किसके इशारे पर हटी सहकारी आवास समिति के विरुद्ध लिखी तहसीलदार की चेतावनी
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। सहकारी आवास समितियों के कामकाज पर उंगलियां उठना नई बात नहीं हैं। तमाम प्रशासनिक निगरानी के बावजूद अधिकांश सहकारी आवास समितियों के कर्ताधर्ता शासन प्रशासन की आंख में सरेआम धूल झोंक कर करोड़ों के वारे-न्यारे करने में लगे हैं। ऐसा ही एक प्रकरण राष्ट्रीयकृत बैंककर्मी एवं मित्रगण सहकारी आवास समिति लि. का भी सामने आया है। सदरपुर गांव अंतर्गत स्वर्ण जयंतीपुरम योजना स्थित इस सहकारी समिति पर धोखाधड़ी के गंभीर आरोप तो हैं ही साथ ही सरकार द्वारा अधिग्रहित की जाने वाली भूमि को बेचने का भी आरोप है। प्रशासनिक अमले की निगरानी के बावजूद समिति के कर्ताधतार्ओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने उस प्रशासनिक चेतावनी को भी खुर्द-बुर्द कर दिया है, जो उनके द्वारा की जाने वाली संभावित कथित साजिश का संकेत देती थी।
यह प्रकरण संज्ञान में तब आया जब समिति के आवासीय परिसर के बाहर विरोध रूप से प्रदर्शित प्रशासनिक चेतावनी से खिलवाड़ किया गया। समिति के आवासीय परिसर के मुख्य मार्ग पर कुछ दिन पहले तक एक बोर्ड लगा हुआ था। जिस पर तहसीलदार गाजियाबाद के हवाले से एक चेतावनी दर्ज थी। जिसका मजमून इस प्रकार था ‘सभी को सूचित किया जाता है कि राष्ट्रीयकृत बैंक कालोनी (संयोग नगर) उक्त भूमि में जो भी प्लाटिंग की गई है उसमें राज्य सरकार की भूमि है। जिसका चिन्हांकन नहीं हो सका है।? उक्त भूमि में कोई भी क्रय विक्रय किया जाना उचित नहीं है। क्रय-विक्रय किया जाना कानूनी रूप से अवैध व अमान्य होगा। जिसका उत्तरदायित्व क्रय-विक्रय करने वाले का होगा। उसके विरुद्ध नियम अनुसार कार्यवाही की जाएगी।
आज्ञा से- तहसीलदार, गाजियाबाद।
किसी भी आवासीय परिसर के बाहर लगा प्रशासनिक चेतावनी का ऐसा बोर्ड न सिर्फ हर किसी का ध्यान आकर्षित करता है, बल्कि इस बात का सुबूत भी माना जा सकता है कि सांकेतिक योजना में कोई न कोई गड़बड़ी या घोटाला तो जरूर है। और शायद ऐसा है भी। क्योंकि कुछ दिन पहले ही चेतावनी के इस बोर्ड से न सिर्फ छेड़छाड़ की गई है बल्कि सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित प्रशासनिक चेतावनी को खुर्द-बुर्द कर दिया गया। यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि प्रशासनिक चेतावनी से खिलवाड़ किस मकसद से और किसके इशारे पर किया गया? इस प्रकरण में जब राष्ट्रीयकृत बैंक कर्मी एवं मित्रगण सहकारी आवास समिति लिमिटेड के कर्ताधर्ता का पक्ष जानने की कोशिश की गई तो उन्होंने यह कहते हुए टालने की कोशिश की कि मामला अदालत में विचाराधीन है। जबकि हमारे संज्ञान में यह आया है कि अदालत द्वारा समिति को बाह्य विकास शुल्क गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के खाते में जमा करवाने के निर्देश पहले ही दिए जा चुके हैं। यह राशि करोड़ों रुपए में है। इस संबंध में जीडीए के अधिकारियों का कहना है कि उनके संज्ञान में अब तक यह प्रकरण आया नहीं था, अलबत्ता उन्होंने इस प्रकरण की जांच का आश्वासन अवश्य दिया है।