मंथन: कोविड 19 के दौरान गाजियाबाद जिला ही नहीं देशभर के निजी पब्लिक स्कूलों की मनमानी बढ़ गई है। एक तरफ बच्चे स्कूल नहीं जा रहे। उन्हें केवल आॅन लाइन ही पढ़ाया जा रहा है। इसके बाद भी स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों को पूरी फीस चाहिये।
यह स्थिति तब है जब स्कूलों के एसी, पंखे, लाइट बंद होने के कारण बिजली का बिल न के बराबर आ रहा है। स्कूलों के जनरेटर भी बंद पड़े हैं। अधिकांश स्कूलों ने या तो अपना स्टाफ 25 फीसद कर दिया है। इतना ही नहीं जो स्टाफ बचा है उसका वेतन भी आधा या उससे कम कर दिया है।
बावजूद इसके स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों से फीस पूरी चाहिये। इस मामले में जिलों के प्रशासन से लेकर प्रदेश एवं केंद्र सरकारें चुप्पी साधे बैठी है। जबकि अभिभावक खून के आंसू रोने को विवश है। लेकिन इससे लगता है कि किसी को कोई लेना देना नहीं है।
हो भी क्यों जब अधिकांश निजी स्कूल या तो उद्योगपतियों के है अथवा राजनीतिज्ञों के अथवा सेवा निवृत्त ब्यूरोक्रेट्स के। इन स्कूलों में बड़ी संख्या में वर्तमान अफसरों का पैसा भी लगा है। इस स्थिति में सरकार कैसे कदम उठाये। कौन लगाये स्कूलों की मनमानी पर अंकुश।
यदि जिलों के अफसर, प्रदेशों व केंद्र की सरकार चुप्पी साधे रही तो कहीं अभिभावकों का यह गुस्सा बड़ा आंदोलन न बन जायें। मंगलवार को इस मुद्दे पर देश व प्रदेश की राजधानी समेत अनेक स्थानों पर आंदोलन भी हुए हैं। जो सरकारों को चेतावनी है।
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