Dainik Athah

बाहर से आए नेताओं को तुरंत नहीं मिलना चाहिए टिकट: रमेश चन्द तोमर

घोसी का चुनाव परिणाम कार्यकर्ताओं की हताशा का नतीजा

अथाह संवाददाता

गाजियाबाद। पूर्व सांसद रमेश चंद तोमर ने घोसी के चुनाव परिणाम पर पार्टी को चिंतन मनन की कवायत करते हुए कहा की घोसी के नतीजों ने हमें आत्मचिंतन का अवसर दिया है। हमें यह सोचने की जरूरत है कि हमारे पास जब देश में नरेंद्र मोदी जी और प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी जैसा सक्षम नेतृत्व है तो आखिर घोसी उपचुनाव में इस तरह का परिणाम क्यों आया? क्या अधिकारियो का हावी होकर मनमानी करना, नेताओ, कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनना वजह है? या फिर बाहर से आए नेताओं को पार्टी के समर्पित लोगों के स्थान पर तरजीह देना कारण है?
मुझे याद है कि 1982 से 84 के बीच जब कल्याण सिंह जी प्रदेश में पार्टी की कमान संभाल रहे थे। उस वक्त हम लोगों के पास ज्यादा संसाधन भी नहीं थे। हम लोग साइकिल, स्कूटर से घूमकर लोगों तक पहुंचते थे। कार्यकर्ता के पास जाते थे। एक बार कल्याण सिंह जी ट्रेन से गाजियाबाद आए में जिला अध्यक्ष था। मैने जो गाड़ी बुलाई थी वह समय पर नहीं आ पाई। वे पहुंच गए तो मैने कहा बाबू जी गाड़ी बुला रखी थी वह आई नहीं अभी तक। उन्होंने कहा अरे तिपहिया तो है। मेरे साथ रिक्शे पर बैठकर वे कार्यालय आए और कार्यकर्ताओं से मिले। इस तरह का लगाव समर्पण ही पार्टी को मजबूत बनाता है। नरेंद्र मोदी जी भी देश के कोने कोने में प्रचार कर घूमकर जमीनी कार्यकर्ता से मिलते रहे। आज भी उनका संपर्क जमीन तक रहता है।
लेकिन कहीं न कहीं बाहर से आए लोग जो केवल सत्ता को ध्यान में रखकर पार्टी में आते हैं उनसे पार्टी को नुकसान होता है। किसी अन्य दल से आने वाले नेताओं के लिए चार या पांच साल का कूलिंग ऑफ पीरियड रखना चाहिए। इस दौरान पार्टी की रीति नीति सिद्धांत के प्रति उनका समर्पण और व्यवहार देखना चाहिए। सत्ता की लालच में आए लोगों को तुरंत पद या टिकट देने के प्रचलन से कार्यकर्ता हताश और निराश है। यह प्रवृत्ति बंद होनी चाहिए।
ब्यूरोक्रेसी भी अगर बेलगाम होती है तो इसका प्रतिकूल असर पड़ता है। कार्यकर्ता हतोत्साहित होता है। घोसी का नतीजा भी हमे यही सबक देता है। हमें गंभीरता से सोचने की जरूरत है। अगर हमने इन आंख खोलने वाले परिणामों से सबक नहीं लिया तो आने वाले दिनों में पार्टी को ज्यादा नुकसान हो सकता है। पार्टी नेताओं को कार्यकर्ता से सीधा संवाद करना चाहिए। अधिकारियों के मनमानेपन पर रोक लगना चाहिए। जो लोग बाहर से आते हैं उनकी विश्वसनीयता का आकलन करके कार्यकर्ताओं की राय लेना भी जरूरी है।

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