मंथन : पूरा देश पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के जल्द स्वस्थ्य होने की दुआ मांग रहा था। लेकिन भगवान को शायद कुछ और ही मंजूर था। लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद भारत रत्न से सम्मानित प्रणब मुखर्जी ने सेना के अस्पताल में अंतिम सांस ली।
प्रणब मुखर्जी चाहे जीवनभर किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े रहे हो। लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद वे दलीय राजनीति से पूरी तरह से दूर हो गये। किसी भी राजनीतिक दल से उनका कोई संबंध नहीं रहा। यह उनके व्यवहार में एवं उनकी कार्यशैली में भी नजर आया।
चाहे कांग्रेस समेत अन्य दलों ने कितना भी विरोध किया हो उन्हें यदि राष्ट्रपति स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में शामिल होना था तो वे हुए भी। हालांकि उनकी पुत्री ने भी इसका विरोध किया था। लेकिन वे प्रणव दा थे। उन्होंने किसी की नहीं सुनी। इसके साथ ही बहुत से ऐसे मौके थे जब उन्होंने देश को सर्वोपरि मानते हुए निर्णय किये। यहीं कारण था वे सभी दलों के ही नहीं देश की आम जनता के भी प्रिय रहे।
देश की जनता भी उन्हें दलीय राजनीति से ऊपर मानती थी। जनता में उनके प्रति जितना आदरभाव था वह लंबे समय बाद देखने को मिला। राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने अपने संदेश में ठीक ही कहा है एक युग की समाप्ति हो गई। दैनिक अथाह परिवार भी प्यारे प्रणब दा को को नमन करता है।
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