Dainik Athah

पूर्व विधायक ने लगाया तत्कालीन अफसर पर इंदिरापुरम में घोटाले का आरोप

फर्जी आवंटन का एक और जिन्न आया बोतल से बाहर

याचिका में लगाया रिश्तेदारों को कीमती भूखंड आवंटित करने का आरोप

आलोक यात्री
गाजियाबाद।
स्वर्ण जयंती पुरम भूखंड आवंटन घोटाले की जांच आज तक अंजाम तक नहीं पहुंच सकी। जिसकी वजह से जीडीए के आला अफसर आए दिन हाई कोर्ट में खड़े होने को विवश हैं। एक तरफ हाई कोर्ट में लंबित याचिकाएं जहां अफसरों के जी का जंजाल बनी हुई हैं, वहीं एक और भू-आवंटन घोटाले के जिन्न ने बोतल से बाहर आकर अफसरों की परेशानी कुछ और बढ़ा दी है। ताजा प्रकरण इंदिरापुरम आवासीय योजना से जुड़ा बताया गया है। प्राधिकरण के ही एक पूर्व आला अधिकारी पर आरोप है कि उन्होंने पद का दुरुपयोग करते हुए कई कीमती भूखंड अपने रिश्तेदारों को रेवड़ी की तरह बांट दिए हैं। जानकारों का कहना है कि यह आरोप किसी और ने नहीं बल्कि सूबे के उच्च सदन के एक पूर्व सदस्य ने लगाया है।

गौरतलब है कि बीते तीन दिनों से प्राधिकरण के अधिकारियों में याचिका संख्या 41773/ 2012 पर गंभीर मंथन चल रहा है। यह प्रकरण बरसों से सुप्त अवस्था में चल रहे ज्वालामुखी की तरह अचानक फटा तो अफसरों में हड़कंप मच गया। इस प्रकरण में याचिकाकर्ता पूर्व विधायक रवींद्र कुमार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य के विरुद्ध नियमों के विपरीत भूखंड आवंटन करने की याचिका दायर कर रखी है। बीते एक दशक से यह प्रकरण विभिन्न पटल पर जांच हेतु लंबित था। प्रकरण में हाईकोर्ट ने अब अगली सुनवाई की तिथि निर्धारित कर दी तो अफसरों को कार्रवाई की सूझी। अफसरों ने आनन-फानन में घोटाले से जुड़े दस्तावेज तलब किए तो संज्ञान में आया कि एक संबंधित लिपिक का निधन हो चुका है, तो दूसरा लिपिक बरसों पहले ही रिटायर हो चुका है। कोढ़ में खाज यह कि कथित घोटाले से संबंधित भूखंडों की मूल पत्रावलियां भी प्राधिकरण में उपलब्ध नहीं हैं। जानकारों का कहना है कि आवंटन के बाद से फाइल गायब होने का पता सबसे पहले तब चला था जब मंडलायुक्त ने घोटाले की कथित शिकायत की जांच के लिए फाइलें तलब की थीं।

बताया जाता है कि करीब 15 वर्ष पूर्व हुए इन सभी भूखंडों के आवंटन की डुप्लीकेट फाइल बनाकर मंडलायुक्त को सौंपी गई थी। यह भी जानकारी में आया है कि मंडलायुक्त ने इस प्रकरण की जांच आख्या मई 2011 में ही शासन को भेज दी थी। लेकिन इस जांच आख्या पर शासन स्तर पर कोई कार्यवाही नहीं होने की दशा में रविंद्र कुमार ने वर्ष 2012 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जीडीए के अपर सचिव सीपी त्रिपाठी का कहना है कि सुनवाई की आगामी तिथि से पूर्व शासन की ओर से हाई कोर्ट में एक प्रति शपथपत्र दाखिल किया जाना है। जिसे तैयार करवा कर शासन को प्रेषित कर दिया गया है।

प्रकरण की गंभीरता इसी बात से समझी जा सकती है कि इस मामले में हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि सुनवाई से पूर्व पटल पर यदि प्रति शपथपत्र प्रस्तुत नहीं किया गया तो उस दशा में सूबे के मुख्य सचिव को स्वयं उपस्थित होना होगा। यही वह अहम बिंदु है जिसने तीन दिन जीडीए के अफसरों की जान हलकान रखी। इस प्रकरण में फैसले का ऊंट किस करवट बैठता है यह देखना भी दिलचस्प होगा। क्योंकि प्राधिकरण के जिस तत्कालीन अधिकारी पर कथित भू-आवंटन घोटाले का आरोप लगाया जा रहा है वह स्वयं भी रसूखदार राजनीतिज्ञ हैं। बहरहाल इस प्रकरण में हाईकोर्ट में आगामी सुनवाई तक कई मोड़ आने की संभावना बरकरार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *