कैसे पूरा होगा गणतंत्र दिवस पर ड्रीम प्रोजेक्ट में जीडीए अफसरों का झंडा रोहण का सपना
मुख्यमंत्री के शिलान्यास के बाद से आधा अधूरा पड़ा है नवनिर्मित भवन का निर्माण कार्य
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के ड्रीम प्रोजेक्ट मधुबन बापूधाम योजना की जमीनी हकीकत कुछ और है। प्राधिकरण के अफसरों द्वारा मीडिया में मधुबन बापूधाम में सुविधाओं का जो डंका पीटा जा रहा है उसकी वास्तविक तस्वीर कुछ और हकीकत बयान करती है। जिसे देख कर कहा जा सकता है कि मधुबन बापूधाम में नवनिर्मित प्राधिकरण कार्यालय पर गणतंत्र दिवस के अवसर पर जीडीए अफसरों की झंडा रोहण की घोषणा इस साल तो किसी सूरत पूरी होती दिखाई नहीं देती। जिस प्राधिकरण कार्यालय का शिलान्यास मुख्यमंत्री द्वारा किया गया था चार साल में उसका बुनियादी ढांचा भी नहीं खड़ा हो पाया है। निर्माण स्थल पर मुआवजे की मांग को लेकर धरने पर बैठे किसानों का कहना है कि जब तक उनके मुआवजे का मसला हल नहीं होता तब तक यहां एक ईंट भी नहीं लगने दी जाएगी।
गौरतलब है कि करीब 12 सौ एकड़ में विकसित मधुबन बापूधाम आवासीय योजना अपनी स्थापना के बाद से ही बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। यहां के भवन में भूखंड आवंटियों का कहना है कि 15 सालों से वह बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की मांग करते चले आ रहे हैं। लेकिन प्राधिकरण के अफसरों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। मधुबन बापूधाम रेजिडेंशियल सोसायटी के सचिव लीलाधर मिश्रा का कहना है कि आवंटियों को सुविधा मुहैया करने के बजाए प्राधिकरण ने उनके हाथ में स्थल कार्यालय का झुनझुना थमा दिया। उनका कहना है कि प्राधिकरण उपाध्यक्ष द्वारा मधुबन बापूधाम योजना को ड्रीम प्रोजेक्ट बताए जाने के बाद आवंटियों को उम्मीद बंधी थी कि इलाके का समुचित विकास होगा। लेकिन आवंटी भूखंडों की डेढ़ गुनी कीमत देकर भी सुविधाओं से महरूम हैं।
मिश्रा का कहना है कि मधुबन बापूधाम पॉकेट सी में प्राधिकरण स्थल कार्यालय इस आश्वासन के साथ खोला गया था कि हर मंगलवार को अफसर वहां बैठ कर आवंटियों की समस्याएं सुनेंगे और उनका शीघ्र निस्तारण किया जाएगा। लेकिन निर्धारित दिन भी मधुबन बापूधाम स्थल कार्यालय में उनके दर्शन नहीं होते हैं। बीते मंगलवार को यह संवाददाता स्वयं हकीकत जानने जीडीए साईट आॅफिस पहुंचा। जहां खंडहरनुमा एक जर्जर हो रही बहुमंजिला इमारत के भूतल के एक फ्लैट पर गाजियाबाद विकास प्राधिकरण का बोर्ड टंगा मिला। जिसके बाहर कुछ किसान जिनमें बॉस डबास प्रमुख थे धरना दिए बैठे मिले। जिन्होंने इस संवाददाता को बताया कि जर्जर हो रही इमारत के नीचे मुआवजे की मांग को लेकर किसान यहां 2019 से ही धरना दिए बैठे हैं। उन्होंने बताया कि तमाम जोखिम उठा कर भी वह धरना दे रहे हैं। क्योंकि इमारत की ऊपरी मंजिल से ईंट और प्लास्टर गिरने का सिलसिला लगातार जारी है। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि उपाध्यक्ष के आदेश के बावजूद इक्का दुक्का अभियंता ही खानापूर्ति करने आता है। मधुबन बापूधाम साइट कार्यालय पर दो घंटे की प्रतीक्षा के बाद एक सहायक अभियंता कार्यालय पर जरूर पहुंचे।
पॉकेट सी स्थित जिस जर्जर हो रही इमारत में जीडीए का अस्थाई कार्यालय चल रहा है वह योजना में किए गए घपले और भ्रष्टाचार का साक्षात नमूना है। प्राधिकरण सूत्रों का कहना है कि पंद्रह मंजिला इमारत में 198 भवनों का निर्माण होना था। लेकिन ठेकेदार आधा अधूरा काम करके आर्बिट्रेशन में चला गया। जहां से उसे भुगतान के आदेश हो गए। अब यह सफेद हांथी प्राधिकरण की लायबिलिटी हो गया है।
प्राधिकरण कार्यालय का निर्माण कार्य चार सालों में दस फीसदी भी पूरा नहीं हुआ है। इसकी निर्माण लागत 113 करोड़ रुपए आंकी गई थी। इसका निर्माण कब पूरा होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि जीडीए के नवनिर्मित भवन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अफसरों का सपना कब पूरा होगा?