- गपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 55वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि समारोह
- भारतीयता के नवनिर्माण और सुसंस्कृत समाज की नींव रखी महंत दिग्विजयनाथ ने : मुख्यमंत्री
- धर्म और देश के लिए समर्पित रहे महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ : मुख्यमंत्री
अथाह संवाददाता
गोरखपुर। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ को साधना स्थली बनाकर सनातन धर्म के परिपूर्ण स्वरूप के अनुरूप आचरण करने वाले युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज आजीवन भारतीयता के मूल्यों और आदर्शों के लिए लड़ते रहे। उनके बताए मूल्यों और आदर्शों ने भारतीयता के नवनिर्माण, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर में सुसंस्कृत समाज की नींव रखी। उनके विचारों और उनके कृतित्वों से हमें आज भी निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
सीएम योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धाजंलि समारोह के अंतर्गत शुक्रवार (आश्विन कृष्ण तृतीया) को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर अपनी भावाभिव्यक्ति कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गोरक्षपीठ के उनके पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था। उन्होंने धर्म को केवल उपासना विधि नहीं माना बल्कि भारतीय मनीषा में धर्म के जिसे स्वरूप की बात कही गई है, उसके अनुरूप जीवन जिया। धर्म के दो हेतु होते हैं। एक सांसारिक उत्कर्ष और दूसरा नि:श्रेयस। दोनों ही संतों ने धर्म के इन दोनों स्वरूपों को लेकर समाज का मार्गदर्शन किया।
शिक्षा,सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सभ्य और समर्थ समाज के लिए पहली आवश्यकता शिक्षा होती है। इसी उद्देश्य को समझते हुए महंत दिग्विजयनाथ ने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। यह काम धनोपार्जन के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए किया गया। देश आजाद होने के बाद किसी जगह विश्वविद्यालय बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार को 50 लाख रुपये नकद या इतने की संपत्ति की जरूरत होती थी। महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बनाने के लिए शिक्षा परिषद की संस्था एमपी बालिका डिग्री कॉलेज की संपत्ति दे दी। उस समय की 50 लाख की संपत्ति का आज के समय में मूल्य 500 करोड़ रुपये होगा। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में अपने समय में योगदान करते हुए महंत दिग्विजयनाथ जी ने 1956 में एमपी पॉलिटेक्निक और चिकित्सा शिक्षा के लिए साठ के दशक में आयुर्वेद कॉलेज की स्थापना कर दी थी। इन प्रकल्पों को आगे बढ़ाने का काम महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने किया।
सनातन धर्म की सुदृढ़ता और छुआछूत मिटाने के लिए नहीं की सरकारों की परवाह
सीएम योगी ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने सनातन धर्म की सुदृढ़ता के लिए अनेक कार्यक्रमों को बिना थके, बिना रुके, बिना डिगे तेजी से आगे बढ़ाया। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उन्होंने छुआछूत मिटाने के अभियान में कभी सरकारों की परवाह नहीं की।
गोरक्षपीठ के संतों का हर काम देश, सनातन और समाज के नाम
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों के नेतृत्व में जो भी काम हुए, वह व्यक्तिगत नाम के लिए नहीं बल्कि हर काम देश, सनातन धर्म और समाज के नाम रहा। ऐसा इसलिए कि सनातन धर्म के अनुरूप होने वाले सभी कार्य लोक कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं। सनातन की मजबूती किसी के उत्पीड़न के लिए नहीं बल्कि लोक कल्याण के लिए होती है।
आक्रांताओं को सद्भावना से विदा करता है सनातन धर्म
सीएम योगी ने कहा कि सनातन धर्म चराचर जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। यही कारण है कि आकस्मिक आपदाओं, सम-विषम परिस्थितियों में आक्रांताओं का समाना करते हुए अहर्निश जीवंत है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की यह विशेषता और महानता है कि यह आक्रांताओं को भी सद्भावना से विदा करता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आक्रांताओं के सपने पूरा करने के लिए कोई नक्सलवाद, आतंकवाद और अलगाववाद के नाम पर आता है लेकिन भारत में अंतत: नाकाम हो जाता है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी सबने कुछ ऐसी ही स्थिति देखी होगी। कोरोना से जब दुनिया उबर नहीं पा रही तब भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। हमारी रहन सहन, खानपान और पूजा समेत जीवन पद्धति ने हमें सभी परिस्थितियों का सामना करने के अनुकूल बनाया है।
