Dainik Athah

मंथन: दो दिन का लॉक डाउन कितना सार्थक!

मंथन: प्रदेश सरकार ने कोरोना संक्रमण रोकने के लिए पूरे प्रदेश में दो दिन शनिवार एवं रविवार को लॉकडाउन घोषित किया है। लॉकडाउन का अर्थ लॉक अर्थात तालाबंदी होनी चाहिये।

लेकिन ऐसा नहीं है। न तो बेवजह की आवाजाही रूक रही है और न ही ठेली पटरी पर व्यापार करने वालों पर कोई अंकुश है। यह अंकुश केवल उनके ऊपर है जो कानून को मानते हैं अथवा कानून का सम्मान करते हैं। इसका सबसे बुरा असर यदि किसी के ऊपर हो रहा है तो वह व्यापारी वर्ग है।

व्यापारी भी वे जो दुकान खोलकर बैठते हैं। जिनकी दुकानों में शटर अथवा दरवाजे नहीं है वे व्यापारी कैसे हो सकते हैं। इस दो दिनी लॉकडाउन में सड़कों पर भी वह सन्नाटा नजर नहीं आता है जो पहले, दूसरे एवं तीसरे लॉक डाउन के दौरान था।

यदि देखा जाये तो लॉकडाउन के दिन क्लबों में बेडमिंटन अथवा अन्य खेल बंद कमरों में पहले की तरह खेले जा रहे हैं। इसके साथ ही प्रशासन व पुलिस की नाक के नीचे सबसे व्यस्त रहने वाले आरडीसी में भी कुछ दुकानें पुलिस की मिलीभगत से खुली रहती है। इस लॉक डाउन का सबसे बड़ा मजाक बताता हूं- शनिवार को रात के करीब साढ़े नौ बजे थे।

यह भी याद दिला दें कि शनिवार लॉक डाउन होता है। मोदीनगर की उप नगरी गोविंदपुरी के एक चौक में अवैध रूप से स्थाई दुकान लगाई जाती है जहां समोसे, जलेबी समेत अन्य मिठाइयां जो एक मिठाई की दुकान पर बिकती है सब बिकती है। यहीं पर आइसक्रीम भी बेची जाती है। दुकान के पास ही पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी खड़ी होती है।

लेकिन लगता है कि पुलिस ने आंखों पर पट्टी बांधी हुई है। पुलिस को यह दुकान नहीं दिखती। यह तो एक उदाहरण है। पूरे जिले एवं प्रदेश में करीब करीब ऐसी ही स्थिति है। जब ऐसा हो रहा है लॉक डाउन की आड़ में आम व्यापारियों एवं मिठाई बेचने वालों को भी छूट देकर लॉक डाउन का नाटक सरकार को बंद कर देना चाहिये। ये उदाहरण काफी है लॉक डाउन की सार्थकता को बताने के लिए।

मंथन ————————————————————————-Mantan

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