12अक्टूबर को मनाया जाएगा दशहरा इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 3अक्टूबर से आरंभ होंगे । शास्त्रीय लेख के अनुसार बृहस्पतिवार से नवरात्र आरंभ होते हैं, तो दुर्गा मां डोली ( पालकी) पर सवार होकर आती है।पालकी में आगमन का अर्थ है कि विश्व में कुछ नया होने वाला है। परिवर्तन अथवा विनाश दोनों की संभावना है।विश्व में राजनीतिक उथल-पुथल, प्राकृतिक आपदाओं से जन धन हानि और कई देशों अथवा प्रांतों में छत्र भंग अर्थात राजा या सत्ता परिवर्तन होगा। पालकी में विराजमान मां दुर्गा जब आती है तोमहिला शक्ति का अभ्युदय होता है। नारी शक्तियों को विश्व पहचानता है और उन्हें सम्मान देता है।
कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त शास्त्रों में स्थिर लग्न और अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना करने का विधान है।3 अक्टूबर को प्रात:9:42 बजे से 12:00 बजे तक वृश्चिक अर्थात स्थिर लग्न रहेगा। 11:36 से 12:24 तक अभिजीत मुहूर्त है । ये मुहूर्त कलश स्थापना के लिए उत्तम हैं।किन्तु चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार प्रातः 7:48 से 10:42 तक रोग और उद्वेग के चौघड़िया कलश स्थापना में शुभ नहीं माने जाते हैं और इस समय को त्यागना हीं चाहिए चाहे वह स्थिर लग्न ही क्यों ना हो।चौघड़िया के अनुसार प्रातः 6:19 से 7:45 तक प्रथम चौघड़िया रहेगी जिसका नाम शुभ है ।सबसे पहला श्रेष्ठ मुहूर्त तो यही है कि इसमें आप कलश स्थापना कर सकते हैं ।11:27 बजे से 14:45बजे तक चर, लाभ ,अमृत के चौघड़िया रहेंगे। इसलिए कलश स्थापना का यही सर्वोत्तम समय है। 1:30 से 3:00 तक राहुकाल रहेगा। कलश स्थापना में इसका त्याग करना चाहिए।
कलश स्थापना की विधि उपरोक्त मुहूर्त के अनुसार अपना समय तय करके कलश स्थापना सामग्री को एकत्र करें।मिट्टी अथवा तांबे का कलश, जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र या बड़ा गमला,गंगाजल ,कलावा ,दीपक ,रुई, माचिस, शुद्ध जल ,गंगाजल आम के पत्ते ,नारियल लाल अंगोछा या चुन्नी दुर्गा मां की फोटो ,चौकी ,प्रसाद फल,माला, मिष्ठान आदि।सर्वप्रथम लकड़ी की चौकी अथवा पटरे पर लाल वस्त्र बिछाकर दुर्गा मां की फोटो रखें ।चुनरी,माला आदि से ठीक प्रकार से सुसज्जित करें।जब आप मां के चित्र के सामने बैठेंगे अपने बांयी और कलश और दाहिनी और दीपक का स्थान होना चाहिए।जो श्रद्धालु जौ बोते हैं ,उन्हें मिट्टी के बड़े पात्र में मिट्टी अथवा रेत भरकर उसमें जौ बोएं, थोड़ा सा जल छिडकें और उसी पात्र के ऊपर कलश की स्थापना करें। कलश पर कलावा लपेटे। जल के अंदर गंगाजल,सुपारी ,बताशा ,चावल और एक सिक्का डाल दें। तत्पश्चात कलश पर आम के पत्ते रखकर चुनरी से लिपटा हुआ नारियल रख दें और एक माला पहनाएं।अपनी सीधे हाथ की ओर एक तांबे , पीतल या स्टील की प्लेट मे थोड़े चावल डालें, उस पर दीपक की स्थापना करें।यदि अखंड दिया जलाना हो तो उसकी नियमित देखभाल करें व पूरे नवरात्रि में बुझने न पाए इसका विशेष ध्यान रखें।अखंड दीपक न जला सके तो प्रातः सायं पूजा के समय ही दीपक जलाएं।कलश स्थापना और गणेश आदि देवताओं का ध्यान करने के पश्चात मां दुर्गा का आह्वान करते हुए मां की प्रार्थना करें ।
जनसाधारण दुर्गा चालीसा ,दुर्गा सप्तशती के अध्याय आदि अपनी सुविधानुसार पढें। प्रातः काल और सायंकाल आरती अवश्य करें और भोग लगाएं।दुर्गा सप्तमी 10अक्टूबर , दुर्गा अष्टमी पूजा 11 अक्टूबर, और महानवमी और दशहरा 12 अक्टूबर को है। क्योंकि 12 अक्टूबर को प्रातः 10:58 बजे तक महानवमी एवं दुर्गा मां का विसर्जन होगा।। 10: 58 बजे से दशमी तिथि जाएगी। दशहरा मध्यान्ह व्यापिनी तिथि में मनाया जाता है इसीलिए मध्यान्ह 11:00 बजे बाद दशहरा का पूजन होगा और शाम को रामलीला में रावण का दहन होगा।दशहरा पूजन के शुभ मुहूर्त 11:36 बजे से 12: 24 बजे तक अभिजित मुहूर्त।13:26 बजे से 15 :09 बजे तक मकर लग्न, स्थिर लग्न और विजय मुहूर्त। यह दोनों मुहूर्त दशहरा पूजन के लिए बहुत ही श्रेष्ठ मुहूर्त हैं।रावण दहन का समय श्रवण नक्षत्र और धृति योग में शाम 7:38 बजे से 23:47 बजे तक शुभ रहेगा।
पंडित शिवकुमार शर्मा, आध्यात्मिक गुरु , ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट गाजियाबाद।