रामलला के विराजमान होने से हुई गोरक्षपीठ के गुरुजनों की साधना व संकल्प की सिद्धि
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोरक्षपीठ के पूज्य संतों दिग्विजयनाथ जी और अवेद्यनाथ जी की साधना और संकल्पों की सिद्धि है। निस्वार्थ संत जब संकल्प लेते हैं तो उसे पूर्ण होना ही है। संतजन के संकल्पों की पूर्णता से सबका हृदय अंत:करण के प्रफुल्लित होता है। आज रामलला के विराजमान होने के साथ पूरी अयोध्या जगमगा रही है।
महंत दिग्विजयनाथ जी में थी दिव्य दृष्टि
सीएम योगी ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ था लेकिन उन्होंने गोरखपुर को अपनी कर्मभूमि और साधना स्थली बनाया। उनमें दिव्य दृष्टि थी। 1949 में ही उन्होंने अपनी इस दिव्य दृष्टि से देख लिया था कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा। आज उनके एक-एक संकल्प की पूर्ति हो रही है।
हर क्षेत्र में दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन होगी सच्ची श्रद्धांजलि
सीएम योगी ने कहा कि हम किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों, अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करेंगे तो यह ब्रह्मलीन महंतद्वय के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी विकसित भारत बनाने के लिए जो पंच प्रण दिए हैं, उनमें नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन सबसे महत्वपूर्ण है।
सामाजिक समरसता और हिंदुत्व का नाम पर मुखर रही है गोरक्षपीठ : रामविलास वेदांती
श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए वशिष्ठ आश्रम, अयोध्याधाम से आए, पूर्व सांसद डॉ. रामविलास वेदांती ने कहा कि सामाजिक समरसता और हिंदुत्व के नाम पर पूरे देश में किसी मठ का नाम लिया जाता है तो वह गोरखनाथ मठ है। गोरक्षपीठ हिंदुत्व और सामाजिक समरसता के नाम पर हमेशा ही मुखर रही है। राम मंदिर आंदोलन का सफल होना गोरक्षपीठ की अगुवाई के बिना संभव नहीं था। महंत दिग्विजयनाथ द्वारा किए गए नेतृत्व से रामलला का प्रकटीकरण हुआ तो 1984 में जब कांग्रेस सरकार के भय से कोई संत राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने को तैयार नहीं था तब महंत अवेद्यनाथ ने यह कहकर मंदिर आंदोलन की अगुवाई की कि उन्हें गोरखनाथ मंदिर की चिंता नहीं है बल्कि रामलला की चिंता है, राम मंदिर बनना ही चाहिए। महंत अवेद्यनाथ नेतृत्व स्वीकार नहीं करते तो मंदिर आंदोलन चल नहीं पाता। डॉ. वेदांती ने कहा कि 1973 में यदि महंत दिग्विजयनाथ जीवित होते तो बांग्लादेश एक अलग देश नहीं बल्कि भारत का एक राज्य होता। समाज में छुआछूत दूर करने के लिए दिग्विजयनाथ जी और अवेद्यनाथ जी ने जितना काम किया, उतना किसी ने भी नही किया। वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि आज किसी भी अन्य प्रांत में साम्प्रदायिक हिंसा होती है तो वहां का हिंदू चिल्लाकर कहता है कि उसे योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व चाहिए। बांग्लादेश देश के हिंदू भी आज अपने संरक्षण के लिए योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व चाहते हैं।
स्वाभिमानपूर्वक धर्म और राष्ट्र की रक्षा करना सिखाया महंतद्वय ने : काशीपीठाधीश्वर
श्रद्धांजलि सभा में जगद्गुरु अनंतानंद द्वाराचार्य काशीपीठाधीश्वर स्वामी डॉ. राम कमल दास वेदांती ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने स्वाभिमानपूर्वक धर्म और राष्ट्र की रक्षा करना सिखाया। उन्होंने कहा कि संत की भूमिका सिर्फ कुटी में चिंतन करने तक सीमित नहीं है और यही काम गोरक्षपीठ के महंतों ने किया। इस अवसर पर गोरखनाथ आश्रम, जूनागढ़, गुजरात के महंत शेरनाथ ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने अपना जीवन समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया। शिक्षा, स्वास्थ्य समेत समाज के विकास में उनका अभूतपूर्व योगदान है।
