ग्रे नो प्राधिकरण द्वारा आबादी भूखंडों के संबंध में आपत्ती का विज्ञापन अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित कराना समझ से परे।
उत्तर प्रदेश में जीरो टोलरेंस नीति पर काम करने वाली सरकार भ्रष्टाचार को समाप्त करने का भले ही लाख यत्न करे लेकिन भ्रष्टाचारी अपने कारनामों से बाज आते नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसा ही एक और नजारा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित कराए गए विज्ञापन से देखने को मिला है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा रोजा याकूबपुर के 74, चूहडपुर खादर गांव के 24, खानपुर गांव के 13, पतवाड़ी गांव के 12 और सैनी गांव के 19 किसानों की अर्जित भूमि के सापेक्ष 4/5/6/8/10% आबादी भूखंड आबंटन हेतु प्राप्त प्रार्थना पत्रों पर किसी भी प्रकार की आपत्ति प्राप्त करने हेतु दिनांक 23 अप्रैल 2023 को अंग्रेजी के “द टाइम्स ऑफ इंडिया” जैसे उस प्रतिष्ठित अखबार में विज्ञापन प्रकाशित कराया जाना संदेहास्पद नजर आ रहा है जिस अखबार को गांव देहात का आम किसान तो बहुत दूर की बात है अच्छे खासे पढ़े-लिखे लोग भी बहुत कम पढ़ते हैं। ऐसे अखबार में कम पढ़े लिखे किसानों से संबंधित विज्ञापन को प्रकाशित कराने से कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार के पूर्व नियोजित षडयंत्र की बू आ रही है।
स्थानीय स्तर पर पढ़े जाने वाले हिंदी अखबारों के बजाय द टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार में किसानों से संबंधित विज्ञापन प्रकाशित कराने के पीछे प्राधिकरण के अधिकारियों की खराब मंशा स्पष्ट नजर आ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राधिकरण के अधिकारी आबादी भूखंड आबंटन की प्रक्रिया को छुपाकर आम लोगों को अनभिज्ञ रखना चाहते हैं ताकि प्रक्रिया की अनभिज्ञता का लाभ उठाकर भूखंड आबंटन के वक्त भ्रष्टाचारी सौदेबाजी करके किसानों का आर्थिक उत्पीड़न किया जा सके। इस विज्ञापन में यह तक भी स्पष्ट नहीं किया है कि किस किसान ने कितने प्रतिशत भूखंड के लिए आवेदन किया है ? अगर किसी को इस बात का इल्म ही नहीं होगा तो आपत्ती लगाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। अखबार में प्रकाशित ऐसे किसानों के भी नाम प्रकाशित हैं जो जनपद गौतम बुद्ध नगर से बाहर अन्य जनपद अथवा अन्य प्रदेशों के वाशिंदे हैं। लेकिन इस बात का विज्ञापन में कहीं उल्लेख नहीं है कि अन्य जनपद अथवा अन्य प्रदेशों के जिन काश्तकारों के नाम विज्ञापन में प्रकाशित हैं उनको किस आधार पर पुश्तैनी काश्तकार मानकर इस विज्ञापन में शामिल किया गया है। क्योंकि उनके पुश्तैनी काश्तकारों को आबादी भूखंड के लिए प्राधिकरण पात्र नहीं मानता है। इसके अतिरिक्त इस *विज्ञापन में ऐसे काश्तकारों के भी नाम प्रकाशित न करना संदिग्ध नजर आ रहा है जो काश्तकार 28 जनवरी 1991 को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की स्थापना से पूर्व के भूस्वामी हैं और नियमानुसार काश्तकार की परिभाषा के दायरे में आते हैं।*ऐसा प्रतीत होता है कि उनके नाम इसलिए सूची में प्रकाशित नहीं किए गए ताकि बाद में उनसे सौदेबाजी की जा सके।
विज्ञापन में कहीं भी इस बात का भी जिक्र नहीं किया गया है कि आपत्ती के विषय क्या क्या होंगे। “द टाइम्स ऑफ इंडिया” अखबार में प्रकाशित विज्ञापन से ऐसे ही कुछ अनसुलझे सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। यह भी संभव है कि अंग्रेजी के इस प्रतिष्ठित अखबार में प्रकाशित विज्ञापन की दरें हिंदी के उन अन्य अखबारों की बनिस्पत अधिक हों जिनको ग्रेटर नोएडा व एनसीआर क्षेत्र में आमजन द्वारा आमतौर पर पढ़ा जाता है । अगर ऐसा है तो यह भी ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के राजस्व को एक तरह से क्षति पहुंचाने का कारनामा है। अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित कराए गए इस विज्ञापन की जांच कराई जानी चाहिए जिससे प्रकाशित कराने का मकसद पूरा नहीं हो रहा है। क्योंकि आम जनता से जुड़े किसी विषय के विज्ञापन को प्रकाशित कराने का मकसद तभी पूरा होता है जब उस अखबार को पढ़ने वालों की संख्या अधिकाधिक हो। ताकि प्रकाशित विज्ञापन को ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ सकें। गांव के कम पढ़े लिखे आम किसान से संबंधित खबर को अंग्रेजी के “द टाइम्स ऑफ इंडिया” अखबार में प्रकाशित कराने से विज्ञापन का मकसद पूरा होता नजर नही आ रहा है। इसीलिए निश्चित तौर पर इस विज्ञापन को आम किसान से छुपाने का प्रयास किया गया है। इस विज्ञापन को द टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे अखबार में प्रकाशित कराने के पीछे की मंशा की जांच कराई जानी चाहिए और हिंदी के उन अखबारों में भी यह विज्ञापन प्रकाशित कराया जाना चाहिए जो अखबार ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के गांवों में अधिकाधिक संख्या में पढ़े जाते हों।
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