करीब 75 करोड़ रुपए वार्षिक ब्याज ने बढ़ाई जीडीए अफसरों की चिंता
प्रोजेक्ट पूरे कर चुके बिल्डर्स हैं प्राधिकरण के बड़े बकाएदार
आलोक यात्री
गाजियाबाद। गंभीर वित्तीय संकट झेल रहे गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में बकाया वसूली प्रक्रिया सख्त करने की कवायद आज से शुरू हो गई है। करीब 500 करोड रुपए ऋण व उस पर भारी भरकम ब्याज की अदायगी के चलते प्राधिकरण का वित्तीय संकट दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इस संकट से उबरने के लिए प्राधिकरण उपाध्यक्ष राकेश कुमार सिंह के निर्देश पर अफसरों को आज सिर जोड़ कर बैठना पड़ा। सचिव ब्रजेश कुमार, वित्त नियंत्रक अशोक कुमार बाजपेई व अपर सचिव सी. पी. त्रिपाठी की अगुवाई में हुई मैराथन बैठक में अधिकारियों ने संबंधित स्टाफ व अधिकारियों को युद्ध स्तर पर बकाया वसूली के निर्देश जारी कर दिए हैं। समाचार लिखे जाने तक जोन व योजना वार वसूली का डाटा तैयार किया जा रहा था। गौरतलब है कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण पर विभिन्न वित्तीय एजेंसियों की करीब 500 करोड़ रुपए की देनदारी है। ऋण की वार्षिक किस्त लगभग 175 करोड़ पर बताई जाती है। ब्याज समेत यह राशि लगभग 245 करोड रुपए सालाना बैठती है। बुधवार सुबह पहले दौर की अधिकारिक मंत्रणा में आला अधिकारियों ने इस बात पर चिंता जताई कि विभिन्न प्रतिष्ठानों व बिल्डर्स से वसूली की रफ्तार निहायत धीमी है। वसूली की धीमी रफ्तार पर उपाध्यक्ष राकेश कुमार सिंह भी कई बार नाराजगी जता चुके हैं। क्योंकि फिलहाल की रिकवरी से जीडीए अधिकारियों व कर्मचारियों का वेतन वितरण भी दूभर है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि प्राधिकरण के पास करीब 5000 करोड़ रुपए की अनिस्तारित संपत्तियां हैं। जिन्हें कई प्रयास के बावजूद बेचा नहीं जा सका है। वर्तमान में प्राधिकरण की आय का मुख्य स्रोत संपत्ति की नीलामी व कंपाउंडिंग के जरिए प्राप्त होने वाला शमन शुल्क ही है। इन दोनों ही मद में जीडीए को महज 8 से 10 करोड़ रुपए मासिक की आय होती है। जो प्राधिकरण के रखरखाव, कर्मचारियों व अधिकारियों के वेतन के लिए भी अपर्याप्त बताई जाती है। सुबह के सत्र में हुई मंत्रणा की बाबत वित्त नियंत्रक श्री वाजपेई का कहना है कि सभी विभागीय प्रभारियों को बकाया लेनदारी का डाटा तैयार करने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा कि शाम के सत्र में विभागीय प्रभारियों से लिए गए डाटा के आधार पर वसूली की रणनीति निर्धारित की जाएगी। प्राधिकरण की देनदारी के पिछले आंकड़े बताते हैं कि अपने प्रोजेक्ट पूरे कर चुके अधिकांश बिल्डर्स जीडीए के सबसे बड़े बकाएदार हैं। जिन पर करीब 150 करोड़ रुपए बकाया है। जानकारों का कहना है कि जीडीए के समक्ष मधुबन बापूधाम की भूमि अधिग्रहीत करने व उसे विकसित करने के लिए लिया गया लगभग 800 करोड रुपए का ऋण एक बड़ा बोझ है। बीते एक दशक के दौरान भी यह योजना पूरी तरह से परवान नहीं चढ़ पाई है। एलिवेटेड रोड के लिए लिए गए ऋण की किस्तें भी जीडीए को अभी चुकानी पड़ रही हैं। आज की इस मैराथन बैठक के नतीजे कितने सार्थक निकलते हैं यह तो भविष्य ही बताएगा। अलबत्ता इस वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले सिर पर चढ़े बकाया ऋण व ब्याज की किस्त जीडीए कैसे चुकाएगा इस पर उपाध्यक्ष राकेश कुमार सिंह को कड़ा रुख अख्तियार करना ही पड़ेगा।————