Dainik Athah

15 जुलाई को है स्वयं सिद्धि वैवाहिक मुहूर्त भड्डली नवमी

  • 17 जुलाई को है देवशयनी एकादशी,चातुर्मास हो जाएगा आरंभ
  • चातुर्मास में कौन से कार्य करें और कौन से ना करें
  • चातुर्मास में भी कर सकते हैं वैवाहिक और अन्य मंगल कार्य

दिनांक 15 जुलाई को अनबूझ वैवाहिक मुहूर्त है। अनबूझ विवाह मुहूर्त म आषाढ़ शुक्ल नवमी को भड्डली नवमी कहते हैं। चातुर्मास से पहले यह अंतिम स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। इसमें किसी विद्वान या ब्राह्मण से वैवाहिक मुहूर्त निकलवाने की आवश्यकता नहीं होती है।
17 जुलाई को देवशयनी एकादशी को अंतिम विवाह मुहूर्त है। देवशयनी एकादशी का व्रत भी इस दिन रखा जाएगा। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करना आरंभ कर देते हैं और वर्षा के चार मास अर्थात चातुर्मास के चार माह विश्राम करते हैं। देवोत्थान एकादशी अर्थात कार्तिक शुक्ल की एकादशी को वे जागृत होकर स्वर्ग लोक में पधारते हैं।
पुराणों में वर्णित आख्यानों के अनुसार चातुर्मास में कुछ कार्य करने योग्य होते हैं और कुछ नहीं करने योग्य होते हैं। इनको विशेष सावधानी पूर्वक व्यवहार में लाना चाहिए। क्योंकि यह अवधि वैज्ञानिक तथ्यों पर भी खरी उतरती है।

चातुर्मास में करने योग्य कार्य
प्राचीन काल में भारत में जंगल, वन और नदियां बहुतायत में थी। भारतवर्ष में ये चार माह वर्षा काल के माने गए हैं। लोगों का दूर देशों में आना जाना नहीं होता था ।लोग इन चार महीनों में अपने घरों में ही विश्राम करते थे ।और भगवान का ध्यान पूजन किया करते थे ।क्योंकि नदियों पर पुल नहीं थे और नदियां पार करने की भी उचित व्यवस्था नहीं थी। इन दिनों में बाढ़ आदि से नदियों का जल स्तर बढ़ जाता था, इसलिए लोग अपने को घरों में ही सुरक्षित मानते थे। चातुर्मास के इन 4 महीनों में भगवान नारायण का जाप ,अनुष्ठान,यज्ञ, हवन आदि करते थे।

सन्यासी लोग भी इस अवधि में अपने विशेष मठों में जाकर भगवान की तपस्या किया करते थे क्योंकि यह 4 महीने मौसम परिवर्तन के होते हैं इसीलिए भगवान की आराधना के लिए यह सर्वोत्तम काल था ।किंतु अब सुविधाएं हो गई हैं ।नदियों पर पुल बन गए हैं। आवागमन सुरक्षित हो गया है इसलिए चातुर्मास का महत्व घट गया है लेकिन जो भी हो इन दिनों में वातावरण में नमी हो जाती है ।बीमारियां फैल जाती है। छोटे-छोटे हानिकारक जन्तु प्रकृति में फैल जाते हैं। जिससे थोड़ी सी भी असावधानी होने से व्यक्ति बीमार हो जाते हैं। इसलिए इन दिनों में साफ सफाई का विशेष ध्यान दें ।हल्का भोजन करें और भगवान का पूजन दान और धार्मिक क्रियाओं को संपन्न करें।

चातुर्मास में यह कार्य न करें
हमारे प्राचीन विद्वानों ने चातुर्मास की अवधि को विवाह संस्कार, मुंडन, गृह प्रवेश आदि के लिए अशुभ माना है। इसलिए इन दिनों में इन कार्यों को करना अच्छा नहीं माना जाता है।
श्रावण,भाद्रपद ,आश्विन और कार्तिक इन 4 महीनों में कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिनका हमें सेवन नहीं करना चाहिए।

