Dainik Athah

भाजपा संगठन चुनाव को लेकर देशभर के कार्यकर्ताओं में संशय की स्थिति

  • क्या होगा भाजपा संगठन चुनाव में
  • पहली बार संगठन चुनाव के लिए नियुक्त किये गये केंद्रीय पर्यवेक्षक
  • जिला चुनाव अधिकारियों के ऊपर भी पहली बार वरिष्ठ पदाधिकारियों एवं मंत्रियों को पर्यवेक्षक का दायित्व
  • ऊंट किस करवट बैठेगा इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं

अशोक ओझा
नयी दिल्ली।
भारतीय जनता पार्टी का संगठन पर्व (संगठन चुनाव) शुरू हो चुका है। शनिवार से सक्रिय सदस्यों की सूची चस्पा होने के साथ ही संगठन चुनाव के काम में तेजी आ जायेगी। बावजूद इसके कार्यकर्ताओं में संशय की स्थिति है। वह इसलिए कि आखिर जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष बनाने का पैमाना क्या होगा। इसके साथ ही सवाल यह भी है कि संगठन चुनाव में पर्यवेक्षकों की भूमिका क्या होगी।
भाजपा इस समय संगठन चुनाव की तैयारी या यह कहें कि संगठन चुनाव में लग चुकी है। इसकी शुरूआत रविवार के बाद से ही विधिवत होगी। 15 दिसंबर तक मंडल अध्यक्षों का चुनाव होना है। रविवार के बाद इसलिए कि इस दिन हिंदू संगठन बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के विरोध में पूरे देश में प्रदर्शन करने जा रहे हैं। हिंदू संगठनों का यह प्रदर्शन राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ की रणनीति के तहत हो रहा है, लिहाजा भाजपा के जिम्मेदार पदाधिकारियों को भी निर्देश मिले हैं कि वे पूरी ताकत इस प्रदर्शन को ऐतिहासिक बनाने में लगायें।

भाजपा संगठन चुनाव में प्रदेश चुनाव अधिकारी के बाद जिला चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति की जाती रही है। यह पहली बार हो रहा है कि संगठन चुनाव में केंद्रीय पर्यवेक्षकों की नियुक्ति देश के हर राज्य में की गई है। इसके साथ ही वरिष्ठ नेताओं, प्रदेश पदाधिकारियों एवं राज्य सरकारों के मंत्रियों को भी दो से तीन जिले देकर पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। इससे पहले पर्यवेक्षक नहीं बनाये जाते थे। अब जिस प्रकार पर्यवेक्षक नियुक्त किये गये हैं उसको लेकर पार्टी के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं के समक्ष भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। एक वरिष्ठ पदाधिकारी की मानें तो पर्यवेक्षकों की भूमिका तब शुरू होगी जब संगठन चुनाव को लेकर कोई विवाद सामने आयेगा। हालांकि प्रदेश के कम से कम आधे जिलों में जिला और महानगर अध्यक्षों को लेकर विवाद उत्पन्न होना अवश्यंभावी नजर आता है।

विवाद इसलिए कि पिछले कुछ समय से प्रदेशों में अनेक जिलों की कमान या तो अनुभवहीन कार्यकर्ताओं को दी गई है अथवा पार्टी में कुछ समय पूर्व आये पदाधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया गया। इन लोगों को पार्टी की नीतियों की भी सही से जानकारी नहीं है। ये लोग किस प्रकार पदाधिकारी नियुक्त हुए होंगे इसे समझा जा सकता है। इस मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं जहां बड़ी संख्या में अनुभवहीन कार्यकर्ताओं को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया गया।
अब फिर वहीं स्थिति है मात्र कुछ वर्षों पूर्व आये पार्टी में आये लोगों की नजर महत्वपूर्ण पदों पर लगी है। इसमें यूपी के साथ ही राजस्थान, हरियााणा जैसे वे राज्य शामिल है जहां पर भाजपा की सरकारें हैं।

सूत्रों की मानें तो पहले केंद्रीय पर्यवेक्षक एवं इसके बाद जिलों में पर्यवेक्षकों की नियुक्ति एक रणनीति के तहत है। कुछ लोग इसे संघ के दखल से देखकर जोड़ रहे हैं। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी की नजरें इस पर लगी है कि संगठन चुनाव खासकर जिला व महानगर अध्यक्षों के चयन में संघ और वर्तमान के भाजपा नेतृत्व की स्थिति क्या होगी। यदि वर्तमान नेतृत्व के हिसाब से अध्यक्षों की नियुक्ति होनी है तो कार्यकर्ता उसी हिसाब से रणनीति बनायेंगे, हालांकि प्रदेश भाजपा नेतृत्व के करीबी यह मानते हैं कि वर्तमान नेतृत्व के हाथ में ही बड़ी कमान होगी। सूत्र बताते हैं कि जिला और महानगर अध्यक्षों के चुनाव के लिए अगले कुछ दिन में केंद्रीय स्तर से स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। इसको लेकर संघ और भाजपा में लगातार मंथन चल रहा है।


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