Dainik Athah

बांटने की राजनीति करनेवाले लोग खुद बंट गये है: अखिलेश यादव

अथाह ब्यूरो
लखनऊ।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि अब जब भाजपा के संगी-साथी कह रहे हैं कि वो बूथ पर जाकर व्यवस्था संभालेंगे तो इसका मतलब साफ है कि वो लोकसभा चुनाव में हुई ऐतिहासिक पराजय को देखते हुए, ये मानकर चल रहे हैं कि भाजपा का कार्यकर्ता हताश होकर बूथ छोड़कर भाग चुका है या फिर अब भाजपा के मुखौटाधारी केवल सत्ता लोलुप संगी-साथियों को भाजपा के कार्यकतार्ओं पर भरोसा नहीं रहा है।

यादव ने कहा कि दरअसल चुनावी हार के बाद भाजपाई गुटों ने आपस में विश्वास खो दिया है। इसका एक और पहलू यह भी है कि भाजपा का ‘संगी-साथी’ पक्ष ये दिखाना चाहता है कि हार का कारण वो नहीं था, वो तो अभी भी शक्तिशाली हैं, कमजोर तो भाजपा हुई है। इन दोनों ही परिस्थितियों में यह तो साबित होता है कि भाजपाइयों ने हार स्वीकार कर ली है और अब भविष्य के लिए बेहद चिंतित हैं, लेकिन आपस में दोषारोपण करके, न तो ये एक-दूसरे का भरोसा जीत पाएंगे और न ही कोई आगामी चुनाव। बांटने की राजनीति करनेवाले लोग खुद बंट गये हैं।
यादव ने कहा कि भाजपा अपनी तथाकथित चाणक्य नीति के तहत जिन पन्ना प्रमुखों की बात करती थी, अब क्या वो इतिहास बन गये? आज अगर वे उपलब्ध नहीं हैं तो उसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं। अब भाजपा के जो गिने-चुने कार्यकर्ता बाकी है। वे ये सोचकर हताश हैं कि वर्तमान परिस्थिति में, जबकि समाज का 90 प्रतिशत पीडीए समाज जाग उठा है और पीडीए की बात करने वालों के साथ खड़ा है तो फिर वे किसके पास जाकर वोट माँगें और 90 प्रतिशत पीडीए समाज के सामने आकर क्यों उनके विरोधी होने का ठप्पा खुद पर लगाएं, आखिरकार उन्हें भी तो उसी 90 प्रतिशत समाज के बीच ही रहना है।

अखिलेश यादव ने कहा ऐसे भूतपूर्व भाजपाई पन्ना प्रमुख ये सच्चाई भी जान चुके हैं कि भाजपा में किसी की कोई सुनवाई नहीं है, तो ऐसे दल में रहकर कभी भी कोई मान-सम्मान-स्थान उन्हें मिलने वाला नहीं है। वे ऐसे दलों की सच्चाई भी जान चुके हैं जो भाजपा की राजनीति के मोहरे बनकर काम कर रहे हैं। वे देख रहे हैं कि जनता अब पीडीए की एकता और एकजुटता के साथ है क्योंकि पीडीए की सकारात्मक राजनीति लोगों को जोड़ती है और जनता के भले के लिए राजनीति को एक सशक्त माध्यम मानती है। इसीलिए समाज का अंतिम पंक्ति में खड़ा सर्वाधिक प्रताड़ित और शोषित-वंचित समाज भी पीडीए में ही अपना भविष्य देख रहा है। आजादी के बाद सामाजिक-मानसिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्यों में पीडीए सर्वाधिक शक्तिशाली और सफल क्रांतिकारी आंदोलन बनकर उभरा है। पीडीए के लिए राजनीति साधन भर है, साध्य है समाज का कल्याण। इसके ठीक विपरीत भाजपा के लिए चुनावी जीत और सत्ता की किसी भी तरह प्राप्ति करके जनता के हितों को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार करना ही साध्य है।

इन्हीं सब कारणों से भाजपा में जमीनी और बूथ स्तर पर कार्यकतार्ओं का सूखा पड़ गया है। अब जब ये भाजपाई संगी-साथी गाँव-गलियों में जाएँगे तो जनता के सवालों की लंबी सूची उनका इंतजार कर रही होगी। पीडीए प्रश्नों के रूप में एक लंबी सूची उनकी प्रतीक्षा कर रही होगी।


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