई पीढ़ियों से संघ से जुड़ा है।
इसके साथ ही अन्य जिलों से जो खबरें आ रही है उसके अनुसार जन प्रतिनिधियों की अध्यक्षों की घोषणा में खूब चली है। इतना अवश्य ध्यान रखा गया कि जो अध्यक्ष बनाया जा रहा है उसकी संघ में आस्था है या नहीं। जिसकी संघ से दूरी रही वे संगठन में भी किनारे कर दिये गये। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यदि जन प्रतिनिधियों की चाहत से अध्यक्ष बन रहे हैं तो अध्यक्ष भविष्य में भी उनकी ही सुनेंगे।