१.श्रावण के महीने में पत्तेदार सब्जियां न खाएं ,क्योंकि वर्षा अधिक होने से पत्तेदार सब्जियों में हानिकारक जीवाणु छुप जाते हैं। जो जाने अनजाने में हमारे भोजन तक पहुंच सकते हैं।
२. भाद्रपद के महीने में दही का खाना वर्जित होता है ।इन दिनों सिंह के सूर्य भी होते हैं ।प्रकृति में उमस बढ़ जाती है। जिससे दही में अधिक मात्रा में हानिकारक जीवाणु उत्पन्न होते हैं ,उसमें खट्टापन बढ़ जाता है। जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसलिए हमारे ऋषियों ने भाद्रपद के महीने में दही को खाना मना किया है। इससे पित्त सम्बन्धी विकार बढ़ जाते हैं।
३. आश्विन के महीने में दूध का सेवन न करें। इस अवधिक्षमें लगभग वर्षा काल पूरा होने को होता है ।किंतु मौसम में परिवर्तन हो जाता है। दूध देने वाले पशुओं का स्थान वर्षा के कारण अशुद्ध जाता है ।इस कारण ग्वाले आदि भी उस समय दूध धोने में विशेष सावधानी नहीं रख पाते थे। इस कारण आश्विन मास में दूध का सेवन वर्जित है।आश्विन के महीने में पितृपक्ष भी होता है ।कहा जाता है कि पितृपक्ष में भी दूध का सेवन करने से हमारे पूर्वज असंतुष्ट हो जाते हैं।
४. कार्तिक के महीने में प्याज, लहसुन, उड़द की दाल, छोले, बैंगन , मसालेदार सब्जियां ,मांसाहारी भोजन करना वर्जित माना गया है।
इन भोजन करने से शरीर में कफ संबंधी व्याधियों जन्म लेती हैं। जिससे हमारे ऋषियों ने इनका निषेध किया है।
५. चातुर्मास में काले, नीले वस्त्र धारण न करें। परनिंदा से बचें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। ऐसा करने से हम इन मासों को अपने स्वास्थ्य के अनुकूल बना सकते हैं ये शास्त्र वचन तो हैं ही ,साथ ही साथ वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरा है।

चातुर्मास में भी कर सकते हैं वैवाहिक कार्य और गृह प्रवेश
प्राचीन काल में मनुष्यों के लिए सुविधाएं कम थी ।नदी नालों को पार करने के लिए साधन नहीं थे। इसलिए ऋषियों ने ऐसे मंगल आयोजनों का निषेध कर दिया था, जिसे हम अकेले नहीं ,बल्कि समाज और परिवार के साथ मना सकें।
वैवाहिक कार्य और गृह प्रवेश आदि पारिवारिक और सामाजिक कार्यों में दूर-दूर से हमारे सगे संबंधी भाग लेने आते हैं। क्योंकि वर्षा काल में आने में असुविधा होती थी ।इसीलिए हमारे विद्वानों ने इस कार्य इस समय को इन कार्यों के लिए निषिद्ध किया था ।किंतु अब ऐसा नहीं है।
अब तो वर्तमान पंचांगों में पंचांगकारों ने इन मासों में भी विवाह और गृह प्रवेश के मुहूर्त दिए हुए हैं। इसलिए आवश्यक होने पर प्राचीन निषेधों का त्याग करके वैवाहिक कार्य और अपने मंगल कार्यों का आयोजन भी कर सकते हैं।
अब तो देश शयन होना प्रतीकात्मक होता है। क्योंकि अधिकतर जितने भी पर्व होते हैं: शिवरात्रि ,नाग पंचमी ,अमावस्याए़ं, एकादशियां,पूर्णिमा, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी ,नवरात्रि ,श्राद्ध, दशहरा, दीपावली आदि सभी का आयोजन इस अवधि में कोई निषेध नहीं है, तो हम अपने मंगल कार्यों में भी निषेध न मानें।इसलिए इस परंपरा को तोड़ते हुए हमें देश ,काल, परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेना चाहिए।

पंडित शिवकुमार शर्मा , ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट
अध्यक्ष -शिवशंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र, गाजियाबाद।

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