राष्ट्र केंद्रित राजनीति के अग्रणी योद्धा थे महंत दिग्विजयनाथ : प्रो. पूनम टंडन
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ का व्यक्तित्व करिश्माई और असाधारण था। वह राष्ट्र केंद्रित राजनीति के अग्रणी योद्धा थे। प्रो. टंडन ने कहा कि उनके द्वारा जगाई गई शिक्षा की अलख की प्रतिबिंब महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के बारे में बताया जाता है कि वर्तमान में इसके तहत 52 संस्थाएं हैं। वास्तव में शिक्षा परिषद की 52 नहीं बल्कि सही मायने में 53 संस्थाएं हैं क्योंकि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय भी इसी परिषद का अंग है। गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना का सपना तब साकार हुआ जब महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक महंत दिग्विजयनाथ जी ने इस परिषद की दो संस्थाएं गोरखपुर विश्वविद्यालय के नाम कर दीं। गोरखपुर विश्वविद्यालय उनका हमेशा ऋणी रहेगा। कुलपति ने ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को भी भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
युग प्रवर्तक थे महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज : प्रो उदय प्रताप
महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह ने ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि महंत दिग्विजयनाथ जी युग प्रवर्तक थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति के अनुरूप समाज निर्माण का व्रत ले रखा था। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी ने मैकाले की शिक्षा नीति के कुप्रभाव से समाज और राष्ट्र को बचाने के लिए 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। वह शिक्षा को राष्ट्र के विकास के लिए सबसे ताकतवर हथियार मानते थे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद को पुष्पित व पल्लवित किया। इसका परिणाम है कि आज इस परिषद के अंतर्गत 52 संस्थाएं संचालित हैं।
एमपी शिक्षा परिषद की संस्थाओं के प्रमुखों ने भी दी श्रद्धांजलि
महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाओं की तरफ से श्रद्धांजलि के क्रम में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर के कुलपति मेजर जनरल डॉ अतुल वाजपेयी, कर्नल डॉ. अरविंद कुशवाहा, डॉ. डीएस अजीथा, प्रो. नवीन के., डॉ. डीपी सिंह, डॉ. ओपी सिंह, डॉ. विजय कुमार चौधरी, डॉ. सीमा श्रीवास्तव, हर्षिता सिंह, डॉ. अरविंद चतुवेर्दी, डॉ. अजय कुमार पांडेय, डॉ. अनिल प्रकाश सिंह, डॉ. सुधीर अग्रवाल, शीतल डी. के., पंकज कुमार, डॉ. व्यासमुनि मिश्र, डॉ. शशिप्रभा सिंह, जगदम्बिका सिंह, हरिकेश त्रिपाठी, आशुतोष कुमार त्रिपाठी, डॉ. अजीत कुमार श्रीवास्तव, पवन सिंह तथा राजेंद्र सिंह ने अपनी-अपनी संस्था की तरफ से महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम में महाराणा प्रताप बालिका इंटर कॉलेज रमदत्तपुर की छात्राओं ने सरस्वती वंदना, गुरु वंदना तथा श्रद्धांजलि गीत की भावपूर्ण प्रस्तुति की। वैदिक मंगलाचरण डॉ. रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्ष अष्टक पाठ गौरव तिवारी व आदित्य पांडेय, दिग्विजय स्त्रोत पाठ डॉ. अभिषेक पांडेय ने किया जबकि संचालन डॉ. श्रीभगवान सिंह और आभार ज्ञापन महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष राजेश मोहन सरकार ने किया। समारोह के दौरान गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) के आचार्य डॉ. गोपीकृष्ण एस. की पुस्तक ह्यरोग निदान, एवं विकृति विज्ञानह्णका विमोचन मंचासीन अतिथिगण द्वारा किया गया। सभा का समापन महाराणा प्रताप बालिका इंटर कॉलेज रमदत्तपुर की छात्राओं द्वारा वंदे मातरम गायन से हुआ। इस अवसर पर दिगम्बर अखाड़ा अयोध्या के महंत सुरेश दास, हरिद्वार से पधारे योगी चेताईनाथ, फतेहाबाद हरियाणा से आए योगी राजनाथ, उज्जैन मध्य अयोध्या धाम से पधारे योगी कमलचंद्र, कर्नाटक से आए योगी भयंकरनाथ, बक्सर से आए योगी शीलनाथ, महाराष्ट्र से आए योगी मुकेशनाथ, गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, कालीबाड़ी के महंत रविंद्रदास आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।