Dainik Athah

…. और गाजियाबाद की जंग हार गये पूर्व भारतीय सेनाध्यक्ष वीके सिंह

सभी के अपने- अपने दांव- अपनी- अपनी हसरत

टिकट कटता देखकर ही एक्स और फेसबुक पर चुनाव न लड़ने की घोषणा की थी जर्नल वीके सिंह ने

भाजपा प्रत्याशी स्थानीय अवश्य, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं रहने वाली
फोटो फौजी वर्दी में जर्नल वीके सिंह, अतुल गर्ग, अरुण सिंह, अनिल अग्रवाल, सत्येंद्र सिसौदिया


अशोक ओझा
गाजियाबाद।
भारतीय सेना के पूर्व सेनाध्यक्ष, गाजियाबाद से दो बार के सांसद एवं केंद्र सरकार में राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह गाजियाबादियों के दांवपेंच के सामने तीसरी बार लोकसभा जाने की जंग टिकट वितरण में ही हार गये। यह हार ऐसे ही नहीं हुई। हर कोई अपने लिए शतरंज के खेल में चाल चल रहा था। चाल चलने वालों में अधिकांश खेत रहे और साथ ही जर्नल वीके सिंह भी जंग हार कर बाहर हो गये। शतरंज के इस खेल में प्यादों के सहारे शहर विधायक अतुल गर्ग ने सभी को मात दे दी। उनकी मदद की भाजपा और राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ के बड़े नेताओं ने।
जर्नल वीके सिंह ने कई युद्धों में दुश्मनों के खिलाफ भारतीय सेना का नेतृत्व किया और जीत हासिल की। जब एक दशक पूर्व 2014 में वे गाजियाबाद से चुनाव लड़ने आये थे उस समय तक भाजपा के तत्कालीन राष्टÑीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह कांग्रेस के पंजे से सीट को छीन चुके थे। वे अटलजी की सीट लखनऊ के लिए चले तो जर्नल वीके सिंह को गाजियाबाद के कीचड़ में कमल खिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसमें वे सफल भी हुए। लेकिन एक दशक के उनके कार्यकाल में इंद्र प्रस्थ की इस भूमि में शह और मात का खेल चलता रहा। कभी उनके खास रहे भाजपा पदाधिकारी और जन प्रतिनिधि ही जिसमें कोई खुलकर तो कोई चोरी छुपे उनके विरोध में आ गये।
अब आपको बताते हैं कि लड्डू की तरह नजर आने वाली इस सीट पर अनेक लोगों की नजरें थी। इनमें मुख्य रूप से भाजपा के राष्टÑीय महासचिव अरुण सिंह, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिसौदिया, राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं। भाजपा सूत्रों की मानें तो एक तरफ विधायकों ने जर्नल वीके सिंह के खिलाफ लंबे समय से मोर्चा खोला हुआ था। विधायक कभी अरुण सिंह के पक्ष में नजर आ रहे थे तो कभी किसी अन्य के। उनका निशाना केवल वीके सिंह थे। दूसरी तरफ भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिसौदिया अपने लिए शतरंज की बिसात पर चाल चल रहे थे। यहीं कारण है कि उन्होेंने जर्नल वीके सिंह के पक्ष में कहे जाने वाले जनप्रतिनिधियों से भी भाजपा नेतृत्व को वीके सिंह के विरोध में पत्र भिजवा दिये। जिन लोगों ने सत्येंद्र सिसौदिया के इशारे पर पत्र भेजे वे विधायकों के गुट के भी खिलाफ थे।
अब बात करें तो राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल खुद को जर्नल वीके सिंह के खिलाफ धुरी मानते रहे और प्रयास करते रहे। वे खुलकर वीके सिंह का विरोध कर रहे थे। इसी बीच कई और नामों की चर्चा चली। लेकिन चतुर निकले शहर विधायक अतुल गर्ग। वे विधायकों के गुट के अगुआ तो थे ही, लेकिन प्यादों के सहारे अपने लिए शतरंज की चाल चलते रहे। अंत में संघ और भाजपा के एक बड़े नेता जो उनकी बिरादरी के थे, के सहयोग से वे बाजी मार ले गये और अन्य दावेदार केवल अपने को ठगा सा महसूस करते रहे। वे बाद में जर्नल वीके सिंह का पक्ष भी नहीं ले सकते थे। इस प्रकार अतुल गर्ग ने राजनीति की शतरंज पर दुश्मन देशों के दांत खट्टे करने वाले जर्नल को चित कर दिया।


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