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रानी अहिल्याबाई होल्कर न्याय, धर्म, समर्पण की प्रतिमूर्ति थी: अखिलेश यादव

सपा ने मनाई वीरांगना अहिल्या बाई होल्कर की 298 वीं जयंती

अथाह ब्यूरो
लखनऊ।
समाजवादी पार्टी के प्रदेश मुख्यालय, लखनऊ और प्रदेश के सभी जनपदों में बुधवार को वीरांगना रानी अहिल्याबाई होल्कर की 298वीं जयंती सादगी से मनाई गई। राजधानी में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दयाराम पाल थे और अध्यक्षता पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेन्द्र चौधरी ने की। कार्यक्रम का संचालन वीरेन्द्र पाल एडवोकेट ने किया। समाजवादी अधिवक्ता सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीकृष्ण कन्हैया पाल, समाजवादी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष डा. राजपाल कश्यप, विजय पाल एडवोकेट ने वीरांगना अहिल्या बाई होल्कर के जीवन और समाज, राष्ट्र की वर्तमान स्थिति पर चर्चा की। इस अवसर पर बड़ी संख्या में अधिवक्तागण मौजूद रहे।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने संदेश में कहा है कि रानी अहिल्याबाई होल्कर शिवजी की अनन्य भक्त और न्याय, धर्म, समर्पण की प्रतिमूर्ति थी। उन्होंने अपने शासन काल में बहुत सामाजिक कार्य कराये। मन्दिर, बावड़ी, धर्मशाला का निर्माण कराया और वृक्षारोपण के साथ काफी दान पुण्य भी किया। माहेश्वर और इन्दौर में मन्दिर का निर्माण कराया। अपने राज्य को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए स्वयं युद्ध के मैदान में उतर जाती थी। वीरता में उनका दूसरा सानी नहीं था। उनके शासनकाल में जनता सुखी और समृद्ध थी।
समाजवादी पार्टी के राज्य कार्यालय में आयोजित समारोह में वक्ताओं ने रानी अहिल्याबाई होल्कर के जीवन दर्शन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महारानी ने काशी विश्वनाथ मन्दिर को 9 मन सोना दान किया था। समाज के सभी वर्गों के हित में कार्य किये। वक्ताओं ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर ने अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध जैसा संघर्ष किया वैसा संघर्ष करने वाला श्री अखिलेश यादव के अलावा आज कोई नहीं है। भाजपा राज में आज चारों तरफ अराजकता है। किसानों, महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं। संविधान प्रदत्त आरक्षण को समाप्त करने की साजिश में निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। संसदीय लोकतंत्र को बचाने के लिए अखिलेश यादव के नेतृत्व में संघर्ष जारी है।
कार्यक्रम में उपस्थित सभी का मानना था कि अब समय नहीं है शेष, सबको बनना होगा अखिलेश। जब समर नहीं रहेगा शेष, लक्ष्य भेद रहे सिर्फ अखिलेश इसलिए अब अनुशासन के प्रति और स्वाभिमान से समझौता नहीं करना है।


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